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डिजिटल अरेस्ट: ईडी का डिजिटल अरेस्ट को लेकर बड़ा खुलासा,2 देशों से रची गई साइबर अपराध की साजिश,यूं कमाए 159 करोड़

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भारत में साइबर अपराध या धोखेबाजी का खेल कितने तरीके से खेला जा रहा है? प्रवर्तन निदेशालय की जांच में इसकी बानगी देखने को मिली है। नकली सीबीआई और फर्जी कस्टम अधिकारी बन जाते हैं, बैंक भी नकली और साइबर अपराध व डिजिटल अरेस्ट के जरिए जो कमाई की, उसे शेल कंपनियां बनाकर निवेश करने का प्रयास किया गया। साइबर धोखेबाजों ने फर्जी आईपीओ आवंटन और धोखाधड़ी वाले ऐप्स के माध्यम से शेयर बाजार में निवेश से जुड़ी योजनाओं का लालच देकर व उच्च रिटर्न का वादा कर निर्दोष व्यक्तियों को अपने जाल में फंसाया। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से साइबर धोखेबाजी का खेल खेला गया। हांगकांग और थाईलैंड में रहने वाले साइबर अपराधियों ने लोगों को निशाना बनाने के लिए भारत में एक गैंग तैयार किया। साइबर धोखेबाजों ने 159.70 करोड़ रुपये की अवैध कमाई की।

प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले माह विशेष न्यायालय (पीएमएलए), बंगलूरू के समक्ष आठ आरोपी व्यक्तियों (सभी ईडी द्वारा गिरफ्तार) चरण राज सी, किरण एस के, शाही कुमार एम, सचिन एम, तमिलारासन, प्रकाश आर, अजित आर और अरविंदन के खिलाफ अभियोजन शिकायत (पीसी) दायर की है। इसमें 24 कंपनियां और उनकी 159 करोड़ रुपये की साइबर अपराध से जुड़ी आय भी शामिल है। गिरफ्तार किए गए सभी आरोपी फिलहाल न्यायिक हिरासत में हैं।

 

विशेष न्यायालय, बंगलूरू ने 29 अक्तूबर को पीसी का संज्ञान लिया है। ईडी ने पूरे भारत में कई कानून प्रवर्तन एजेंसियों (एलईए) द्वारा दर्ज विभिन्न एफआईआर के आधार पर उक्त मामले की जांच शुरू की थी। इन प्राथमिकियों में आरोप लगाया गया है कि कुछ अज्ञात साइबर धोखेबाजों ने फर्जी आईपीओ आवंटन और धोखाधड़ी वाले ऐप्स के माध्यम से शेयर बाजार में निवेश से जुड़ी योजनाओं का लालच देकर, उच्च रिटर्न का वादा करके निर्दोष व्यक्तियों को अपने जाल में फंसाया है। इसके अलावा, कुछ पीड़ितों को सीमा शुल्क और सीबीआई द्वारा फर्जी गिरफ्तारी की आड़ में बरगलाया गया है।

ईडी के मुताबिक, डिजिटल अरेस्ट एवं साइबर अपराध से जुड़ी दूसरी तकनीकों के जरिए लोगों फर्जी ‘फंड नियमितीकरण प्रक्रिया’ के तहत विभिन्न शेल कंपनियों में भारी धनराशि हस्तांतरित की गई। आरोपियों ने फर्जी शेयर बाजार, निवेश और डिजिटल गिरफ्तारी, आदि का इस्तेमाल किया है। ये मुख्य रूप से फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के माध्यम से लोगों को अपने जाल में फंसाते थे। इनके तरीके को ‘सूअर-कसाई’ घोटाले के रूप में भी जाना जाता है।

नकली शेयर बाजार और निवेश घोटाले से ये आरोपी, पीड़ितों को उच्च रिटर्न का वादा करते थे। नकली वेबसाइटों और भ्रामक व्हाट्सएप समूहों का उपयोग किया गया। कुछ समूह ऐसे भी बनाए गए, जो प्रतिष्ठित वित्तीय फर्मों से जुड़े हुए प्रतीत होते थे। इससे लोगों को इन घोटालेबाजों पर भरोसा हुआ। आरोपियों ने नकली विज्ञापनों और मनगढ़ंत सफलता की कहानियों के माध्यम से लोगों के बीच अपनी विश्वसनीयता स्थापित की।

