दिल्ली हाईकोर्ट से 18 साल बाद मिला न्याय: जंगपुरा झुग्गी मामले पर दिया आदेश, डीडीए का चला था बुलडोर
उच्च न्यायालय ने जंगपुरा बी में झुग्गियों को बिना किसी नोटिस के ध्वस्त किए जाने के अठारह साल बाद दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) और दिल्ली शहरी आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) को इसके 43 पूर्व निवासियों का पुनर्वास करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने उनके पुनर्वास का निर्देश देते हुए 30 जनवरी 2015 के डीयूएसआईबी और डीडीए के फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें याचिकाकर्ताओं के राहत के दावे को खारिज कर दिया गया था। अब डीडभ्ए को हाल ही की दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति, 2015 के बजाय अपनी 2004 की पुनर्वास नीति के अनुसार याचिकाकर्ताओं को वैकल्पिक आवास प्रदान करना होगा।
2004 की नीति के अनुसार झुग्गीवासियों के पास 31 जनवरी 1990 से पहले या 1990 के बाद लेकिन 31 दिसंबर, 1998 से पहले हटाए जाने की तारीख तक साइट पर उनके अस्तित्व का दस्तावेजी प्रमाण होना चाहिए।
8 नवंबर, 2006 को एमसीडी और डीडीए ने बिना किसी पूर्व सूचना या निवासियों को सुनवाई का अवसर दिए बिना झुग्गी को ढहा दिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण और निशा तिवारी के जरिए याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि 500 से अधिक परिवार दो दशकों से अधिक समय से जंगपुरा बी में डीबीएस कैंप में रह रहे हैं।
अधिकांश याची दिहाड़ी मजदूर, कुछ रिक्शा चालक, कुछ दीवारों की सफेदी, पान की दुकान चलाने या साइकिल मरम्मत की दुकानों में काम करते हैं।
15 नवंबर, 2010 को हाईकोर्ट ने डीडीए और डीयूएसआईबी को पुनर्वास के लिए उनकी पात्रता निर्धारित करने के लिए एक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था।
इसके बाद याचिकाकर्ता अपने निवास के दावे को पुष्ट करने के लिए दस्तावेजों के साथ अधिकारियों के सामने पेश हुए। हालांकि, 2011 में अधिकारियों ने निष्कर्ष निकाला कि कोई सर्वेक्षण नहीं किया जा सकता क्योंकि अब उस स्थान पर झुग्गियां नहीं हैं।