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तीन रुपए तय था मेहनताना,जी हां, तीन रुपए। बड़ी बात होती थी उस ज़माने में तीन रुपए।

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तीन रुपए तय था मेहनताना,जी हां, तीन रुपए। बड़ी बात होती थी उस ज़माने में तीन रुपए।

तीन रुपए मेहनताना तय हुआ था। जी हां, तीन रुपए। बड़ी बात होती थी उस ज़माने में तीन रुपए भी। फिल्म थी साल 1949 में आई अफसाना। और ये महान बी.आर.चोपड़ा की बतौर डायरेक्टर पहली फिल्म थी। जबकी यश चोपड़ा इस फिल्म में बड़े भाई बी.आर.चोपड़ा के असिस्टेंड डायरेक्टर थे। तो हुआ कुछ यूं था कि जगदीप एक सड़क किनारे साबुन व कंघे बेचने का काम करते थे। और तब उनकी उम्र थी मात्र नौ बरस। एक दिन उनके पास एक जूनियर आर्टिस्ट सप्लायर आया और बोला,”फिल्म में काम करोगे?” जगदीप थोड़ा हैरान हुए। उन्होंने पूछा,”पैसे कितने मिलेंगे?” “तीन रुपए।” वो आदमी बोला। उस ज़माने में तीन रुपए कमाना भी जगदीप के लिए आसान नहीं होता था। सो वो फौरन उस आदमी से बोले,”चलो कहां चलना है।” उसने कहा,”आज नहीं बेटा। कल शूटिंग होगी।”

अगले दिन वो आदमी जगदीप को अपने साथ फिल्म के सेट पर ले गया। सीन कुछ ऐसा था कि बच्चों का एक नाटक चल रहा था जिसमें इन्हें दर्शक बच्चों में बैठना था और तालियां बजानी थी। वो एक दरबार का सीन था जिसमें स्टेज पर एक बच्चा उर्दू में कुछ डायलॉग्स बोलने की कोशिश करता है। लेकिन उससे वो डायलॉग्स सही से नहीं बोले जा रहे थे। असिस्टेंट डायरेक्टर यश चोपड़ा ने काफी कोशिश की कि वो बच्चा उन डायलॉग्स को सही से बोल सके। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। उन्होंने दर्शक बने बैठे बच्चों की तरफ देखकर कहा,”कोई और है जो ये डायलॉग्स बोल सकता है?” अब चूंकी जगदीप(सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी) की परवरिश ऐसे माहौल में हुई थी जहां उर्दू ज़बान ही बोली जाती थी तो उन्हें लगा कि मैं तो ये लाइनें बिना किसी परेशानी के बोल सकता हूं। उन्होने अपने पास बैठे एक दूसरे बच्चे से पूछा,”अगर मैं ये लाइनें बोल दूं तो क्या होगा?” “तब तुम्हें तीन की जगह छह रुपए मिलेंगे।” वो बच्चा बोला। ये सुनते ही जगदीप फौरन खड़े हो गए और बोले,”मैं ये डायलॉग्स बोलूंगा।”

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यश चोपड़ा बड़े खुश हुए। उन्होंने फौरन जगदीप को मेकअप के लिए भेजा। उनके चेहरे पर नकली दाढ़ी-मूंछ लगाई गई। और जब डायलॉग बोलने की बारी आई तो बिना किसी दिक्कत के जगदीप ने वो डायलॉग्स बोल दिए। और इस तरह इत्तिफ़ाक़न मिली अपनी पहली ही फिल्म से जगदीप एक्स्ट्रा कलाकार से सपोर्टिंग एक्टर बन गए। इसके बाद कई फिल्मों में जगदीप ने बाल कलाकार की हैसियत से काम किया। जिनमें प्रमुख हैं धोबी डॉक्टर, फुटपाथ, दो बीघा ज़मीन, नौकरी, मुन्ना, भाई साहब, आर-पार, मिस्टर एंड मिसेज 55, किस्मत का खेल, ढाके की मलमल और हम पंछी एक डाल के। “हम पंछी एक डाल के” फिल्म में तो इन्होंने इतना शानदार काम किया था कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने दिल्ली बुलाकर इन्हें व फिल्म के बाकी कलाकारों को सम्मानित किया था। और इन्हें तो पंडित नेहरू ने विशेषतौर पर अपनी छड़ी तोहफे में दी थी। जो इन्होंने हमेशा अपने पास संभालकर रखी।