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इसके बाद साइबर धोखेबाजों ने पीड़ितों को एक बड़ी मात्रा में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। धोखेबाजों ने डिजिटल गिरफ्तारी का सहारा भी लिया। गैंग के ही कुछ सदस्य, खुद को कानून प्रवर्तन अधिकारियों के रूप में प्रस्तुत करते थे। वे पीड़ितों को अपनी बचत स्थानांतरित करने के लिए ऐसे परिदृश्य बनाकर डराते थे, जिससे सामने वाला व्यक्ति डर कर अपनी कमाई में उन्हें हिस्सा देने के लिए राजी हो जाता था। ईडी की जांच से पता चला कि आरोपियों ने पीड़ितों को धोखा देने और अवैध आय को सफेद करने के लिए भी एक जटिल योजना तैयार की थी। जालसाजों ने सैकड़ों सिम कार्ड जुटाए थे। इनका इस्तेमाल शेल कंपनियों के बैंक खातों का संचालन और व्हाट्सएप खाते बनाने के लिए किया गया। इन सिम कार्ड के द्वारा आरोपियों को अपनी असल पहचान छिपाने का मौका मिल जाता है। साथ ही आरोपियों के लिए पीड़ितों को धोखा देने के चांस पुख्ता हो जाते हैं।

ईडी की जांच से पता चला कि घोटालेबाजों ने साइबर अपराधों से प्राप्त आय के अधिग्रहण और शोधन की सुविधा के लिए तमिलनाडु, कर्नाटक आदि जैसे विभिन्न राज्यों में 24 फर्जी कंपनियां बनाई हैं। ये शेल कंपनियां, जो मुख्य रूप से सह-कार्य स्थानों (जहां कोई वास्तविक व्यावसायिक उपस्थिति मौजूद नहीं है) के पते पर पंजीकृत हैं। इन कंपनियों के व्यवसाय की शुरुआत के प्रमाण के रूप में कंपनी रजिस्ट्रार के समक्ष फाइलिंग में नकली बैंक विवरण का उपयोग किया गया है।

इन फर्जी कंपनियों के अलावा, घोटालेबाजों ने साइबर अपराधों से उत्पन्न अपराध की आय (पीओसी) को स्थानांतरित करने और छिपाने के लिए भी कई तरीकों का इस्तेमाल किया है। इस आय को क्रिप्टोकरेंसी में भी बदला गया। इसके बाद उसे विदेश में स्थानांतरित कर दिया गया। साइबर धोखाधड़ी से उत्पन्न पीओसी को खत्म करने के उद्देश्य से कई कंपनियों को शामिल किया गया था। ईडी ने जब कई कंपनियों का छापा मारा तो निदेशकों ने दावा किया कि वे अपनी भूमिकाओं से अनजान थे। उन्हें कुछ नहीं बताया गया था।

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ईडी की जांच से पता चला है कि कंपनियों के निगमन के लिए इस्तेमाल किए गए बैंक विवरण नकली थे। शेल कंपनियों के इस जाल ने साइबर अपराधियों को अपनी पहचान अस्पष्ट करने और इन पीओसी के वास्तविक लाभार्थियों को छिपाने में सक्षम बनाया है।

भारत से बाहर हांगकांग और थाईलैंड में रहने वाले कुछ व्यक्तियों ने कई पीड़ितों को निशाना बनाने के लिए भारत में स्थित अपने सहयोगियों की सक्रिय सहायता से एक परिष्कृत साइबर धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग ऑपरेशन को अंजाम दिया। इन विदेशी घोटालेबाजों ने व्हाट्सएप के माध्यम से भेजे गए नकली दस्तावेजों का उपयोग कर डिजिटल हस्ताक्षर बनाने, फर्जी कंपनियों की स्थापना करने और बैंक खाते खोलने के लिए डमी निदेशकों के रूप में काम करने के लिए भारत में व्यक्तियों के साथ समन्वय किया था।

