
हिंदू धर्म में कई देवी-देवता हैं। लगभग सभी को समर्पित कई मंदिर भी हैं, जहां उनकी पूजा होती है। जैसे जम्मू में वैष्णो देवी धाम से लेकर 52 शक्तिपीठ, अमरनाथ मंदिर से लेकर 12 ज्योतिर्लिंग और इसी तरह भगवान गणेश, हनुमान जी और अन्य मंदिर। लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि किसी मंदिर का नाम सास-बहू के नाम पर हो। भारत में एक ऐसा भी मंदिर है, जिसका नाम सास-बहू है। नाम से ही लोग इस मंदिर को सास-बहू के रिश्ते और सास-बहू से संबंधित किसी पौराणिक कथा से जोड़कर विचार कर रहे होंगे। लेकिन ऐसा नही है। इस मंदिर में न तो देवी पूजा होती है और ना ही यह स्थान सास-बहू से संबंधित है। फिर भी इस मंदिर का नाम सास-बहू क्यों पड़ा, ये जानने के लिए पहले इस मंदिर के बारे में जान लीजिए।
कहां स्थित है सास-बहू मंदिर
भारत के राजस्थान राज्य के अलवर जिले में सास-बहू मंदिर स्थित है। यह मंदिर जयपुर से 150 किमी दूर है तो उदयपुर से लगभग 20 किमी दूर छोटे से नागदा गांव में स्थित है। मंदिर का इतिहास लगभग 100 साल से अधिक पुराना है।
मंदिर का इतिहास
10वीं शताब्दी में इस मंदिर को स्थापित किया गया था। इसकी वास्तुकला मध्यकालीन भारतीय शैली में है। मंदिर की दीवारों पर रामायण और महाभारत की कथाओं की कलाकृतियां उकेरी गई हैं। मंदिर के चारों तरफ जंगल, पहाड़ और हरियाली है। यहां का शांत वातावरण और कलात्मक नक्काशी सैलानियों को आकर्षित करती है।
क्यों कहते हैं सास-बहू का मंदिर
दरअसल मंदिर का नाम सहस्त्रबाहु मंदिर है। यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है जिनकी हजारों भुजाएं हैं। अक्सर लोग सहस्त्रबाहु मंदिर के नाम का उज्जारण नहीं कर पाते थे। गलत उच्चारण के कारण लोग सहस्त्रबाहु को सास-बहू कह जाते थे। धीरे धीरे इस स्थान का नाम सास बहू मंदिर पड़ गया।
परिसर में हैं दो मंदिर
कच्छवाहा वंश के राजा महिपाल की पत्नी भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। उनके लिए राजा ने विष्णु जी के सुंदर मंदिर का निर्माण कराया, जिसका नाम सहस्त्रबाहु रखा। राजा के पुत्र का विवाह हुआ तो बहू शिवभक्त थी। बहू की आस्था का सम्मान करते हुए राजा ने इसी मंदिर परिसर में शिव जी को समर्पित एक मंदिर का निर्माण कराया। इस तरह एक स्थान पर दो मंदिर बन गए।