केंद्र सरकार दिल्ली हाईकोर्ट में चल रही समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई के सीधे प्रसारण live streaming के पक्ष में नहीं है। सरकार ने हाईकोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा है कि यह विषय राष्ट्रीय महत्व का नहीं है।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा कि याचिकाकर्ता सीधे प्रसारण की मांग कर कोर्ट पर नाटकीय प्रभाव डालना और सहानुभूति अर्जित करना चाहते हैं। न्यायपालिका पर उन लोगों की संख्या पर कोई असर नहीं पड़ता, जो अदालती कार्यवाही देखते हैं या ऐसी कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने वाले यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हैं। कोर्ट कानून और तथ्यों से जुड़े मामलों के निपटारे के लिए सार्वजनिक तारीफ नहीं चाहती। लाइव स्ट्रीमिंग की सामाजिक पहुंच न्याय प्रणाली का हिस्सा नहीं हो सकती। हलफनामे में यह भी कहा गया है कि अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन व दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों की अदालतों या अंतरराष्ट्रीय कोर्ट की कार्यवाही का सीधा प्रसारण होता है, के साथ भारत की तुलना गलत है।
दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ के समक्ष मंगलवार को मामले की सुनवाई होने की संभावना है। हाईकोर्ट के समक्ष दायर कई याचिकाओं में कई समलैंगिक दंपनियों ने मांग की है कि विशेष विवाह कानून (Special Marriage Act) , हिंदू विवाह कानून (Hindu Marriage Act) और विदेशी विवाह कानून (Foreign Marriage Act) के तहत उनके विवाह को मंजूरी दी जाए।
कर्नाटक और मुंबई के निवासी अखिलेश गोडी, प्रसाद राज दांडेकर और श्रीपद रानाडे ने अभिजीत अय्यर मित्रा की लंबित याचिका की सुनवाई के सीधे प्रसारण के लिए आवेदन दायर किया है। इनकी याचिका में हाईकोर्ट से आग्रह किया गया है कि वह मामले की अंतिम दलीलों का यूट्यूब चैनल या किसी अन्य प्लेटफॉर्म के माध्यम से सीधे प्रसारण का निर्देश दे।
केंद्र ने उनकी अर्जी का विरोध किया है। केंद्र ने इसे खारिज करने की मांग करते हुए कहा कि डेटा की सुरक्षा सहित नियमों का व्यापक ढांचा तैयार करने के बाद ही सीधे प्रसारण की अनुमति दी जा सकती है।