राजधानी दिल्ली-एनसीआर इन दिनों घातक वायु प्रदूषण की चपेट में है। हवा में बढ़ते प्रदूषण के सूक्ष्म कण सांसों को चोक कर रहे हैं, लिहाजा खुली हवा में सांस लेना मुश्किल हो रहा है, आंखों में जलन बढ़ रही है और लोगों को सिरदर्द जैसी समस्याएं अधिक हो रही हैं।
मीडिया से बातचीत में डॉ खिलनानी कहते हैं, प्रदूषण का ये स्तर फेफड़ों के साथ-साथ हृदय स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुंचाने वाला हो सकता है। ऐसे में पहले से जिनको सांस की समस्या है, प्रदूषण के कारण इसके ट्रिगर होने का खतरा हो सकता है। ऐसे लोग यदि सक्षम हैं तो अगले छह से आठ सप्ताह के लिए दिल्ली से कहीं बाहर चले जाएं, ऐसा करके आप प्रदूषण से बचाव कर सकते हैं और सेहत को ठीक रख सकते हैं।
गौरतलब है कि दिल्ली और आसपास के इलाकों में धुंध की मोटी चादर छाई हुई है, जिससे कई प्रकार का स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहा है। डॉक्टर कहते हैं, घर के अंदर और बाहर के प्रदूषण के कारण क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) और फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ सकते हैं।
अमर उजाला से बातचीत में पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. अमृत सहाय कहते हैं, बढ़ता प्रदूषण उन लोगों के लिए तो खतरनाक है ही जिनको पहले से सांस की कोई दिक्कत है, इसके अलावा प्रदूषित हवा के अधिक संपर्क में रहना पहले से स्वस्थ लोगों में भी इन बीमारियों को बढ़ाने वाला हो सकता है।
दिल्ली में सर्दी की शुरुआत के साथ ही प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच जाता है। हवा में धूल, धुआं, पराली जलने और औद्योगिक कचरे से निकलने वाले जहरीले गैसों के मिश्रण के कारण लोगों के लिए सांस लेना कठिन होता जा रहा है। हवा में मौजूद पीएम 2.5 जैसे सूक्ष्म कण सीधे फेफड़ों तक जाकर फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करते हैं, जिससे सांस फूलने, खांसी और अस्थमा जैसी समस्याएं बढ़ जाती हैं।
एम्स की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रदूषण के दिनों में अस्थमा और सीओपीडी के मरीजों की संख्या लगभग 30% बढ़ जाती है। बच्चों और बुजुर्गों को इसका असर सबसे पहले महसूस होता है, क्योंकि उनकी इम्यून सिस्टम कमजोर होती है।
प्रदूषण सिर्फ फेफड़ों तक सीमित नहीं है। हवा में मौजूद जहरीले तत्व खून में ऑक्सीजन की मात्रा घटा देते हैं, जिससे हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा में लंबे समय तक रहने से हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा 20-25% तक बढ़ जाता है।








