चीन इस वक्त भीषण ऊर्जा संकट के दौर से गुजर रहा है। आलम यह है कि देश में फैक्ट्रियों से लेकर घरों तक की बिजली गायब है। चीन की ऊर्जा कंपनियों का कहना है कि यह समस्या आने वाले दिनों में भी जारी रहेगी। यानी दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में पावर कट्स का यह सिलसिला अभी कुछ दिन और चलेगा। इस बीच अमेरिकी क्रेडिट फर्म गोल्डमैन सैक्स ने पावर कट्स की वजह से चीन की आर्थिक विकास दर अनुमान घटाने का एलान कर दिया है। इसके अलावा स्टैंडर्ड एंड पूअर ने भी चीन की विकास दर कम की है। अब माना जा रहा है कि अगर चीन को यह ऊर्जा संकट खत्म करना है, तो उसे कुछ ऐसे कदम उठाने होंगे, जिसका असर भारत समेत दूसरे देशों में पड़ सकता है और इन देशों में भी ऊर्जा संकट का एक नया दौर शुरू होने की संभावना जताई जा रही है।
बिजली का सबसे बड़ा संकट पूर्वोत्तर चीन में आया है। यहां लियाओनिंग, जिलिन और हेलोंगजियांग प्रांत में लोगों ने फैक्ट्रियों से लेकर घरों तक में बिजली गायब रहने की शिकायत की। यहां तक कि सड़कों-चौराहों पर लगीं ट्रैफिक लाइट्स के भी काम न करने की बातें सामने आईं। चीन के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर तो कई दिनों से नॉर्थ-ईस्ट इलेक्ट्रिक कट जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। अभी तक यह साफ नहीं है कि चीन में कितने घर बिजली की कटौती से प्रभावित हुए हैं। लेकिन अगर इन तीन प्रांतों को ही जोड़ दिया जाए, तो कम से कम 10 करोड़ लोग बिजली संकट का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, मेनलैंड चीन के 31 में से 16 प्रांतों को इस वक्त दूसरे बिजली के लिए दूसरे प्रांतों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इसके चलते पूरे चीन के दो-तिहाई हिस्से पर बिजली संकट गहरा गया है। इसका असर अब चीन की अर्थव्यवस्था पर भी दिखने लगा है। दरअसल, चीन विश्वभर की बड़ी कंपनियों का मैन्युफैक्चरिंग हब (उत्पादन केंद्र) भी है, जिसकी वजह से इतने सालों में उसे दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का मौका मिला। लेकिन ऊर्जा संकट के चलते देसी कंपनियों के साथ एपल, टेस्ला जैसी विदेशी कंपनियों के आउटपुट में भी जोरदार गिरावट आई है। ऐसे में अगर ऊर्जा संकट ज्यादा दिन चला, तो मैन्युफैक्चरिंग हब के तौर पर चीन का भविष्य और इलेक्ट्रॉनिक कंपनियों की ओर से सप्लाई किए जा रहे तकनीकी उत्पादों की आपूर्ति पर भी असर पड़ेगा।
क्यों आया चीन में इतना बड़ा ऊर्जा संकट?
अमेरिका और यूरोप जैसे विकसित महाद्वीपों से उलट चीन में अभी ऊर्जा की जरूरतें कोयले से ही पूरी हो रही हैं। यहां के 90 फीसदी पावर स्टेशन अभी कोयले से ही बिजली पैदा करते हैं। अब देश में आए ऊर्जा संकट की वजह कोयले की ही भारी कमी बताई गई है। दरअसल, कोरोनावायरस महामारी के बीच सख्त प्रतिबंधों की वजह से कोयला खनन के लिए कामगारों की भारी कमी पड़ गई थी। शुरुआत में तो महामारी की वजह से धीमी पड़ी अर्थव्यवस्था में कोयले की जरूरत सीमित रही। लेकिन कोरोना मामलों के कम होते ही सभी कंपनियों ने उत्पादन लगातार बढ़ाया है।
इसका असर यह हुआ कि कई प्रांतों पावर सप्लाई जारी रखने के लिए कोयले की मांग अचानक बढ़ी, जबकि चीन में पर्यावरण मानकों और कोरोना नियमों के चलते के चलते खनन की रफ्तार अभी भी धीमी है। ऐसे में सभी प्रांतों में कोयले की कमी के चलते पावर स्टेशन बंद करने की नौबत आ गई है। एक आंकड़े के मुताबिक, 2020 के शुरुआती आठ महीनों में चीन में जितनी ऊर्जा पैदा हुई, अब 2021 के पहले आठ महीनों में वह मांग 13 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 616 टेरावॉट प्रति घंटे पर पहुंच गई है। इस बीच चीन में 2020 के मुकाबले कोयले का खनन सिर्फ 6 फीसदी ही बढ़ पाया।
भारत पर कैसे पड़ सकता है चीन के ऊर्जा संकट का असर?
