
जम्मू से कठुआ की ओर बढ़ने पर सांबा-कठुआ की सीमा पर एंट्री प्वाइंट लोंडी मोड़ से लडवाल होते हुए भारत का आखिरी गांव है बोबिया। बोबिया से पहाड़पुर तक की 16 पंचायतों के लगभग 30 हजार लोग जीरो लाइन पर रहते हैं। पूरे गांव में डर और दहशत नहीं है, पर पहलगांव आतंकी हमले के बाद उत्पन्न हुई स्थिति में माहौल तनावपूर्ण है। गांव का कोई भी व्यक्ति यह कहना नहीं भूलता कि दीवारों से भले ही गोलियों के निशान मिट गए हैं, मगर स्मृतियों में उसकी दहशत अब भी ताजा है। यह इलाका जितना शांत दिखता है, दरअसल उतना है नहीं। बीते 35 वर्षों से आतंकियों की घुसपैठ के कारण अक्सर सुर्खियों में रहता आया है।
पहलगाम के बायसरन में जो कुछ हुआ, उसके बाद से यहां तनावपूर्ण शांति है। संघर्ष विराम के करीब चार वर्षों बाद इस सेक्टर में भले फिलहाल हालात सामान्य हों, लेकिन शाम ढलने के बाद गांव की चौपाल पर बुजुर्गों का इकट्ठा होना, घरों की छतों पर घूमना, दिन ढलने के बाद घर के आंगन में बिना किसी डर के बच्चों का खेलना फिलहाल बंद है। बलवंत राज कहते हैं कि इलाके में लोग रात बंकरों में गुजार रहे हैं। खेतों में जाने के लिए भी किसानों को सोचना पड़ रहा है। गेहूं की फसल की कटाई तो हो गई है, अगली फसल की तैयारी कैसे करें, यह उनके लिए चिंता बनी हुई है।