सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट ने कहा कि जेल में बंद जिन लोगों की जमानत के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है, उनके मामलों को वरीयता देकर सुना जाना चाहिए। खासकर उच्चस्तर पर स्थगित मामलों की वरीयता दी जानी चाहिए। वह उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी भवाली में मानव तस्करी, लैंगिक न्याय एवं समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान पर न्यायिक सेमिनार पर बोल रहे थे।
वक्ताओं ने कहा कि मानव तस्करी और लैंगिक असमानता पर अंकुश के लिए देश में तमाम कानून बने हैं लेकिन समाज के कमजोर तबकों तक इन कानूनों को लेकर जागरूकता में कमी है। इसके लिए आम लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। यौन तस्करी से संबंधित मामले देश में लगातार बढ़ रहे हैं और इस वजह से अदालतों पर भी मुकदमों का बोझ बढ़ रहा है। इससे पुलिस और जांच एजेंसियों पर लगातार दबाव बढ़ रहा है।
इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट, उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति संजय कुमार मिश्रा, वरिष्ठ न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी, न्यायमूर्ति आलोक वर्मा, न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे, रजिस्ट्रार जनरल विवेक भारतीय शर्मा, पूर्व न्यायमूर्ति यूसी ध्यानी, डीजीपी अशोक कुमार ने संयुक्त रूप से सेमिनार का शुभारंभ किया।
समता का अधिकार और कमजोर वर्गों की मजबूती बने
आंबेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ की विषय विशेषज्ञ डॉ. प्रीति सक्सेना ने संविधान प्रदत्त समता के मूल अधिकारों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि समाज के कमजोर वर्गों जैसे महिला, बच्चे, गरीब, शारीरिक रूप से कमजोर लोगों के लिए न्याय तक पहुंच एक भ्रम है। उन्होंने बताया कि विधिक सेवा प्राधिकरण आगे आकर न्याय तक पहुंचे ताकि समता का अधिकार और कमजोर वर्गों की मजबूती बन सके।
ये रहे मौजूद
उच्च न्यायालय उत्तराखंड के निदेशक नितिन शर्मा, आईजेएम बंगलुरु रविकांत, शक्ति वाहिनी दिल्ली धनंजय टिंगल, डीआईजी निलेश आनंद भरणे, डीएम धीराज सिंह गर्ब्याल, डीएम युगल किशोर पंत, एसएसपी पंकज भट्ट, पालिकाध्यक्ष संजय वर्मा आदि।