Post Views: 18,592
अब किसी भी राज्य से गाड़ी खरीदने के बाद उत्तर प्रदेश में मनचाहा नंबर हासिल किया जा सकेगा। करीब 14 सौ करोड़ की चपत लगने के बाद परिवहन विभाग ने विशिष्ट (वीआईपी) नंबर देने की नियमावली में बदलाव कर दिया है। अब दूसरे राज्य से गाड़ी खरीद कर अस्थाई पंजीयन पर एनओसी लेकर आने वाली गाड़ियों को उत्तर प्रदेश में वीआईपी नंबर मिल सकेगा। यह व्यवस्था अप्रैल माह में लागू कर दी गई है।
परिवहन विभाग अभी तक उन्हीं गाड़ियों को वीआईपी नंबर देता था, जो उत्तर प्रदेश की एजेंसियों से खरीदी जाती थीं। विभाग की ओर से कराए गए सर्वे में यह बात सामने आई कि अब तक वीआईपी नंबरों की 1089 सीरीज जारी की गई है। एक सितंबर 2021 से 28 फरवरी 2025 तक के डेटा देखें तो करीब 2.84 लाख वीआईपी नंबर आवंटित नहीं किए जा सके। इन नंबरों के आवंटन से न्यूनतम पांच हजार रुपये राजस्व मिलता तो विभाग को करीब 1424.99 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ है।
जबकि 0001, 0007, 0011, 0786 जैसे नंबरों की नीलामी में प्रति नंबर 50 हजार से पांच लाख तक का राजस्व मिल सकता है। ऐसे में अनुमान लगाया गया कि सभी वीआईपी नंबरों को जारी करके करीब दो हजार करोड़ से अधिक का राजस्व हासिल किया जा सकता है। इस आकलन के बाद विभाग ने अन्य राज्यों की व्यवस्थाओं का अध्ययन किया। फिर दूसरे राज्यों से खरीदी जाने वाली गाड़ियों को भी वीआईपी नंबर देने का फैसला लिया है। इस संबंध में परिवहन आयुक्त बीएन सिंह ने सभी सहायक संभागीय परिवहन अधिकारियों को विस्तृत गाइड लाइन भी भेज दी है।
अब क्या होगी व्यवस्था…
प्रदेश में तमाम लोग लग्जरी गाड़ियां दिल्ली, हरियाणा सहित अन्य राज्यों से खरीदते हैं। उनकी कोशिश होती है कि वे पंजीयन अपने पसंदीदा जिले से कराएं और मनपसंद नंबर भी हासिल करें। लेकिन परिवहन विभाग की पाबंदी की वजह से यहां पंजीयन नहीं करा पाते थे। अब विभाग ने नियमावली में बदलाव करते हुए आदेश जारी किया है कि दूसरे राज्य से वाहन खरीद कर टेंपरेरी रजिस्ट्रेशन (टीआर) पर एनओसी लेकर आने वाली गाड़ियों को भी उत्तर प्रदेश का वीआईपी नंबर दिया जाएगा। अनापत्ति प्रमाण पत्र होने पर केंद्रीय मोटर यान नियमावली 1989 के नियम 54 के तहत अधिनिधिनियम की धारा 47(1) के तहत फार्म 27 में आवेदन करना होगा। फैंसी व चॉइस नंबरों (वीआईपी) का आरक्षण ऑनलाइन नीलामी और प्रथम आगत-प्रथम पावत के आधार पर दी जाएगी। जो सर्वाधिक बोली लगाएगा, उसे संबंधित वीआईपी नंबर आवंटित कर दिया जाएगा। इससे वाहन स्वामियों को जहां वीआईपी नंबर मिल सकेगा वहीं विबाग को करोड़ों रुपये का राजस्व हासिल होगा।