नई दिल्ली, चेन्नई समेत पांच महानगरों में 9,00 वर्ग किलोमीटर जमीन धंस सकती है। 1.3 करोड़ से अधिक इमारतों पर अध्ययन और 8 करोड़ लोगों से बातचीत में पता चला कि जमीन धंस रही। इससे 19 लाख लोग प्रति वर्ष चार मिलीमीटर से ज्यादा की दर से धंसने के जोखिम में हैं।
दिल्ली-एनसीआर के कुछ हॉटस्पॉट जैसे- बिजवासन (28.5 मिमी/वर्ष), फरीदाबाद (38.2 मिमी/वर्ष) और गाजियाबाद (20.7 मिमी/वर्ष) में तेज धंसाव देखा गया। शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्तर पर उभार पाया। जैसे- दिल्ली-एनसीआर में द्वारका के पास वाले इलाके, जहां भू-धंसाव प्रति वर्ष 15 मिलीमीटर से अधिक की दर से बढ़ रहा। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि शहरों ने बुनियादी ढांचे और भू-जल प्रबंधन नीतियों को नहीं सुधारा तो आज जो दबाव दिख रहा, वह भविष्य में बड़ी आपदाओं का रूप ले सकता है। इससे आने वाले दिनों में का दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
मुंबई, कोलकाता और बंगलूरू की इमारतों का भी अध्ययन
नेचर सस्टेनेबिलिटी पत्रिका में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार, धंसाव की यही दर जारी रही तो अगले 50 वर्षों में 23,500 से ज्यादा इमारतों को भारी ढांचागत क्षति का सामना करना पड़ सकता है। अध्ययन में मुंबई, कोलकाता और बंगलूरू की इमारतों का भी अध्ययन किया गया। वर्जीनिया पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट एंड स्टेट यूनिवर्सिटी के स्नातक छात्र और प्रमुख लेखक नितेशनिर्मल सदाशिवम ने बताया कि अध्ययन किए गए शहरों में भूमि धंसाव में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों में अत्यधिक भूजल का उपयोग शामिल है और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भवनों का भार भी भूमि धंसाव में योगदान दे रहा है।









