2024 वट सावित्री व्रत:- आज वट सावित्री व्रत का त्योहार, जानें क्या है शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र से लेकर सबकुछ
आज यानी 06 जून 2024 को वट सावित्री व्रत का त्योहार है। ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है। यह उपवास सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास होता है। इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष की विधि अनुसार पूजा करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा करने से पति की लंबी आयु और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। साथ ही इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवों का वास होता है। इसलिए व्रत रखने वाली महिलाओं को तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। वट सावित्री व्रत से पति की तरक्की के योग भी बनते हैं और रुके हुए कार्यों को गति मिलती हैं।
ज्येष्ठ माह में आने वाला ये व्रत बेहद कठिन माना जाता है, क्योंकि इस माह गर्मी चरम पर होती है। ऐसे में कुछ महिलाएं निर्जला उपवास करती है। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वहीं इस बार वट सावित्री व्रत 6 जून 2024 को रखा जाएगा। इस दिन शुभ मुहूर्त, सही पूजा विधि, कथा, आरती और मंत्र के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। ऐसे में आइए इन सभी को विस्तारपूर्वक जान लेते हैं।
वट सावित्री व्रत 2024 पूजा मुहूर्त?
पंचांग के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन पूजा मुहूर्त प्रातः 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट तक रहेगा। इस समय वट वृक्ष की पूजा कर सकती हैं।
वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
वट सावित्री के दिन महिलाएं स्नान के बाद लाल या पीले रंग के वस्त्र पहनें।
फिर पूजा की सामग्री को एकत्रित कर लें और थाली तैयार कर लें।
वट वृक्ष के नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें।
इस दौरान बरगद के वृक्ष की जड़ में जल अर्पित करें।
फिर आप पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।
बाद में वृक्ष की 7 बार परिक्रमा करते हुए आप इसपर कच्चा सूत या कलावा लपेटें और फिर कथा सुने।
पूरी पूजा संपन्न हो जाने के बाद आप दान करें। ऐसा करना शुभ होता है।
इसलिए इतना खास है वट वृक्ष
अनेक धर्मग्रंथों के अनुसार मां सीता के आशीर्वाद से बरगद के वृक्ष की महिमा विख्यात हो गई। मान्यता है कि त्रेतायुग में वनवास के दौरान भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ गया में श्राद्धकर्म के लिए आए थे। इसके बाद श्रीराम और लक्ष्मण श्राद्ध कर्म के लिए सामान लेने चले गए। इतने में राजा दशरथ प्रकट हो गए और सीता को ही पिंडदान करने के लिए कहकर मोक्ष दिलाने का निर्देश दिया। माता सीता ने पंडा, फल्गु नदी, गाय, वटवृक्ष और केतकी के फूल को साक्षी मानकर पिंडदान कर दिया। जब भगवान राम आए तो माता सीता ने उन्हें पूरी बात बताई, परंतु श्रीराम को विश्वास नहीं हुआ। तब माता सीता ने जिन्हें साक्षी मानकर पिंडदान किया था उन सबको वह अपने स्वामी श्रीराम के सामने लायीं।
पंडा, फल्गु नदी, गाय और केतकी फूल ने झूठ बोल दिया परंतु वट वृक्ष ने सब सच-सच बता दिया। तभी माता सीता ने फल्गु नदी, गाय, पंडा तथा केतकी फूल को श्राप दे दिया। वहीं वटवृक्ष को अक्षय रहने का आर्शीवाद दे दिया। इसी वृक्ष के नीचे देवी सावित्री ने अपने सुहाग को फिर से प्राप्त किया। यही कारण है कि महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं तो उन्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है,परिवार पर किसी प्रकार का कोई संकट नहीं आता। वट वृक्ष की नियमित पूजा करने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्कंद पुराण के अनुसार इस वृक्ष की पूजा यदि सुबह-शाम की जाए तो दांपत्य जीवन सुखद बनता है,सभी कष्ट दूर हो जाते हैं एवं मनुष्य निरोगी रहता है।
वट सावित्री के दिन करें ये उपाय
वट सावित्री के दिन पीपल के पेड़ पर मीठा दूध चढाएं। इसके बाद पीपल के वृक्ष की परिक्रमा करते हुए शनि मंत्र ॐ शं शनैश्चराय नमः का जाप करना चाहिए।
वट सावित्री के दिन बरगद के पेड़ में दूध अर्पित करें। इससे ग्रह दोष दूर होने लगते हैं। साथ ही बरगद के पेड़ की 11 बार परिक्रमा लगाने के बाद गाय, कुत्ते और कौवे को भोजन कराना चाहिए। इससे कुंडली में ग्रहों की स्थिति मजबूत होती है।
वैवाहिक जीवन में चल रही परेशानियों को दूर करने के लिए बरगद के पेड़ की पति के साथ 21 परिक्रमा लगाएं। फिर पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाना न भूलें। इस दीपक से काजल बना लें। बाद में इस काजल को बरगद के पत्ते में लपेटकर अलमारी में रख दें।
वट सावित्री व्रत की आरती
अश्वपती पुसता झाला।। नारद सागंताती तयाला।।
अल्पायुषी स त्यवंत।। सावित्री ने कां प्रणीला।।
आणखी वर वरी बाळे।।मनी निश्चय जो केला।।
आरती वडराजा।।
दयावंत यमदूजा। सत्यवंत ही सावित्री।
भावे करीन मी पूजा। आरती वडराजा ।।
ज्येष्ठमास त्रयोदशी। करिती पूजन वडाशी ।।
त्रिरात व्रत करूनीया। जिंकी तू सत्यवंताशी।
आरती वडराजा ।।
स्वर्गावारी जाऊनिया। अग्निखांब कचळीला।।
धर्मराजा उचकला। हत्या घालिल जीवाला।
येश्र गे पतिव्रते। पती नेई गे आपुला।।
आरती वडराजा ।।
जाऊनिया यमापाशी। मागतसे आपुला पती।
चारी वर देऊनिया। दयावंता द्यावा पती।
आरती वडराजा ।।
पतिव्रते तुझी कीर्ती। ऐकुनि ज्या नारी।।
तुझे व्रत आचरती। तुझी भुवने पावती।।
आरती वडराजा ।।
पतिव्रते तुझी स्तुती। त्रिभुवनी ज्या करिती।।
स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया। आणिलासी आपुला पती।।
अभय देऊनिया। पतिव्रते तारी त्यासी।।
आरती वडराजा ।।