दीपावली पूजन और दीपदान किस दिन करें इस पर उत्तराखंड में भारी भ्रम है। पंचपुरी हरिद्वार के ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि दीपावली पूजन के लिए प्रदोष काल, निशीथ काल, महा निशीथ काल और स्वाति नक्षत्र केवल 31 अक्तूबर की रात्रि में उपलब्ध हैं। इसलिए दीपावली 31 को मनानी चाहिए। वहीं, चारधाम में एक नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी।
गंगा सभी ने भी एक नवंबर को ही दीपावली मनाने का पंचांग जारी किया है। गंगा सभा का मानना है कि यदि दो दिन की अमावस्या होती है तो दूसरे दिन ही दीपावली पूजन और मां लक्ष्मी का पूजन किया जाना चाहिए। एक तारीख में सूर्योदय के समय भी अमावस्या है और सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में भी अमावस्या है। इसलिए एक नवंबर को दीपावली मनानी चाहिए।
मान्यता के अनुसार दीपावली का पर्व सतयुग और उसके बाद त्रेतायुग की दो घटनाओं से जुड़ा है। सतयुग में कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर समुद्र मंथन से महालक्ष्मी प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी पूजन तभी सतयुग से होता आ रहा है।
कालांतर में त्रेतायुग आया, भगवान विष्णु ने रामावतार लिया। संयोग से रावण वध के बाद श्रीराम छोटी दिवाली के दिन भरत को साथ लेकर अयोध्या पहुंचे। अगले दिन अमावस्या को लक्ष्मी पूजन के साथ ही राम-जानकी के आगमन पर देशभर में दीप जलाए गए। तब से लक्ष्मी और राम की पूजा एक साथ दीपावली पर्व के रूप में जुड़ गई। कलयुग में वही पर्व चला आ रहा है।
31 अक्तूबर को दीपावली के लिए विद्वानों के मत
– आचार्य चंद्रशेखर शास्त्री, सीकरी तीर्थ
पंच पर्व को लेकर असमंजस की स्थिति अच्छी नहीं है। एक नवंबर को दिवाली मनाना शास्त्र सम्मत नहीं। ज्योतिष सूर्य सिद्धांत कहता है कि तिथि वार योग एक खगोलीय प्रक्रिया है, इसमें परिवर्तन संभव है। 31 अक्तूबर को पूर्ण प्रदोषकाल और रात्रि व्यापिनी अमावस्या पूर्ण प्रामाणिक है। इसके उपलब्ध होते एक नवंबर को प्रतिपदा युक्त दिवाली मनाना पूरी तरह गलत है। स्वधर्म की रक्षा के लिए 31 अक्तूबर को ही दिवाली मनाएं।
– ज्योतिषाचार्य पंडित विजय कुमार जोशी, ज्योतिष अनुसंधान केंद्र, कनखल
दीपावली एक नवंबर को मनाई ही नहीं जा सकती। अमावस्या से प्रतिपदा का कार्तिक में स्पर्श अनर्थ उत्पन्न करता है। राज मार्तंड ग्रंथ का स्पष्ट उल्लेख है कि दीपावली अमावस्या का स्पर्श चतुर्दशी से होना चाहिए, प्रतिपदा से कदापि नहीं। व्यास, गर्ग आदि ऋषियों के साथ सूर्य सिद्धांत भी यही प्रतिपादन करता है। गृहस्थों और तंत्र विद्या साधना के लिए अमावस्या पूरी रात होनी जरूरी है। प्रदोष काल में लक्ष्मी, गणेश और कुबेर का पूजन होता है। अर्धरात्रि में वरदा लक्ष्मी और काली पूजन 31 अक्तूबर को ही संभव है।
– डॉ. पंडित प्रदीप जोशी, ज्योतिषाचार्य