सर्वाइकल कैंसर: महिलाओं के लिए अच्छी खबर, अब ब्लड टेस्ट से पता चलेगा आपको सर्वाइकल कैंसर तो नहीं?

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पिछले एक दशक के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि जिन बीमारियों के कारण हर साल लोगों की सबसे ज्यादा मौत हो रही है, उनमें हृदय रोगों के बाद कैंसर का दूसरा स्थान है। पहले की तुलना में कैंसर का निदान और इलाज तो अब अपेक्षाकृत आसान हो गया है पर ग्रामीण इलाकों में अब भी सीमित पहुंच के कारण कैंसर से मौत का जोखिम कम होता नहीं दिख रहा है। कैंसर, पुरुष हो या महिला, बच्चे हों या बुजुर्ग सभी आयु और लिंग वालों में देखा जा रहा है।

जब बात महिलाओं में होने वाले कैंसर की हो तो सबसे ज्यादा मामले स्तन और सर्वाइकल कैंसर के रिपोर्ट किए जाते रहे हैं। भारत में भी गर्भाशय ग्रीवा (सर्वाइकल) कैंसर एक महत्वपूर्ण स्वास्थ्य चिंता का विषय बना हुआ है, यह महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है।

समय पर कैंसर का पता न चल पाना इस कैंसर के बढ़ने का प्रमुख कारण माना जाता है, हालांकि अब ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। एम्स के शोधकर्ताओं की एक टीम ने ब्लड सैंपल से इस कैंसर का पता लगाने की तकनीक विकसित कर ली है।

 

सर्वाइकल कैंसर के निदान वाले टेस्ट बहुत महंगे

सर्वाइकल कैंसर का पता लगाने के लिए अब तक पैप या एचपीवी टेस्ट तथा असामान्य परिणाम मिलने पर कोल्पोस्कोपी या बायोप्सी जैसे टेस्ट कराने की सलाह दी जाती रही है। हालांकि कि टायर-3 वाले शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी उपलब्धता कम होने के कारण लोगों में समय पर कैंसर का पता नहीं चल पाता था।

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पैप टेस्ट के लिए अस्पताल में जाना पड़ता है और इसमें प्राइवेट पार्ट्स के सैंपल भी लिए जाते हैं। ये टेस्ट न केवल महंगे होते हैं बल्कि इसकी पहुंच भी अभी लोगों तक काफी कम है।

नई तकनीक में खून के सैंपल से ही जांच के माध्यम से पता किया जा सकेगा कि कहीं आपको कैंसर तो नहीं है?

 

एम्स के विशेषज्ञों ने किया अध्ययन

एम्स के विशेषज्ञों ने बताया, अध्ययन के दौरान पाया गया है कि हमारे खून में ऐसे सेल्स फ्री (सीएफ) डीएनए मौजूद होते हैं, जिसका बढ़ना सर्वाइकल कैंसर का कारक हो सकता है।

एम्स के आइआरसीएच के मेडिकल लैब ऑन्कोलॉजी विभाग के विशेषज्ञ डा मयंक सिंह का कहना है कि मरीज के खून का सैंपल लेकर लैब में ड्रापलेट डिजिटल पीसीआर (डीडीपीसीआर) जांच करके उन सेल्स फ्री डीएनए की पहचान और इस कैंसर का पता लगाने में मदद मिल सकती है।

 

 

अध्ययन में क्या पता चला?

इस अध्ययन के लिए कैंसर से पीड़ित 35 और 10 स्वस्थ महिलाओं को शामिल किया गया। टेस्ट के लिए इनके ब्लड सैंपल एकत्रित किए गए। कैंसर से पीड़ित महिलाओं में सीएफ डीएनए का स्तर अधिक था, वहीं जिन्हें कैंसर नहीं था उनमें इसका स्तर कम पाया गया। कैंसर के इलाज के बाद फिर किए गए टेस्ट में सीएफ डीएनए का स्तर कम हो गया। इस आधार पर वैज्ञानिकों ने माना कि यह सर्वाइकल कैंसर के इलाज में अहम मार्कर हो सकता है।

अध्ययन का ये सैंपल काफी छोटा है, इसलिए इसके विस्तृत जांच के लिए विशेषज्ञों की टीम आगे शोध कर रही है।

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लक्षणों पर ध्यान देते रहना भी जरूरी

इस टेस्ट के अलावा सभी महिलाओं को सर्वाइल कैंसर के लक्षणों पर भी निरंतर ध्यान देते रहने की भी सलाह दी जाती है।

आमतौर पर शुरुआती स्तर पर सर्वाइकल कैंसर में कोई भी लक्षण नहीं नजर आते हैं लेकिन जैसे-जैसे यह बढ़ता है, इसके सामान्य लक्षणों में योनि से असामान्य रक्तस्राव, योनि स्राव में परिवर्तन तथा संभोग के दौरान तेज दर्द होने जैसी कई दिक्कतें हो सकती हैं। जिन लोगों के परिवार में पहले से किसी को कैंसर रहा हो उन्हें विशेष सावधानी बरतते रहने की सलाह दी जाती है।

सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए वैक्सीनेशन कराना सबसे कारगर तरीका माना जाता है।

 

 

 

नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 


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