राज्य में लागू समान नागरिक संहिता कानून की वैधानिकता और प्रावधानों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए 48 घंटे का समय मांगा गया, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 10 दिन बाद करेगा।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने यूसीसी को चुनौती देने वाली आधा दर्जन से अधिक याचिकाओं पर मंगलवार को सुनवाई की। भीमताल निवासी सुरेश सिंह नेगी ने यूसीसी में लिव इन रिलेशनशिप के प्रावधान को जबकि मुस्लिम, पारसी आदि के वैवाहिक पद्धति की यूसीसी में अनदेखी सहित अन्य नियमों के खिलाफ याचिका दाखिल की है।
देहरादून के एलमसुद्दीन सिद्दीकी ने याचिका में अल्पसंख्यकों के रीति-रिवाजों की अनदेखी का उल्लेख किया है। अन्य याचिका में कहा गया कि जहां सामान्य शादी के लिए लड़के की उम्र 21 व लड़की की 18 वर्ष आवश्यक है, जबकि लिव इन रिलेशनशिप में दोनों की उम्र 18 वर्ष रखी गई है।
अगर कोई व्यक्ति अपनी लिव इन रिलेशनशिप से छुटकारा पाना चाहता है तो वह एक साधारण प्रार्थना पत्र रजिस्ट्रार को देकर करीब 15 दिन में अपने पार्टनर को छोड़ सकता है, जबकि साधारण विवाह में तलाक लेने के लिए पूरी न्यायिक प्रक्रिया है और दशकों के बाद तलाक होता है, वह भी पूरा भरण पोषण देकर। आरोप लगाया कि राज्य सरकार ने नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों में हस्तक्षेप कर हनन किया है।
याचिकाकर्ता का यह भी कहना था कि यूसीसी लागू होने के बाद लोग शादी न कर लिव इन रिलेशनशिप में ही रहना पसंद करें, जब तक पार्टनर के साथ संबंध अच्छे हो तब तक रहें, नहीं बनने पर छोड़ दें। 2010 के बाद शादी का रजिस्ट्रेशन कराना आवश्यक है, नहीं करने पर तीन माह की सजा या 10 हजार का जुर्माना देना होगा।