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बात जानना जरूरी है: अग्नि को सर्वभक्षी होने का क्यों मिला श्राप, राक्षस को पत्नी पुलोमा की जानकारी देने पर….

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बात जानना जरूरी है: अग्नि को सर्वभक्षी होने का क्यों मिला श्राप, राक्षस को पत्नी पुलोमा की जानकारी देने पर….

एक छोटी बच्ची का नाम पुलोमा था। एक दिन पुलोमा किसी बात पर रोने लगी, तो पिता ने उसे डराने के लिए कहा, ‘हे राक्षस, तू आकर पुलोमा को ले जा!’ दुर्भाग्य से, उस समय एक राक्षस उनके घर में ही छिपा बैठा था। उसे लगा कि नन्ही पुलोमा पर उसका अधिकार हो गया। उसने पुलोमा को मन ही मन अपनी पत्नी मान लिया।** बाद में, पुलोमा जब बड़ी हुई, तो उसके पिता ने उसका विवाह महर्षि भृगु से कर दिया।

एक दिन महर्षि भृगु स्नान करने गए थे और उनकी गर्भवती पत्नी पुलोमा आश्रम में अकेली थी। तभी वह राक्षस ब्राह्मण का वेश धारण करके आया। उसे देखकर पुलोमा भिक्षा लाने भीतर चली गई। राक्षस ने उसका अपहरण करने का निश्चय कर लिया। उसने वहां हवन-वेदी में प्रज्वलित अग्नि से पूछा, ‘हे अग्निदेव! आप समस्त कृत्यों के साक्षी हैं। सत्य कहिए, क्या यह वही पुलोमा है, जिसे मैंने बचपन में अपनी पत्नी मान लिया था?’
‘हां! यह स्त्री वही पुलोमा है, परंतु इसका विवाह महर्षि भृगु से हो चुका है,’ अग्निदेव ने कहा।

राक्षस ने कहा, ‘इस पर प्रथम अधिकार मेरा है। भृगु से इसका विवाह बाद में हुआ है।’ अग्निदेव बोले, ‘बचपन में तुमने पुलोमा को अवश्य अपनी पत्नी माना था, किंतु तुम्हारा उससे विवाह नहीं हुआ। मैं पुलोमा के साथ तुम्हारे विवाह का साक्षी नहीं हूं। परंतु भृगु ने मेरे सामने विधिपूर्वक विवाह किया है। इस पर केवल महर्षि भृगु का अधिकार है।’

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अग्निदेव की बात सुनकर राक्षस को क्रोध आ गया। इस बीच भृगु-पत्नी पुलोमा भिक्षा लेकर बाहर आई। राक्षस के सिर पर खून सवार था। वह ब्राह्मण-वेश त्याग कर असली रूप में आ गया और गर्भवती पुलोमा को उठाकर भागने लगा। झटका लगने से पुलोमा का गर्भस्थ शिशु गिर गया।

इस तरह गर्भ से च्युत होने के कारण उस बालक का नाम ‘च्यवन’ पड़ा, तथा भृगु-वंशज होने के चलते, वह ‘भार्गव’ भी कहलाया। भृगु-पुत्र च्यवन इतना तेजस्वी था कि राक्षस उसका तेज सहन नहीं कर पाया और तत्काल जलकर भस्म हो गया। इसके बाद भृगु-पत्नी पुलोमा अपने पुत्र च्यवन को लेकर आश्रम लौट आई। कुछ देर बाद जब भृगु आश्रम में लौटे, तो उन्होंने पुलोमा को रोते हुए देखा। पुलोमा ने पूरी घटना सुनाई। भृगु ने उनसे पूछा, ‘उस राक्षस ने इतने वर्षों बाद भी तुम्हें कैसे पहचान लिया? तुम्हारे बारे में उसे किसने सूचना दी?’

‘अग्निदेव ने!’ भृगु की पत्नी ने उत्तर दिया।

यह सुनकर क्रोधित भृगु ने हाथ में जल लेकर अग्निदेव को श्राप दिया, ‘मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम सर्वभक्षी हो जाओ! अब से तुम किसी भी वस्तु का भक्षण करने लगोगे और तुम्हारी पवित्रता भंग हो जाएगी।’

अग्निदेव ने कहा, ‘महर्षि, मैं धर्म के प्रति समर्पित हूं। इसलिए असत्य नहीं बोल सकता था। राक्षस ने मुझसे जो कुछ पूछा, मैंने सत्य कहा। आपको श्राप वापस लेना होगा।’

भृगु ने श्राप वापस लेने से मना किया तो अग्निदेव को भी क्रोध आ गया। उन्होंने स्वयं को यज्ञ आदि समस्त धार्मिक अनुष्ठानों से दूर कर लिया, जिससे सृष्टि में अव्यवस्था उत्पन्न हो गई। आखिरकार, ब्रह्मा को हस्तक्षेप करना पड़ा। ब्रह्मा ने अग्निदेव से कहा, ‘तुम सारे शरीर से सर्वभक्षी नहीं होओगे। तुम्हारे अपान भाग की ज्वाला ही केवल सर्वभक्षी होगी और तुम्हारे स्पर्श मात्र से सब कुछ शुद्ध हो जाएगा!’ इसके बाद अग्निदेव का क्रोध शांत हुआ और फिर से अग्निहोत्र आदि संपूर्ण कर्म विधि-विधान के साथ संपन्न होने लगे।

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