केंद्र सरकार ने दिल्ली के एलजी को किया और मजबूत, क्यों पड़ी बदलाव की जरूरत, AAP क्या कह रही?
केंद्र सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ा दी हैं। इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से मंगलवार एक अधिसूचना जारी की गई। इसके अनुसार, किसी भी प्राधिकरण, बोर्ड और आयोग गठित करने का पूरा अधिकार अब एलजी के पास होगा। इसके साथ ही उपराज्यपाल इन निकायों में सदस्यों की नियुक्ति भी कर सकेंगे।
दिल्ली के उपराज्यपाल की शक्तियां बढ़ाने पर विवाद भी शुरू हो गया है। यहां की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी ने कहा है कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार के अधिकार छीने जा रहे हैं। उधर अधिसूचना जारी होने के तुरंत बाद, उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने एमसीडी वार्ड समिति चुनावों के लिए पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति कर दी है।
दिल्ली के एलजी की कौन सी शक्तियां बढ़ाई गई हैं?
केंद्र सरकार ने दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) की शक्तियों का और विस्तार किया है। 2 सितंबर को जारी एक अधिसूचना में किसी भी बोर्ड, आयोग, प्राधिकरण या वैधानिक संस्था के गठन का अधिकार दिल्ली के उपराज्यपाल को सौंप दिया गया है। नए बदलाव में इन संस्थाओं के भीतर किसी भी अधिकारी को नियुक्त करने की शक्ति भी शामिल है।
यह अधिसूचना गृह मंत्रालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 239 के खंड (1) के तहत जारी की गई है। अनुच्छेद 239 केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासन से जुड़ा हुआ है, जो राष्ट्रपति को नियुक्त प्रशासक के जरिए काम करने की शक्ति देता है। यह निर्णय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम, 1991 के तहत लिया गया है।
पहले ये अधिकार किसके पास थे?
ये तमाम बदलाव राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2023 की धारा 45डी से जुड़े हुए हैं। धारा 45डी खास तौर पर प्राधिकरणों, बोर्डों, आयोगों या वैधानिक संस्थाओं की नियुक्ति की शक्ति से जुड़ी है। 11 अगस्त, 2023 को संशोधन अधिनियम को अधिसूचित किया गया था। शुरू में, धारा 45 की उपधारा डी की शक्ति राष्ट्रपति को सौंपी गई थी। इसका मतलब यह था कि पहले राष्ट्रपति के पास किसी भी बोर्ड, आयोग, प्राधिकरण या वैधानिक निकाय के गठन का अधिकार था। उनके पास ही इन निकायों के भीतर किसी भी अधिकारी को नियुक्त करने की शक्ति थी। पहले उपराज्यपाल के पास सदस्यों को नामित करने का अधिकार था और नियुक्ति को अंततः गृह मंत्रालय के जरिए राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दी जाती थी। अब उपराज्यपाल राष्ट्रपति की अनुमति के बिना सीधे नियुक्तियां कर सकते हैं।
पिछली व्यवस्था के तहत, दिल्ली सरकार और उसके अधिकारियों की वैधानिक निकायों के गठन और कामकाज में अधिक अहम भूमिका थी। इनमें मुख्यमंत्री और विभिन्न विभाग प्रमुख शामिल हैं। नए निर्देश इन जिम्मेदारियों को दिल्ली सरकार से दूर कर देते हैं और एलजी को अधिक शक्तियां दे देते हैं।
बदलाव की जरूरत क्यों हुई?
दिल्ली महिला आयोग और दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पद कई महीनों से खाली पड़े हैं। दिल्ली में पिछले साल दिल्ली विद्युत विनियामक आयोग के प्रमुख की नियुक्ति को लेकर काफी विवाद हुआ था। उस वक्त मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस पद के लिए सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव कुमार श्रीवास्तव की सिफारिश की थी। नियुक्ति के लिए लंबे इंतजार के बाद, राजीव ने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए कहा कि वह अब कार्यभार नहीं संभाल पाएंगे। इसके बाद सीएम ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति संगीत लोढ़ा के नाम की सिफारिश की।
हालांकि, केंद्र ने न्यायमूर्ति उमेश कुमार (सेवानिवृत्त) की नियुक्ति की। इसके बाद आप ने नियुक्ति के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाया और इसे अवैध और असंवैधानिक बताया। न्यायालय ने दोनों कार्यालयों से एक साथ बैठकर नाम तय करने को कहा था, लेकिन वे ऐसा करने में असफल रहे। अंत में सर्वोच्च न्यायालय को इस पद के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति जयंत नाथ को नामित करना पड़ा।
नए फैसले पर आप और भाजपा ने क्या कहा है?
आप ने केंद्र नए फैसले पर कड़ा ऐतराज जताया है। दिल्ली सरकार के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार के अधिकार लेकर थोपे गए लोगों को अधिकार दिए जा रहे हैं।
मंत्री ने कहा, ‘केंद्र सरकार चाहती है कि पूरी दिल्ली को उनके द्वारा लगाये गये एलजी चलाएं। भाजपा चुनाव नहीं जीत पा रही है, इसलिए वह पिछले दरवाजे से दिल्ली पर कब्जा करना चाहती है।’
उधर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने भी इस निर्णय पर प्रतिक्रिया दी है। सचदेवा ने कहा, ‘सौरभ भारद्वाज और वर्तमान में जेल में बंद आप नेताओं को यह बताना चाहिए कि जब वे सत्ता में थे, तो उन्होंने अपने लोगों को 1.5-2 लाख रुपये के वेतन वाले पदों पर क्यों नियुक्त किया था।’