फिरोजाबाद के जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को हुई 24 दलितों की सामूहिक हत्या में मंगलवार को कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इसके साथ ही दो दोषियों पर दो-दो लाख और एक दोषी पर एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया। कोर्ट से आदेश होने के बाद पुलिस तीनों को जिला कारागार मैनपुरी ले गई। वहां उन्हें दाखिल किया गया।
एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की अदालत में सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को मैनपुरी जिला कारागार से भारी सुरक्षा के बीच लाकर पेश किया गया। इनकी पेशी के बाद 12.30 बजे करीब फिर से इनको दीवानी की अदालत में भेज दिया गया।
फांसी की सजा पाने वाले रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह अपने कानूनी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए फांसी की सजा के खिलाफ 30 दिन के भीतर हाईकोर्ट में अपील भी कर सकते हैं। हाईकोर्ट सेशन कोर्ट के फैसले की समीक्षा के बाद अपना निर्णय लेकर फांसी की सजा को बरकरार रख सकती है या फिर सजा में संशोधन भी किया जा सकता है।
कोर्ट द्वारा सजा सुनाकर जेल भेजे गए तीनों दोषियों को पहले 14 दिन के लिए क्वारंटीन बैरक में रखा जाएगा। मंगलवार शाम जेल पहुंचते ही उनको इस बैरक में भेज दिया गया। यहां उनकी नियमित निगरानी होगी। जांचा जाएगा कि वह समय से खाना-पीना ले रहे हैं या नहीं, सो रहा है या नहीं। 14 दिन के बाद उसको नियमित बैरक में भेजा जाएगा।
दिहुली कांड के दोषी रामपाल, रामसेवक और कप्तान सिंह जिला कारागार मैनपुरी में सोमवार की रात को करवटें बदलते रहे। वह अपनी सजा के बारे में ही सोचते रहे। कप्तान सिंह सबसे अधिक बेचैन था। जिला कारागार के कर्मियों के अनुसार इन तीनों की नियमित निगरानी भी की जा रही थी। मंगलवार को तीनों समय से उठे और नित्य क्रिया के बाद कोर्ट जाने को तैयार हो गए। मगर, इनके चेहरों पर सजा पाए का अजीब सा खौफ साफ दिखाई दे रहा था। सोमवार शाम को खाना भी कम ही खाया था।
एडीजे विशेष डकैती इंदिरा सिंह की कोर्ट में मंगलवार को सुबह 11.30 बजे दोषी कप्तान, रामपाल और रामसेवक को जेल से पुलिस भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच कोर्ट लेकर पहुंची। तीनों को अदालत में पेश किया गया। अदालत में उस वक्त किसी को भी प्रवेश नहीं दिया गया। कोर्ट के बाहर भी भारी सुरक्षा बल तैनात रहा। पुलिस ने चप्पे-चप्पे पर निगाह रखी।
दोषी रामपाल, रामसेवक और कप्तान के परिजन भी सुबह ही कोर्ट में पहुंच गए। हालांकि पुलिस के कड़े पहरे के चलते परिजन की खुले तौर पर किसी से बात नहीं हो पाई। परिजन भी अपनी सुरक्षा को देखते हुए किसी भी यह बताने से कतराते रहे कि वह दोषियों के परिवार से हैं।
फिरोजाबाद जनपद के जसराना थाना क्षेत्र के ग्राम दिहुली (घटना के समय मैनपुरी का हिस्सा) में 24 दलितों की सामूहिक हत्या कर दी गई थी। वर्ष 1981 में 18 नवंबर की शाम 6 बजे की यह घटना थी। डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही के विरोध में हथियारों से लैस होकर दिहुली गांव में घुसकर महिलाओं, पुरुषों और बच्चों पर गोलियां चलाई गई थी। इसमें 24 लोगों की मौत हुई थी। बदमाशों ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी। रिपोर्ट दिहुली के लायक सिंह ने 19 नवंबर 1981 को थाना जसराना में दर्ज कराई थी। थाना जसराना में राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 20 लोगों के खिलाफ दर्ज हुई थी। मैनपुरी से लेकर इलाहाबाद तक यह मामला कोर्ट में चला। इसके बाद 19 अक्तूबर 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। जिला जज के आदेश पर विशेष डकैती कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई।
इस नरसंहार को अंजाम देने के आरोप में गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के सदस्य कमरुद्दीन, श्यामवीर, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, प्रमोद राना, मलखान सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मंशी सिंह, पंचम पुत्र मंशी सिंह, लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल पर मुकदमा दर्ज हुआ था। लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना, कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को छोड़कर सभी की मौत हो चुकी है इनकी मौत के संबंध में कोर्ट में फौती रिपोर्ट भी दाखिल हो चुकी है।
यह हैं अभी फरार
लक्ष्मी, इंदल और रुखन, ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी फरार हैं। इनकी फाइल को अलग कर दिया है। अब पुलिस या तो इनको गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश करेगी या फिर इनके विषय में पड़ताल करेगी। अगर, इनकी मौत हो चुकी है तो इनकी फौती रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल कर मुकदमे की फाइल को बंद कराएगी।
ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, रामदुलारी, श्रृंगार वती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, आशा देवी, लालाराम, गीतम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, कुं. शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर व प्रीतम सिंह की हत्या हुई थी।
इन पांच की गवाही के बल पर अदालत ने सुनाई सजा
इस चर्चित नरसंहार में कोर्ट में तथ्य के गवाह के तौर पर लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की गवाही हुई। हालांकि इन सभी की अब मौत हो चुकी है। मगर, इनकी गवाही के सहारे ही पूरा केस कोर्ट में टिका रहा और अदालत ने दोषियों को सजा सुनाई। गवाह कुमर प्रसाद की गवाही सबसे अहम रही। उन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपनी गवाही दी थी। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट का भी उल्लेख था।
आईपीसी 148 (घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव करना) के तहत तीन साल की कैद
आईपीसी 302 (हत्या) और 149 (विधि विरुद्ध जमावड़ा) के तहत फांसी की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना
आईपीसी 307 (जानलेवा हमला) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये का जुर्माना
आईपीसी 449 (किसी के घर में घुसकर अपराध को अंजाम देना) और 450 (गृह अतिचार) के तहत आजीवन कारावास और 50 हजार रुपये जुर्माने की सजा
रामपाल को इन धाराओं में सुनाई गई सजा
आईपीसी 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र करना) और आईपीसी 302 (हत्या करना) के तहत आजीवन कारावास और एक लाख रुपये जुर्माने की सजा
दिहुली कांड की टाइमलाइन
18 नवंबर 1981 को दिहुली में 24 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या हुई
18 नवंबर 1981 की रात को जसराना थाने में मुकदमा दर्ज हुआ
26 फरवरी 1982 तक मुख्य आरोपी राधे और संतोषा सहित 15 आरोपियों की गिरफ्तारी
26 फरवरी 1982 को चार्जशीट कोर्ट में दाखिल
13 मई 1982 को कोर्ट में आरोपियों पर चार्ज फ्रेम
5 मई 1983 को मुकदमा हाईकोर्ट के आदेश पर प्रयागराज की सेशन कोर्ट ट्रांसफर
19 अक्तूबर 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर
11 मार्च 2025 को तीन आरोपी दोषी करार
18 मार्च 2025 को दोषियों को सुनाई गई सजा