नैनीताल-
हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा काट रहे तीन अभियुक्तों में से दो अभियुक्तों नफीस व सलीम को उनके खिलाफ झूठी रिपोर्ट दर्ज किए जाने के आधार पर पच्चीस साल बाद बरी कर दिया है। इस प्रकरण पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने 15 जून को निर्णय सुरक्षित रख लिया था। जिस पर बृहस्पतिवार को कोर्ट ने अपना निर्णय सुनाया।
मामले के अनुसार 15 अगस्त 1996 को मृतक अकरम के भतीजे अफजल ने गंगनहर रुड़की थाने में एफआईआर दर्ज कर कहा था कि वह और उसके चाचा अकरम अपनी दुकान बंद कर रात करीब 7: 45 बजे अपने घर सखनपुर जा रहे थे। घर से आधा किलोमीटर पहले कुछ अज्ञात लोगों ने उन पर गोली चला दी। उसके चाचा स्कूटर से नीचे गिर गए और उनकी मौत हो गई। मुकदमा दर्ज होने पर पुलिस ने छह अज्ञात लोगों पर धारा 302 में केस दर्ज किया। निचली अदालत में सुनवाई के दौरान नफीस, इस्लाम, सलीम को गवाहों ने पहचान लिया। मामले में दो अन्य आरोपी में एक की मुजफ्फरनगर जेल और दूसरे की रुड़की जेल में 1997 में ही मौत हो गई थी। एक अन्य आरोपी अब्बास को निचली अदालत ने पहले ही रिहा कर दिया था। एडीजे द्वितीय ने तीनों अभियुक्त नफीस, सलीम और इस्लाम को 2013 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई। तीनों ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। नफीस व सलीम के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर ही झूठी थी। क्योंकि वह इस घटना में शामिल ही नहीं थे। इन दोनों की अपीलों पर कोर्ट ने 15 जून को अंतिम सुनवाई कर निर्णय सुरक्षित रख लिया था।
बृहस्पतिवार को कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए झूठी रिपोर्ट पेश करने के आधार पर दोनों अभियुक्तों को बरी कर दिया। 88 वर्ष के इस्लाम की अपील अभी कोर्ट में विचराधीन है वह जमानत पर है। अब्बास के खिलाफ सरकार ने अपील दायर की है। उस पर आरोप है कि उसी ने पैसे देकर अकरम की हत्या कराई है। उसकी भी अपील कोर्ट में विचाराधीन है।