रानीखेत: रोशन बानो से रोशनी बनी,धर्म परिवर्तन करने की बताई हैरान कर देने वाली वजह….

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रानीखेत: रोशन बानो से रोशनी बनी,धर्म परिवर्तन करने की बताई हैरान कर देने वाली वजह….

उत्तराखंड

रानीखेत में रोशन बानो से रोशनी बनी नर्स ने धर्म परिवर्तन की वजह परिजनों की प्रताड़ना बताया है। हालांकि परिजन बेटी के आरोपों को बेबुनियाद बताते हैं और उनका कहना है कि इसके पीछे कोई और है। रोशनी की बातों पर यकीन करें तो उन्हें अपनों से ही दर्द मिला।

चार साल से वह अपने परिजनों की प्रताड़ना सह रही थी। केवल पैसों के लिए उसका उपयोग किया जा रहा था। ऐसे में उन्होंने अपनी स्वेच्छा से सनातन धर्म अपनाया है और वह सम्मान के साथ जीवन बिताने की कोशिश में जुटी हैं।

रोशनी ने संवाद न्यूज एजेंसी के साथ अपना दर्द साझा किया। इस दौरान उनकी आंसू छलक पड़े। कहा कि उन्होंने पूरी लगन से पढ़ाई की और वर्ष 2017 में नागरिक चिकित्सालय रानीखेत में स्टाफ नर्स के पद पर उन्हें तैनाती पाई। रकम जमा कर उन्होंने हल्द्वानी के काठगोदाम में एक घर खरीदा तो यह बात परिजनों को खटक गई।
आए दिन मारपीट करते थे परिजन
उसके परिजन भाई साजिद के नाम पर रजिस्ट्री करने का दबाव बनाने लगे। जब उन्होंने इसका विरोध किया तो उनका उत्पीड़न शुरू हुआ। परिजन उसके साथ आए दिन मारपीट करते थे और भाई उसे जान से मारने की धमकी देता था। ऐसे में उन्होंने अपने परिवार से सभी रिश्ते तोड़ने का फैसला लिया और 24 दिसंबर 2022 को हल्द्वानी स्थित आर्य समाज मंदिर में सनातन धर्म अपनाया। कहा उन्होंने ऐसा कदम किसी के दबाव में नहीं बल्कि परिवार के उत्पीड़न से तंग आकर लिया।

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कहा जिस घर में बेटियों का सम्मान नहीं होता उस घर से किनारा करना ही सही है। वहीं इस बारे में रोशनी के पिता बसीर अहमद ने साफ तौर पर कहा कि बेटी के सभी आरोप निराधार हैं। कहा मैंने पूरी जिम्मेदारी से बेटी को पढ़ाया और बरेली से जीएनएम कराते हुए उसे अपने पैरों पर खड़ा किया। हल्द्वानी में मकान भी दिलवाया। बेटे के नाम पर मकान की रजिस्ट्री करने के दबाव का आरोप गलत है। हमें लगता है कि इसके पीछे उसे कोई भड़का रहा है, जिसका पता लगाने की वह कोशिश कर रहे हैं।
प्रशासनिक अधिकारी बनना चाहती थीं रोशनी
रोशनी ने कहा उनका बचपन से प्रशासनिक सेवा में जाना सपना था, जिसके लिए वह तैयारी में जुटीं थीं। वह छोटी बहन के साथ घर की भी पूरी जिम्मेदारी संभाल रहीं थीं। लेकिन परिजनों ने उनका साथ नहीं दिया। उनका मानना था कि यदि उनकी प्रशासनिक सेवा में तैनाती हो गई तो उन्हें उनसे पैसा नहीं मिलेगा। ऐसे में उन्हें अपने सपने को तोड़ना पड़ा।


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