
स्पेशल स्टोरी
मंत्री ने बताएं 3 टाइप के पत्रकार
वरिष्ठ पत्रकार ने गिनाए 3 टाइप के नेता
अपने कलाम के साथ शुरू करता हूं
हर दौर में कलमकारो पे सवाल कई
हर दौर में कलमकार जवाब देते है
उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सुरेश कुमार खन्ना ने पत्रकारों से भरे सभागार में पत्रकारों की तीन तरह की किस्म को गिनाकर कार्यक्रम से रुखसत हुए । मंत्री जी ने अपने ज्ञानानुसार वर्तमान समय में पत्रकारिता को तीन टाइप की पत्रकारिता में विभाजित किया ।
उन्होंने कहा वर्तमान समय में तीन प्रकार की पत्रकारिता हो रही है । एक मिशन के रूप में दूसरे प्रोफेशन के रूप में और तीसरे फैशन के रूप में ,
दो प्रकार के पत्रकारों को मंत्री जी ने बधाई दी और तीसरे प्रकार के पत्रकार जो फैशन के रूप में पत्रकारिता कर रहे हैं उनके बारे में बाकी दो प्रकार के पत्रकारों से कहा हम यह तो नहीं कहते कि उन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए । मगर आप लोगों को उनके बारे में सोचना जरूर चाहिए ।
उत्तर प्रदेश सरकार के संसदीय मंत्री पत्रकारों के टाइप को बताकर कार्यक्रम से रुखसत हुए ।
हालांकि यह संगठन का कार्यक्रम था जिसमें जनपद के सारे पत्रकारों ने शिरकत नहीं की । गौरतलब है 2014 से पहले किसी भी टाइप के पत्रकार की तलाश में रहने वाले प्रदेश सरकार के कद्दावर मंत्री के द्वारा पत्रकारों के टाइप पता है जाने को लेकर अमर उजाला के पूर्व ब्यूरो चीफ वरिष्ठ पत्रकार बलराम शर्मा ने कलमकारो पर ऊपर उठाए गए सवालों को गंभीरता से लेते हुए अपने वॉल पर कैबिनेट मंत्री को जवाब देते हुए लिखा
तीन तरह के नेता भी होते हैं । एक वह जिनका पहला काम जनसेवा होता है लेकिन वह पेंशन के साथ वेतन भी लेते हैं । दूसरे वह जो प्रोफेशनल होते हैं जितना लगाया उससे ज्यादा कमाया । तीसरे फैसनेबुल जो पूरी किट के साथ हर बड़े नेता की चौखट में अपना सिर
घुसाते है । इसके आगे वरिष्ठ पत्रकार ने लिखा समझ तो गए होगे ।
दरअसल पत्रकारों के इस तरह के टाइप को पत्रकारों ही की महफिल में
व्यक्त करने का पहला अधिकार तो कलम कारों को था । मगर बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना की कहावत के अनुसार नेता जी ने बतौर मुख्य अतिथि पत्रकारों की महफिल में पत्रकारों ही को तीन कैटेगरी में डिवाइड कर खुद को श्रेष्ठ और कलम हाथ में लिए हुए कलम कारों को कमतर आंकने की कोशिश
इस उम्मीद के साथ की थी, कि शायद सत्ता के इस दौर में कोई ऐसा कलमकार हो जो इसका जवाब दे सके ।
मगर यह कहावत तो मशहूर है ।
फाकामस्त थामते हैं कलम और गैर के दर्द के लिए लड़ जाते हैं । और यहां तो कोई बात नहीं अपनों के लिए लड़ने की बात थी तो कैबिनेट मंत्री को जवाब तो मिलना ही था
क्योंकि यह बात तो जग जाहिर है कि वर्तमान समय में पत्रकारों पर जो हालात गुजर रहे हैं , वह कैसे हालात हैं और इसमें पत्रकारिता करना कितना जोखिम भरा काम है ।
मगर अभी भी कुछ कलमकार है जिनमें आत्मसम्मान है और वह कलम की टाइप पर सीधे किए गए तंज का जवाब जरूर देते हैं । इसे युवा पत्रकारों को हौसला तो मिलता ही है साथ में गैर को प्रोफेशन पर सवाल दागने के बाद मिलने वाले जवाब के लिए भी सोचना पड़ता है ।
जाते जाते अपने शेर के साथ शब्दों को विराम देते हैं ,
वह जो सोचते हैं कि आ गए हैं अब सब जद में,
उनसे कह दो कलम की दुनिया में कुछ संत, फकीर बाकी है । जब भी उठाएंगे वह इज्जत पर सवाल । जवाब देने को जिंदा जमीर काफी है ।