छठ पूजा का जिक्र होते ही घाट पर महिलाओं द्वारा पूजा करने का दृश्य याद आता है। इस मनमोहक दृश्य में सिर पर साड़ी का पल्लू लिए, मांग से गहरा नारंगी रंग का सिंदूर जो कि माथे से होता हुआ नाक तक खिंचा दिखता है। छठ पूजा में सबसे खास महिलाओं के सिंदूर लगाने की परंपरा है, जिसे देखकर ही बताया जा सकता है कि यह छठ पूजा के लिए तैयार हैं। हालांकि ये सिर्फ सजने संवरने की परंपरा नहीं है, बल्कि एक गहरा सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रतीक है।
भारतीय संस्कृति में सिंदूर को सौभाग्य, ऊर्जा और जीवन शक्ति का प्रतीक माना गया है और छठ पूजा में इसका विशेष महत्व है क्योंकि यह पर्व नारी शक्ति, समर्पण और सूर्य की ऊर्जा से जुड़ा है। छठ पूजा में नाक से माथे तक लगाया गया ऑरेंज सिंदूर न केवल सौभाग्य का प्रतीक है, बल्कि सूर्य की उषमा और स्त्री की शीतलता का मिलन भी है। यह बताता है कि भारत की हर परंपरा में विज्ञान की गहराई और आत्मा की रोशनी साथ-साथ चलती है और यही छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता है। आइए जानते हैं छठ पूजा में महिलाएं नारंगी रंग का सिंदूर क्यों लगाती हैं, इसका धार्मिक औऱ वैज्ञानिक कारण। साथ ही नाक से माथे तक सिंदूर क्यों लगाया जाता है।
सिंदूर के रंग का सूर्य से संबंध
छठ पूजा सूर्य देव की आराधना का पर्व है। सिंदूर का गहरा नारंगी रंग सूर्य की किरणों का प्रतीक है। इसे ऊर्जा, तेज और जीवन का रंग भी मान सकते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी, नारंगी रंग सकारात्मक कंपन उत्पन्न करता है, जिससे मनोबल बढ़ता है और शरीर में रक्त प्रवाह सक्रिय होता है। जब महिलाएं नाक से माथे तक सिंदूर लगाती हैं तो यह रंग सूर्य की दिव्यता और स्त्री ऊर्जा के मिलन का संकेत बन जाता है।
सिंदूर लगाने का स्थान और उसका वैज्ञानिक प्रभाव
नाक से माथे तक का भाग यानी अग्निचक्र और आज्ञाचक्र के बीच की रेखा होती है, जो शरीर के न्यूरोलॉजिकल पॉइंट्स से जुड़ी होती है। सिंदूर लगाने से,
- इस क्षेत्र में रक्त प्रवाह और तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है।
- तनाव, सिरदर्द और मानसिक थकान कम होती है।
- यह मस्तिष्क को ठंडक और मन को एकाग्रता देता है।
आयुर्वेद के अनुसार, सिंदूर में हल्दी और पारा होता है। हेल्दी में एंटीसेप्टिक और ऊष्मा नियंत्रक गुण पाए जाते हैं। यह सर्द मौसम में शरीर को तापीय संतुलन प्रदान करता है — यही कारण है कि छठ पूजा, जो अक्सर कार्तिक मास के शीतल दिनों में होती है, में इसका प्रयोग अत्यंत लाभकारी माना गया है।
नाक से माथे तक सिंदूर लगाने का धार्मिक और सामाजिक अर्थ
छठ में महिलाएं यह सिंदूर इसलिए लगाती हैं क्योंकि यह उनके सौभाग्य, समर्पण और प्रार्थना का प्रतीक है। नाक से माथे तक सिंदूर लगाने का अर्थ है —
“मैं अपने पति और परिवार की दीर्घायु, सूर्य समान तेज और सुख की कामना करती हूँ।”
छठ पूजा में व्रती महिलाएं स्वयं को सूर्य की तेजस्विता और देवी उषा की शुद्धता के साथ जोड़ती हैं, इसलिए सिंदूर को इस दिन “पवित्र अग्नि रेखा” भी कहा जाता है।
क्यों ऑरेंज नारंगी सिंदूर ही होता है खास?
छठ में महिलाएं लाल नहीं बल्कि ऑरेंज टोन का सिंदूर लगाती हैं, क्योंकि यह रंग न तो पूरी तरह आक्रामक है, न ही निष्क्रिय। यह संतुलन और उर्जा दोनों का प्रतीक है। सूर्य की केसरिया आभा इसी रंग से मिलती-जुलती है, इसलिए छठ पूजा में यह रंग सूर्य की शक्ति और स्त्री की आस्था दोनों का प्रतिनिधित्व करता है।