आरोपी व्यक्तियों में से एक, चरण राज सी ने निदेशक पद के लिए व्यक्तियों की भर्ती और बैंक खाता खोलने के प्रबंधन में इस योजना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। शशि कुमार एम (आरोपी) ने कई शेल कंपनियों को शामिल करने में सहायता की है जो अपराध की आय को इकट्ठा करने और उसे बैंकिंग प्रणाली में एकीकृत करने में सहायक बनीं। जांच के दौरान, जब चरण राज सी के आवास की तलाशी ली गई तो कई दस्तावेज और सामान जब्त किए गए। इनमें शेल कंपनी की मुहर वाली एक डायरी, बैंक खाता खोलने का विवरण देने वाले हस्तलिखित नोट, चेक और बैंकिंग दस्तावेज व डमी निदेशकों के पहचान वाले दस्तावेज शामिल हैं।

कंपनी से संबंधित ऐसे दस्तावेज भी बरामद किए गए, जो निवेश साइबर-धोखाधड़ी में शामिल शेल कंपनियों के एक नेटवर्क का खुलासा करते हैं। आरोपी किरण एसके, सचिन एम और तमिलारासन से जुड़ी विभिन्न कंपनियों की ईडी जांच में धोखाधड़ी गतिविधियों और मनी लॉन्ड्रिंग में व्यापक संलिप्तता का पता चला है। कई शेल कंपनियों से जुड़े किरण एस के का संबंध विदेशी घोटालेबाजों द्वारा बनाई गई कई शेल संस्थाओं के बैंक खातों से था।

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उन्होंने  इन कंपनियों को शामिल करने के लिए फर्जी दस्तावेज जमा किए थे। कई कंपनियों में निदेशक रहे सचिन एम ने विदेशी घोटालेबाजों को डमी निदेशकों की भर्ती करने और बैंक खातों की सुविधा प्रदान करने में सहायता करने की बात स्वीकार की है। आरोपी को उसकी अवैधता के बारे में अच्छी तरह पता था। व्हाट्सएप डिटेल से पता चला है कि वह इस धोखेबाजी के ऑपरेशन में सक्रिय रूप से शामिल था।

तमिलरासन ने भारतीय और विदेशी दोनों घोटालेबाजों के साथ सहयोग कर साइबर धोखेबाजी की गतिविधियों को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने साइबरफॉरेस्ट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड सहित शेल कंपनियों के लिए बैंक खाते खोलने में सहायता की। साइबर अपराध से उनके संबंध की जानकारी होने के बावजूद उसने जानबूझकर इन कार्यों को जारी रखा। चेकबुक और संचार रिकॉर्ड जैसे आपत्तिजनक सबूतों ने इस निष्कर्ष का समर्थन किया कि इन व्यक्तियों ने एक ऐसे सिंडिकेट में भाग लिया था, जो पूरे भारत में साइबर धोखाधड़ी से प्राप्त धन को वैध बनाता था।

ईडी की जांच से भारत में साइबर अपराधों में शामिल शेल कंपनियों से जुड़े धोखाधड़ी वाले बैंकिंग लेनदेन को आगे बढ़ाने के लिए व्हाट्सएप समूहों के उपयोग का पता चला है। आरोपी व्यक्तियों ने लेनदेन को अधिकृत करने के लिए ओटीपी की प्राप्ति और साझाकरण का समन्वय किया। साइबरफॉरेस्ट टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड और ड्रीमनोवा टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड सहित कई कंपनियों को उनके मूल को अस्पष्ट करने के लिए अपराध की आय को छिपाने के मुखौटे के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

अरविंदन और प्रकाश जैसे निदेशकों ने जानबूझकर इन लेनदेन, धोखाधड़ी में इस्तेमाल होने वाले खातों को खोलने और प्रबंधित करने में मदद की। ईडी की जांच में पता चला कि विभिन्न खातों के माध्यम से कुल 159.70 करोड़ रुपये की अवैध धनराशि के पीओसी का इस्तेमाल किया गया। साथ ही क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल धन को छुपाने और विदेश में स्थानांतरित करने के लिए किया गया। ईडी ने साइबर अपराध से प्राप्त रुपये की आय पर भी रोक लगा दी है।

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