1954 में आई धोबी डॉक्टर नामक फिल्म में किशोर कुमार और उषा किरण जी मुख्य भूमिकाओं में थे। उस फिल्म को फणी मजूमदार जी ने निर्देशित किया था। और प्रोड्यूस किया था बिमल रॉय जी ने। धोबी डॉक्टर में किशोर कुमार के बचपन का रोल जगदीप ने ही निभाया था। जबकी उषा किरण जी के बचपन का किरदार जिया था आशा पारेख जी ने। फिर साल 1957 में आई फिल्म भाभी से जगदीप ने कुछ रोमांटिक किरदार भी निभाए। भाभी में इन्होंने नंदा जी संग ऑनस्क्रीन रोमांस किया था। कुल पांच फिल्मों में जगदीप ने बतौर हीरो काम किया था। और इन फिल्मों में जगदीप की हीरोइनें थी नंदा, अज़रा, अमिता और नाज़। जगदीप कहते थे कि वो इकलौते चाइल्ड एक्टर थे जिसने बिना रुके पूरे 45 सालों तक काम किया था। वरना उनसे पहले के, उनके साथ के और उनके बाद भी जितने नामी बाल कलाकार हुए उनमें से अधिकतर 14-15 की उम्र में आने के बाद किसी ना किसी वजह से फिल्मों से दूर हो गए।

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जगदीप की बात हो तो शोल में उनके निभाए सूरमा भोपाली के किरदार की बात तो करनी ही होगी। वो तो ज़रूरी है बहुत। तो आखिर में शोले के सूरमा भोपाली के इनके रोल के बारे में कुछ जानते हैं। आपको हैरानी होगी ये जानकर कि एक दफा शोले के बारे में एक अफवाह उड़ी थी। वो भी इसकी रिलीज़ के कुछ हफ्तों बाद। और वो अफवाह थी कि पहले शोले में सूरमा भोपाली था ही नहीं। इसलिए जब पहले हफ्ते में शोले का प्रदर्शन बॉक्स ऑफिस पर एकदम फीका जा रहा था तो रमेश सिप्पी ने सूरमा भोपाली का किरदार शूट करके फिल्म में एड कराया और तब जाकर शोले में सूरमा भोपाली दिखा। लेकिन डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने इस बारे में बात करते हुए कहा था कि ये सब एक कोरा झूठ था।

सूरमा भोपाली का किरदार शोले में शुरू से ही था। हुआ ये था कि शुरुआती हफ्ते की असफलता के बाद जब शोले के डिस्ट्रीब्यूटर राजश्री प्रोडक्शन्स ने रमेश सिप्पी से गुज़ारिश की कि क्या वो फिल्म को थोड़ा छोटा नहीं कर सकते? तब रमेश सिप्पी शोले में से असरानी जी और जगदीप जी के दृश्य हटा दिए। दरअसल, शोले इतनी लंबी फिल्म थी कि बहुत से ट्रेड एक्सपर्ट्स ने इसकी ड्यूरेशन की आलोचना की थी। लेकिन ये दृश्य हटने के बाद तो जो लोग दोबारा शोले देखने आए थे वो बहुत निराश और नाराज़ हुए। कईयों ने कहा कि वही दृश्य तो इस फिल्म की जान थे। ऐसे में रमेश सिप्पी को फिर से असरानी जी का अंग्रेजों के ज़माने का जेलर और जगदीप जी का सूरमा भोपाली का रोल फिल्म में एड करना पड़ा।

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आज जगदीप साहब का जन्मदिवस है। 29 मार्च 1939 को मध्य प्रदेश के दतिया में जगदीप साहब का जन्म हुआ था। इनका असल नाम था सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी। इनके पिता किसी ज़माने में अपने इलाके के नामी बैरिस्टर हुआ करते थे। लेकिन एक दिन इनके पिता की अचानक मौत हो गई। और उसके कुछ ही दिनों बाद देश का विभाजन हो गया। इन्हें अपना घर छोड़ना पड़ गया। ये अपनी मां संग मुंबई आ गए। और वहां बेहद ग़रीबी में इनका जीवन गुज़रा।

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