भारत के इतिहास में कई ऐसी वीरांगनाएं हुईं जिन्होंने अपने अद्वितीय शासन और दूरदर्शिता से इतिहास के पन्नों और कहानियों में अमिट छाप छोड़ी। इन्हीं में से एक थीं मालवा की रानी अहिल्या बाई होलकर। उन्हें आज भी एक आदर्श प्रशासिका, न्यायप्रिय शासिका और धर्मपरायण महिला के रूप में याद किया जाता है। हर साल 31 मई को महारानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती मनाई जाती है।
इस वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 मई को भोपाल में अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती के मौके पर आयोजित महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम और महिला सम्मेलन में सहभागिता करेंगे। अहिल्या बाई होलकर केवल एक शासिका नहीं थीं, वे धर्म, न्याय, सेवा और स्त्री शक्ति का प्रतीक भी थीं। अहिल्याबाई होलकर की जयंती के मौके पर उनके जीवन और उपलब्धियों के बारे में जानिए, ताकि हर नारी अहिल्याबाई होलकर से सीख ले सकें।
अहिल्याबाई होलकर का जीवन परिचय
महारानी अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित चौंडी गांव में हुआ था। उनके पिता मनोकजी शिंदे ग्राम पटेल थे। अहिल्याबाई धनगर समुदाय से ताल्लुक रखती थीं। जिस दौर में स्त्रियों को घर की चार दीवारी में रखा जाता है, उस समय अहिल्या बाई को पढ़ने लिखने का अवसर मिला तो असाधारण था।
एक किसान परिवार में जन्मी बालिका अहिल्याबाई को जब मालवा के शासक मल्हार राव होलकर ने देखा तो उन्हें अपने पुत्र खांडेराव होलकर की बहू के रूप में चुन लिया।
अहिल्याबाई की शादी और निजी जीवन
अहिल्याबाई की शादी 8 साल की उम्र में खांडेराव होलकर से हुई। लेकिन अहिल्या पर दुखों का पहाड़ तब टूटा जब 1754 में उनके पति खांडेराव की मृत्यु हो गई और बाद में 1766 में मालवा के शासक और अहिल्या के ससुर मल्हार राव होलकर भी चल बसे। इतना ही नहीं उन्होंने अपने पुत्र मालेराव भी शीघ्र ही खो दिया। जब मालवा की गद्दी बिना शासक के थी, तब अहिल्याबाई ने शासन की बागडोर अपने हाथों में ली।
अहिल्याबाई ने संभाला शासन
अहिल्याबाई ने 1767 से 1795 तक मालवा राज्य की बागडोर संभाली। राजगद्दी संभालते हुए महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने आसपास के राज्यों में यह सूचना पहुंचा दी। उनके सेनापति और पेशवा बाजीराव ने उनकी सहायता की। अपने शासन काल में उन्होंने इंदौर को एक व्यवस्थित और सुंदर नगर में परिवर्तित किया। उन्होंने बिना युद्ध के प्रशासनिक क्षमता, न्याय व्यवस्था और परोपकारी कार्यों से शासन चलाया। साथ ही हर धर्म, जाति और समुदाय के साथ समान न्याय और सम्मान का व्यवहार किया।
नारी शक्ति की मिसाल
उन्होंने एक महिला होकर उस दौर में शासन चलाया जब स्त्रियों को राजनीतिक भागीदारी का अधिकार भी नहीं था। अपनी बुद्धिमत्ता, करुणा और नेतृत्व क्षमता से उन्होंने नारी सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण पेश किया। अहिल्याबाई ने राज्य को मजबूत करने के लिए अपने नेतृत्व में महिला सेना की स्थापना की। अहिल्याबाई ने स्त्रियों को उनका उचित स्थान दिया। अहिल्या ने लड़कियों की पढ़ाई-लिखाई को विस्तार देने का प्रयास किया।
धार्मिक और सामाजिक योगदान
इतना ही नहीं महारानी अहिल्याबाई होलकर ने काशी, गया, सोमनाथ, द्वारका, रामेश्वरम, बद्रीनाथ, केदारनाथ, अयोध्या, उज्जैन जैसे कई धार्मिक स्थलों पर मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया। काशी का विश्वनाथ मंदिर दोबारा बनवाया, जिसे मुगलों ने ध्वस्त कर दिया था। वह हर साल गरीबों, ब्राह्मणों, पुजारियों और जरूरतमंदों को दान दिया करती थीं।
13 अगस्त 1795 को अहिल्याबाई का निधन हुआ, लेकिन वे आज भी इंदौर और भारत के कई हिस्सों में अपने कार्यों के लिए सम्मानित और पूजनीय हैं। इंदौर में अहिल्या बाई का स्मारक और उनकी प्रतिमा आज भी उनके गौरवशाली शासन की याद दिलाती है। भारत सरकार द्वारा उनके सम्मान में डाक टिकट जारी किया गया है।