साल 2019 के आखिर के महीनों में शुरू हुई कोरोना महामारी ने 2020 तक दुनिया के अधिकतर हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया था। साल 2021-22 के दौरान कोरोना की लहरों ने बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमण का शिकार बनाया। कोरोना संक्रमण के कारण होने वाले दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को लेकर लंबे समय से चर्चा होती रही है।
इसी से संबंधित एक हालिया अध्ययन में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चौंकाने वाली जानकारी साझा की है। एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना महामारी के दौरान संक्रमित मां से जन्मे बच्चों में ऑटिज्म विकार होने का खतरा अधिक देखा जा रहा है। ऐसे में अगर आपके घर में भी 2020-23 के दौरान किसी बच्चे का जन्म (संक्रमित मां से) हुआ हो तो सावधान हो जाइए।
डेनमार्क के कोपेनहेगन में प्रस्तुत की गई इस अध्ययन की रिपोर्ट से पता चलता है कि गर्भावस्था के दौरान कोविड-19 से पीड़ित माताओं से पैदा हुए बच्चों में ऑटिज्म और विकास संबंधी देरी का जोखिम बढ़ सकता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि जिन बच्चों का जन्म संक्रमण की शिकार मां से हुआ है, उनकी सेहत को लेकर एक बार परीक्षण जरूरी है। बच्चों में यदि किसी प्रकार की विकासात्मक समस्या दिख रही है तो समय रहते इसका निदान जरूर करा लेना चाहिए।
संक्रमित मां से जन्मे बच्चों में ऑटिज्म का खतरा
अध्ययनकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 2020-23 का दौर सभी लोगों की सेहत को लेकर काफी चुनौतीपूर्ण रहा है। इस दौरान सभी उम्र और लिंग के लोगों को संक्रमण का शिकार पाया गया। लॉन्ग कोविड या पोस्ट कोविड को लेकर वैज्ञानिक पहले से ही चिंता जताते रहे हैं। अब हालिया अध्ययन में बच्चों की सेहत पर इसके दुष्प्रभावों को लेकर सावधान किया गया है।
वैज्ञानिकों की टीम ने बताया कि संक्रमिक मां से जन्मे 28 माह (दो साल तक के) बच्चों में ऑटिज्म से संबंधित समस्याएं देखी जा रही हैं। हालांकि ऐसे बच्चों के आंकड़े कम हैं फिर भी स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के स्वास्थ्य दुष्प्रभावों को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
ऑटिज्म को लेकर चिंताजनक डेटा
रिपोर्ट में 28 महीने की उम्र में ऑटिज्म के चिंताजनक डेटा का खुलासा किया। शोध में 211 बच्चों को शामिल किया गया था, जिनका जन्म कोविड संक्रमित मां से हुआ था। इनमें से करीब 23 (जो कि 11% है) बच्चे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार के लिए सकारात्मक पाए गए। अध्ययन के ये डेटा छोटा है पर बच्चों में बढ़ती इस गंभीर समस्या को लेकर चिंता बढ़ाने वाला जरूर है।
अध्ययन के दौरान शुरुआती मूल्यांकन में 14 फीसदी से अधिक बच्चों में विकास संबंधी समस्याओं के लक्षण दिखाई दिए। छह से 8 महीने की उम्र तक के 109 शिशुओं में से 13 (लगभग 12%) बच्चों में अपनी उम्र के हिसाब से विकास नहीं देखा गया।
बच्चों में संज्ञानात्मक और भाषा विकास की दिक्कत
जैसे-जैसे अध्ययन में अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया, इसके पैटर्न में और अधिक चिंताजनक डेटा सामने आए। संक्रमित मां से जन्मे 11 प्रतिशत से अधिक बच्चों (एक से तीन साल की आयु तक) में कई प्रकार की संज्ञानात्मक, मोटर या भाषा विकास से संबंधित समस्याएं देखी गईं। विशेषज्ञों ने कहा, सभी माता-पिता को इन जोखिमों को लेकर सावधान रहने की जरूरत है।
इससे पहले साल 2021 के एक डेटा के अनुसार में दुनियाभर में अनुमानित 61.8 मिलियन (6.18 करोड़) लोग ऑटिज्म स्पेक्ट्रम का शिकार थे। ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीजज स्टडी के शोधकर्ताओं ने पाया कि ऑटिज्म लगभग 127 लोगों में से एक को प्रभावित करता है। ये विकार क्वालिटी ऑफ लाइफ को प्रभावित करने वाला हो सकता है।
क्या है ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर?
स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं, ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर मस्तिष्क के विकास को प्रभावित करने वाली स्थिति है जो व्यक्ति के दूसरों के साथ मेलजोल और सोचने के तरीके को प्रभावित करती है, इसके कारण प्रभावित बच्चे के सामाजिक संपर्क में भी समस्या हो सकती है। पीड़ित में अवसाद, चिंता, सोने में कठिनाई सहित कई अन्य प्रकार की व्यवहारिक समस्याओं के भी विकसित होने का खतरा हो सकता है।
कुछ बच्चों में शैशवावस्था में ही ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर के लक्षण दिखाई देने लगते हैं, जैसे आंखों का ठीक से संपर्क न हो पाना, अपना नाम सुनने पर भी प्रतिक्रिया न देना आदि। ये बच्चों में भाषा कौशल, बोलने-चीजों को समझने में भी कठिनाई का कारण बन सकती है। आमतौर पर दो वर्ष की उम्र तक बच्चों में इससे संबंधित समस्याएं दिखाई देने लगती हैं।