सुशीला तिवारी अस्पताल में तीमारदार ठंड में ठिठुरने के लिए मजबूर हैं। अस्पताल प्रबंधन की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया है। रात नौ बजे से मरीजों के परिजन वार्ड के बाहर अपना-अपना कोना कब्जाने की जुगत मेंं लग जाते हैं। घरों से लाई गई चटाई को ठंडे फर्श पर बिछाकर कंबल और लिहाफ ओढ़ लेते हैं। मजबूरी की चादर ओढ़े ये लोग रात भर ठिठुरते रहते हैं। इनमें से कई तो खुद भी बीमार पड़ जाते हैं।
आपबीती
नानी की रीढ़ मेंं दिक्कत है। पिछले दो सप्ताह से भर्ती हैं। तबसे परिवार में जिसे भी रात रुकना होता है वह अस्पताल के फर्श पर ही कभी चटाई तो कभी चादर या अखबार बिछाकर सोता है। यह क्रम पिछले तकरीबन पंद्रह दिनों से चल रहा है मगर अस्पताल की ओर से कोई इंतजाम नहीं किया गया है। – मेहरबान सिंह, सुभाषनगर
पति पिछले सोलह दिन से भर्ती हैं। दिन तो जांच कराने, दवाएं लाने और अन्य कामों में बीत जाता है। रात वार्ड के बाहर जमीन पर कटती है। रात में मौसम दिन की अपेक्षा और अधिक ठंडा हो जाता है। इसकी वजह से कई बार खुद ही बीमार पड़ जाते हैं। अब इलाज कराना है तो यह सब सहना मजबूरी है। – चंद्रकला, शक्तिफार्म, सितारगंज
अलाव का भी इंतजाम नहीं
पारे में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। रात में तापमान पांच डिग्री से नीचे पहुंच रहा है। इसके बावजूद अस्पताल में कंबल-चादर के साथ ही अलाव तक का कोई इंतजाम नहीं है। इसमें ठिठुरने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
कैंसर हॉस्पिटल के बगल में एक बड़ी डोरमेट्री और रैनबसेरा बनाने का प्रयास चल रहा है। इस संबंध में प्रस्ताव तैयार कर भेजा जा चुका है लेकिन अभी इस काम में वक्त लगेगा। जब तक यह काम पूरा नहीं हो जाता तब तक समस्या है। – डॉ. अरुण जोशी, सीएमएस, सुशीला तिवारी अस्पताल







