सुप्रीम कोर्ट : बहस के लिए जल्द ही तय होगी वकीलों की समयसीमा, अमेरिका में मिलते हैं 25 मिनट ।

Spread the love

लंबित मामलों के बोझ तले दबा सुप्रीम कोर्ट अब 20-20 के मूड में आ गया है। शीर्ष अदालत के कई जजों ने अब वकीलों को लिखित दस्तावेज संक्षिप्त में देने और बहस से लिए समय निर्धारित करने की कवायद शुरू कर दी है। जल्द ही इसके लिए नियम बनाया जा सकता है। हाल के दिनों ने कई न्यायाधीशों ने वकीलों को दलीलों का संक्षिप्त सार, बहस से पूर्व देने के लिए कहना शुरू कर दिया है। पिछले दिनों जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि भारत के सुप्रीम कोर्ट में ही ऐसा होता है जहां वकीलों घंटों और दिनों तक बहस करते हैं और एक के बाद एक सैकड़ों पन्नों का दस्तावेज पेश करते रहते हैं। पीठ ने कहा कि इससे न्यायालय का बहुमूल्य समय नष्ट हो जाता है। जस्टिस कौल ने कहा कि अब समय आ गया है जब वकीलों को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। पीठ ने कहा कि मोटे दस्तावेज और घटों तक बहस चलने से उन अपीलों के साथ हम कैसे न्याय कर पाएंगे जो 10 वर्षों से अधिक समय से लंबित हैं। पीठ ने यह कहते हुए गुजरात के वकील यतीन ओझा के मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातार को अपनी बहस पूरी करने के लिए 30-30 मिनट का समय दिया। ओझा की वरिष्ठ वकील की पदवी छीन ली गई है। मामले में दोनों पीठ कीइस बात से सहमत भी दिखे। सुप्रीम कोर्ट के दूसरे जज भी वकीलों को संक्षिप्त बहस और चार-पांच पन्नों का लिखित सार प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ भी वकीलों को न केवल बहस को बल्कि लिखित दस्तावेजों को संक्षिप्त पेश करने का आग्रह कर रहे हैं।

और पढ़े  दिल्ली: कोरोना का कहर- 5 माह के नवजात की हुई मौत, 87 वर्षीय बुजुर्ग की भी गई जान, अब इतनी है मरीजों की संख्या

संक्षिप्त में कहें तो अक्षरों का आकार छोटा कर देते हैं
पिछले दिनों एक मामले में जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि जब हम वकीलों को संक्षेप में लिखित सार रखने के लिए कहते हैं तो अक्षरों का आकार छोटा हो जाता है। कभी-कभी यह दवा के पत्तों पर लिखे अक्षर जैसा हो जाता है, जिन्हें पढ़ना संभव नहीं। जस्टिस माहेश्वरी फोंट साइज छोटा होने के लेकर आपत्ति जता चुके हैं।

सुप्रीम कोर्ट खुद में ला रहा बदलाव: ऐसा नहीं है कि वकीलों को ही समय की दुहाई दी जा रही है। सुप्रीम कोर्ट खुद भी अपने फैसलों को स्पष्ट और छोटा लिखने का प्रयास कर रहा जा। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्य एक पीठ ने अपने फैसले में यह कहा है कि जजों को प्रयास करना चाहिए कि फैसले स्पष्ट और छोटे हो जिससे कि आम आदमी उसे समझ सके।


Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!