कुमाऊंनी बोली-भाषा की ठसक और पारंपरिक लोक धुनों को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाले साहित्यकार और रंगकर्मी जुगल किशोर पेटशाली का निधन हो गया। 79 वर्षीय पेटशाली ने बृहस्पतिवार की रात करीब एक बजे अल्मोड़ा के दलबैंड में पैतृक आवास पर अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से साहित्य, संगीत और रंगमंच जगत में शोक की लहर है।
कुमाऊं की लोककथाओं, संस्कृति और लोकधुनों के साधक जुगल किशोर पेटशाली को जयशंकर प्रसाद पुरस्कार, सुमित्रानंदन पंत पुरस्कार, उत्तराखंड संस्कृतिकर्मी पुरस्कार और कुमाऊं गौरव सम्मान से नवाजा गया। उन्होंने कुमाऊंनी लोक संस्कृति को संजोने और उसे वैश्विक मंच तक पहुंचाने का काम किया। राजुला-मालूशाही और अजुवा-बफौल जैसी कृतियों ने देश-दुनिया का ध्यान खींचा।