चीन की एक पावर कंपनी ने हाल ही में अपने ट्वीट में कहा था कि ऊर्जा का यह संकट आने वाले समय में भी जारी रहने की संभावना है। कंपनी ने बाद में तो यह ट्वीट डिलीट कर लिया, लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि कम खनन की वजह से अब चीन को बिजली आपूर्ति बहाल करने के लिए दूसरे तरीके भी आजमाने पड़ेंगे। एक तरीका है, दूसरे देशों से कोयला खरीदने का। हालांकि, अब तक अपने घरेलू कोयला उत्पादन पर निर्भर रहने वाला चीन अगर दूसरे देशों से कोयला खरीदना शुरू करता है, तो इससे सबसे बड़ी मुसीबत भारत और कुछ यूरोपीय देशों को होगी।
चीन ने विदेश से की खरीद, तो बढ़ेंगे कोयले के दाम
इसकी वजह यह है कि चीन की तरह कोरोना महामारी की वजह से कोयला निर्यात करने वाले अन्य देशों की उत्पादन क्षमता में कमी आई है। इसका सीधा असर अब तक यह हुआ है कि वैश्विक स्तर पर जिस कोयले के दाम पिछले साल 90 डॉलर (करीब 6700 रुपये) प्रति टन थे, अब वह दोगुने से ज्यादा- 210 डॉलर (करीब 15 हजार रुपये) प्रति टन पहुंच चुके हैं। चीन की तरह ही भारत भी अपनी ऊर्जा आपूर्ति के लिए मुख्यतः कोयले से संचालित होने वाले पावर प्लांट्स पर निर्भर है। अब तक भारत कोयले के लिए मोटी रकम चुका रहा है। अब अगर इस बीच चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कोयले की भारी मात्रा में खरीद शुरू कर दी, तो कम उत्पादन की वजह से कोयले के दाम बढ़ना तय हैं और इसकी आपूर्ति में कमी आना भी पक्का है। ऐसे में चीन की ऊर्जा समस्या का असर भारत पर भी पड़ेगा।
चीन के उत्पाद पहुंचने में होगी देरी, भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर पर पड़ सकता है असर
इसके अलावा चीन में ऊर्जा की कमी से उत्पादन पर जो असर पड़ रहा है, उसका भारत पर भी नकारात्मक असर होने की संभावना है। क्योंकि चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। चीन से आने वाले इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का भारत में एक बड़ा बाजार है। अगर चीन में यह ऊर्जा की कमी जारी रहती है, तो चिप से चलने वाले डिवाइसेज से लेकर चीन से आने वाली स्टील, निकेल, तांबा, एल्युमिनियम जैसी धातुओं की आपूर्ति पर भी असर होगा। इससे देश के इन्फ्रास्ट्रक्चर को खड़ा करने के लिए चलाई जा रहीं योजनाओं के भी ठहरने की संभावना पैदा हो सकती है।
कितना घटा चीन का आर्थिक विकास दर अनुमान?
अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी गोल्डमैन सैक्स के मुताबिक, चीन को इन पावर कट्स की वजह से बड़ा नुकसान झेलना पड़ सकता है और देश की आर्थिक विकास दर पिछले साल की अनुमानित 8.2 फीसदी से कम कर 7.8 फीसदी कर दी गई है। इसके अलावा स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, नोमुरा और फिच ने भी चीन की आर्थिक विकास दर में कमी का अनुमान लगाया है।
चीन में बिजली संकट :चीन में घरों से लेकर फैक्ट्रियों तक बिजली गायब, देखें भारत पर इसका कितना पड़ेगा असर ।
