अंकिता हत्याकांड: एक्स्ट्रा सर्विस का दबाव..,कोर्ट के फैसले बाद फूट-फूटकर रोई अंकिता की मां, पिता भी दिखे निराश

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त्तराखंड के ऋषिकेश में हुए अंकिता भंडारी हत्या मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) रीना नेगी की अदालत ने सजा के प्रश्न पर दोनों पक्षों को सुना। बीती 19 मई को एडीजे कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पूरी करते हुए फैसले के लिए 30 मई की तिथि निर्धारित की थी। अभियोजन पक्ष ने कहा कि अंकिता रिसॉर्ट में बतौर रिसेप्शनिस्ट काम करती थी।

अभियुक्तों की ओर से घटना से पूर्व उस पर अनैतिक कार्य का दबाव बनाया जा रहा था। अभियोजन पक्ष ने कहा कि अंकिता उनके इस एक्स्ट्रा सर्विस का विरोध कर रही थी और वह रिसॉर्ट से जाना चाहती थी।

 

यह बात पीड़िता कहीं बाहर न बता दे, इसलिए अभियुक्तों ने उसे अपने साथ बाहर ऋषिकेश तक घुमाने ले गए। लेकिन पीड़िता अभियुक्तों के साथ वापस वनंत्रा रिसॉर्ट नहीं आई। छह दिन बाद चीला नहर से उसका शव बरामद हुआ। अदालत ने कहा कि अभियुक्तों ने पीड़िता की हत्या जानबूझकर की। सभी तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए तीनों को दोषी करार दिया।

अंकिता की मां बोलीं, फांसी होनी चाहिए, हाईकोर्ट जाएंगे 
जैसे ही न्यायालय ने अंकिता के हत्यारों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, मां की पथराई आंखों से दर्द का दरिया बह निकला। अंकिता की मां सोनी देवी बोलीं, तीनों हत्यारों को फांसी की सजा होनी चाहिए थी, इसके लिए हम हाईकोर्ट जाएंगे।

 

दोपहर करीब पौने तीन बजे अंकिता के पिता बीरेंद्र सिंह और मां सोनी देवी न्यायालय से बाहर आए। यहां मीडिया से बात करते हुए सोनी देवी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हत्यारों को मिली सजा से संतुष्ट तो नहीं हूं, पर मेरी बेटी की आत्मा को थोड़ी शांति जरूरी मिली होगी।

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फांसी हो जाती तो सबसे अच्छा होता’
मेरे जीते जी इनको फांसी हो जाती तो सबसे अच्छा होता। जिस तरह से इन्होंने मेरी बेटी के साथ इतना बुरा किया और हमारी जिंदगी को नर्क बना दिया। एक मां ही समझ सकती है अपनी बेटी को खोने का दर्द। अब तो ये लड़ाई और बड़ी हो गई है।

 

इन्हें ऐसी सजा मिले, ताकि कोई भी किसी बेटी के साथ गलत करने से पहले हजार बार सोचे। उत्तराखंड की जनता और मीडिया का आभार जताते हुए सोनी देवी लड़खड़ाकर सड़क पर ही बैठ गईं और फूट-फूटकर रोने लगीं।

 

बिलखते हुए उन्होंने कहा- हत्यारों को फांसी होनी चाहिए थी, क्योंकि कल को मेरी दूसरी बेटी के साथ भी ऐसा हो सकता है, इसलिए मैं संतुष्ट नहीं हूं। इनको फांसी की सजा होनी चाहिए।

 

वहीं, पिता बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जिस तरह से इन्होंने मेरी लड़की को मारा है, तो मेरा कहना है कि मौत के बदले मौत। हमारे जीते जी इनको फांसी की सजा होनी चाहिए थी, हम आज हैं, कल नहीं है। हत्यारों को फांसी की सजा दिलाने के लिए हम हाईकोर्ट भी जाएंगे।

 

अंकिता भंडारी के तीनों हत्यारों को कठोर उम्र कैद की सजा व 50 हजार का जुर्माना
उत्तराखंड के बहुचर्चित अंकिता भंडारी हत्याकांड मामले में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (एडीजे) रीना नेगी की अदालत ने शुक्रवार को अपना फैसला दे दिया है। अदालत ने तीनों हत्यारोपियों पुलकित आर्य, सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता को आईपीसी की धारा 302 (हत्या) में कठोरतम आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।

