राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ: भारतीय जनता पार्टी के खराब प्रदर्शन और संघ से तनाव के बीच रांची में हाई लेवल मीटिंग, विधानसभा चुनावों पर बनेगी रणनीति
लोकसभा चुनाव में भाजपा के अपेक्षाकृत कमजोर प्रदर्शन के बाद भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने में सफल रहे हैं। भाजपा और संघ परिवार के लिए यह एक बड़ी सफलता है। लेकिन इसके बाद भी भाजपा का लोकसभा चुनाव में मजबूत प्रदर्शन न कर पाना संघ के लिए बड़ी चिंता का विषय है। उत्तर प्रदेश में दलित और ओबीसी समुदाय के बीच भाजपा की पकड़ कमजोर होने से भी संघ परिवार चिंतित है, जो देश के इस सबसे बड़े सूबे को वैचारिक स्वीकार्यता की दृष्टि से अपने लिए सबसे अधिक उर्वर मान रहा था। चुनाव परिणामों ने संघ परिवार को उत्तर प्रदेश को लेकर आत्ममंथन करने और नई रणनीति बनाने के लिए विवश कर दिया है।
लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की सर्वोच्च बैठक 12 जुलाई से 14 जुलाई के बीच झारखंड की राजधानी रांची में होने जा रही है। इस बैठक में आरएसएस के सर्वोच्च पदाधिकारी सरसंघचालक मोहन भागवत और दत्तात्रेय होसबोले के अलावा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित रहेंगे। ऐसे में इस बैठक में लोकसभा चुनाव परिणामों के साथ-साथ भाजपा से उसके उन मतभेदों पर भी चर्चा हो सकती है, जो पिछले दिनों चर्चा में रहे थे। चूंकि झारखंड सहित महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर और हरियाणा के विधानसभा चुनाव भी इसी वर्ष होने हैं। अगले वर्ष के जनवरी-फरवरी में दिल्ली और अंत में बिहार के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। माना जा रहा है कि बैठक में इन चुनावों को लेकर भी चर्चा हो सकती है। हालांकि, संघ परिवार इसे संगठन की वार्षिक गतिविधियों के लेखा-जोखा के लिए आयोजित की जाने वाली सामान्य गतिविधि बताता है।
उत्तरप्रदेश महत्वपूर्ण क्यों?
उत्तर प्रदेश केवल इस अर्थ में महत्वपूर्ण नहीं है कि यह देश का सबसे बड़ा राज्य है और यहां से 80 लोकसभा सीटें आती हैं, या इस राज्य में जीत किसी भी राजनीतिक दल के लिए केंद्र में सरकार बनाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण होने की गारंटी होती है। उत्तर प्रदेश इस लिहाज से ज्यादा महत्वपूर्ण है कि यह उत्तर भारत की राजनीतिक-सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण कई प्रमुख जातियों का अच्छा संयोजन है। यदि संघ परिवार अपनी कोशिशों के द्वारा यहां के समाज में जातिगत विविधता को पीछे छोड़ते हुए सभी में एकता और समन्वय स्थापित करने में सफल रहता है, तो इसका संदेश देश के दूसरे हिस्सों में भी जाएगा। इससे संघ उन लक्ष्यों को प्राप्त कर सकेगा, जिसे वह अपनी स्थापना का मूल उद्देश्य मानता है।
2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी में मिली सफलता ने उसके इस विश्वास को दृढ़ किया था कि राष्ट्रवाद और हिंदुत्व की मजबूती से वह जातिवाद की बुराई को पीछे छोड़ने में सफल हो सकता है। लेकिन जिस तरह कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने 2024 के चुनाव में ‘संविधान और आरक्षण’ का खतरा दिखाकर पिछड़ों और दलित जातियों को अपने पक्ष में लामबंद करने में सफलता हासिल की है, उससे संघ परिवार को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। इसके पहले 1992 में बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुलायम और कांशीराम ने भी इसी तरह का गठजोड़ कर भाजपा के सामने राजनीतिक सफलता पाई थी। इस चुनाव में भी यदि बहुजन समाज पार्टी मजबूती से चुनाव लड़ती तो संभवतः आज की तस्वीर कुछ अलग होती। संघ के साथ-साथ इस चुनाव परिणाम ने विपक्ष के लिए भी बड़ा सबक छोड़ा है।
तनाव का भी विश्लेषण
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के बीच तनाव की खबरों ने भी चुनाव परिणाम पर असर डाला है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। चुनाव परिणाम आने के बाद जिस तरह संघ परिवार के कुछ नेताओं ने भाजपा पर हमला बोला, उससे बहुत कुछ सामने आ गया है। हालांकि, बाद में मोहन भागवत ने भी तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने को महत्वपूर्ण सफलता बताकर तथाकथित मतभेद की खबरों पर पानी डालने की कोशिश की है, मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के नेता इंद्रेश कुमार भी अपने बयान से पलट चुके हैं, लेकिन जानकार मानते हैं कि अब भी दोनों संगठनों के बीच सब कुछ ‘ठीक-ठाक’ नहीं है। संघ परिवार इस बैठक में भाजपा से अपने संबंधों की भी पुनर्समीक्षा अवश्य करेगा।
संघ ने बताया
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर के अनुसार, प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली अखिल भारतीय स्तर की प्रांत प्रचारक बैठक में सभी प्रांत प्रचारक उपस्थित रहेंगे। संघ की संगठन योजना में कुल 46 प्रांत बनाये गए हैं। बैठक में संघ के प्रशिक्षण वर्ग के वृत्तांत एवं समीक्षा, आगामी वर्ष की योजना का क्रियान्वयन, सरसंघचालक मोहन भागवत का वर्ष 2024-25 की प्रवास योजना जैसे विषयों पर चर्चा होगी। साथ ही संघ शताब्दी वर्ष (2025-26) के कार्यक्रमों पर भी चर्चा करेगा। मोहन भागवत इस बैठक के लिए आठ जुलाई को ही रांची पहुंच जाएंगे।