उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों के पद के लिए चुने गए उम्मीदवारों के नामों का सार्वजनिक खुलासा करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को सूचना आयोगों में खाली पदों को जल्द भरने का निर्देश भी दिया है।
केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के. एम. नटराज ने कहा कि चयन समिति ने कुछ नामों को शॉर्टलिस्ट किया है और अब वे प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली समिति के पास भेजे गए हैं। उन्होंने कहा कि यह समिति अगले दो से तीन हफ्तों में नामों को मंजूरी दे देगी, इसलिए अदालत को कोई निर्देश जारी करने की आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
अदालत ने कहा कि वह केंद्र को नाम सार्वजनिक करने का निर्देश नहीं देगी, लेकिन सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में खाली पद जल्द से जल्द भरे जाएं। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘हम मामला निपटा नहीं रहे हैं। हर दो हफ्ते में सुनवाई होगी ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आदेशों का पालन हो रहा है।’
झारखंड सरकार का पक्ष
झारखंड सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील अरुणाभ चौधरी ने बताया कि विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति के कारण नियुक्ति प्रक्रिया में देरी हुई थी, लेकिन अब प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और जल्द ही सभी रिक्तियां भरी जाएंगी।
पहले कोर्ट ने क्या दिए थे आदेश?
इससे पहले जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा था कि सभी खाली पद तुरंत भरे जाएं। फिर नवंबर 2024 में कोर्ट ने फिर नाराजगी जताई और केंद्र व राज्यों से प्रगति रिपोर्ट मांगी। 2019 का फैसले के अनुसार, कोर्ट ने तीन महीने के भीतर नियुक्तियां पूरी करने का निर्देश दिया था और कहा था कि चयन समिति के सदस्यों के नाम वेबसाइट पर सार्वजनिक किए जाएं। अदालत ने यह भी कहा था कि केवल नौकरशाहों को ही नियुक्त करने की परंपरा खत्म होनी चाहिए, और समाज के कई क्षेत्रों के योग्य लोगों को भी शामिल किया जाना चाहिए।
क्यों महत्वपूर्ण है यह मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार कहा है कि अगर सूचना आयोगों में नियुक्तियां समय पर नहीं होंगी, तो सूचना का अधिकार कानून बेकार कागज बनकर रह जाएगा। अंजलि भारद्वाज और अन्य याचिकाकर्ताओं का कहना है कि नियुक्तियों में देरी से पारदर्शिता खत्म हो रही है और लोगों का सूचना पाने का अधिकार प्रभावित हो रहा है।