 

तीनों आरोपियों को धारा 201 (साक्ष्य छुपाना) में पांच साल का कठोर कारावास व दस-दस हजार रुपये के जुर्माने से दंडित किया गया है। अनैतिक देह व्यापार अधिनियम के तहत भी तीनों आरोपी दोषसिद्ध पाए गए हैं, जिसमें तीनों को पांच-पांच साल का कठोर कारावास व दो हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई गई है।

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पुलकित आर्य को धारा 354 (ए) (छेड़खानी व लज्जा भंग) में भी दोषी पाते हुए दो वर्ष का कठोर कारावास व 10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई गई है। अदालत ने मृतका के माता पिता को चार लाख रुपये बतौर प्रतिकर भुगतान करने के निर्देश सरकार को दिए हैं। बीती 19 मई को एडीजे कोर्ट ने अंकिता हत्याकांड मामले की सुनवाई पूरी करते हुए फैसले के लिए 30 मई की तिथि निर्धारित की थी।

 

शुक्रवार के फैसले को देखते हुए सरकार, पुलिस और प्रशासन की ओर से अदालत परिसर में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। करीब साढे़ दस बजे अदालत की कार्यवाही शुरू हुई। अदालत ने सजा के प्रश्न पर दोनों पक्षों को सुना। अदालत में अभियोजन पक्ष की ओर से विशेष लोक अभियोजक अवनीश नेगी, अभियोजन अधिकारी राजीव डोभाल उपस्थित रहे, जबकि बचाव पक्ष की ओर से अधिवक्ता जितेंद्र सिंह रावत उपस्थित थे। तीनों हत्यारोपी अपनी जेलों से अदालत में लाए गए।

 

47 गवाह, 236 साक्ष्य, कोर्ट ने 160 पेज में लिखा फैसला
अंकिता भंडारी हत्याकांड में करीब दो माह आठ माह तक न्यायालय में चली कार्यवाही के दौरान 47 गवाहों की गवाही कराई गई। जबकि कुल 260 साक्ष्यों को पेश किया गया। बचाव पक्ष की ओर से भी गवाहों की गवाही हुई और नौ साक्ष्यों को अदालत में रखा गया। दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने शुक्रवार को इस मामले में कुल 160 पन्नों में इस फैसले को लिखा।

 

इस मामले में एसआईटी की ओर से 16 दिसंबर को कुल 500 पन्नों की चार्जशीट अदालत में दाखिल की गई थी। इसमें उस वक्त कुल 97 गवाह बनाए गए थे। जबकि, अदालत में कुल 47 गवाहों की गवाही अभियोजन ने कराई। इसके सापेक्ष बचाव पक्ष की ओर से कुल चार गवाह ही आरोपियों के पक्ष में पेश किए।

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अभियोजन की ओर से मुकदमे में तहरीर, फोटो आदि कुल 130 दस्तावेजी साक्ष्य अदालत में प्रस्तुत किए। इसके साथ ही 106 वस्तु साक्ष्यों को अदालत में दिखाया गया। जहां तक बचाव का सवाल है तो उनकी ओर से इस मामले में नौ दस्तावेजी साक्ष्य अदालत को रखकर आरोपियों की बेगुनाही साबित करनी चाही। मगर, अभियोजन की लंबी दलीलों और इन साक्ष्यों के बल पर अदालत ने तीनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद की सजा सुना दी।

 

अदालतों की 30 से ज्यादा नजीरों को किया गया पेश
इस मुकदमे में बचाव और अभियोजन की ओर से सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न हाईकोर्ट की 30 से ज्यादा नजीरों को पेश किया गया। इनमें कुछ विधि व्यवस्थाएं भी शामिल थीं। इनमें अभियोजन की ओर से 20 फैसलों को नजीर के रूप में पेश किया।

 

जबकि, बचाव पक्ष की ओर से ऐसी 10 से ज्यादा नजीरें और विधि व्यवस्थाओं पर विश्वास करते हुए अदालत के सामने तर्क रखे। मगर, अभियोजन की ओर से पेश की गई नजीर उनके तथ्यों को बल देती नजर आईं। जबकि, बचाव की दलीलों और नजीरों के सापेक्ष अभियोजन की ओर से दिए गए तर्क ज्यादा मजबूत पाए गए।


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