हिद वेद पुराणों के रचनाकार
महिर्षि वेद व्यास जी के पिता ऋषि पाराशर जिनकी तपोभूमि कालपी तहसील के ग्राम परासन में है जहां बेतवा नदी के तट पर ऋषि पराशर का मन्दिर भी है।
उनके द्वारा भी एक ग्रन्थ की रचना की गई थी।
आज हम आपको ऋषि पाराशर द्वारा रचित उस महान ग्रंथ के बारे में बताते हैं।
ऋषि पाराशर ने “कृषि पाराशर” नामक एक ऐसे ग्रंथ की रचना की थी।जिससे दुनिया के आधुनिक कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि और मोसम की जानकारी के लिए उसे आधार बनाया है।
दुनिया के लोग जब वर्षा और बादलों की गड़गड़ाहट सुनकर घरों में गुफाओं में छुप जाते थे –जब उन्हें एग्रीकल्चर का ककहरा भी मालूम नहीं था उससे भी हजारों वर्ष पूर्व ऋषि पारासर मोसम व कृषि विज्ञान पर आधारित भारत वर्ष के किसानों के मार्ग दर्शन के लिए “कृषि पाराशर” नामक ग्रंथ की रचना कर चुके थे।
तीन खंडो में लिखा गया यह लघु ग्रंथ वृष्टि ज्ञान मेघ का प्रकार कृषि भूमि का विभाजन कृषि में काम आने वाले यंत्रोका वर्गीकरण आकार प्रकार वर्षा जल के मापन की विधियां हिन्दी महिने पूस में वायू की गति व दिशा के आधार पर १२महिनों की वारिश का अनुमान व मात्रा निकालने की विधि बीजों का रक्षण जल संरक्षण की विधियां कृषि में काम आने वाले वाहक पशुओं की देखभाल पोषण व उसके प्रबंधन के सम्बन्ध में अमूल्य जानकारी व निर्देश दिया गया है।
ऋषि पाराशर ग्रंथ में लिखते हैं जीवन का आधार कृषि है।कृषि का आधार वृष्टि यानी वारिश है हर किसान को वारिश के बारे में जरूर जानना चाहिए।
ऋषि पाराशर ने अपने ग्रंथ के द्वितीय खण्ड वृष्टि खण्ड में बादलों को चार भागों मे वर्गीकृत किया है।बादलों का यह वर्गीकरण उनके आकार के आधार पर किया गया है।ज्ञात हो कि आधुनिक मौसम विज्ञानी भी कम्प्यूटर माडल एल्गोरिदम के तहत इसी कार्य को आज कर रहे हैं।
१-आवरत मेघ यह एक निश्चित स्थान में वारिश करता है।
२-सम्रत मेघ एक समान बारिश करता है
३- पुष्कर मेघ बहुत कम बारिश होती है
४-द्रोण मेघ से उत्तम वर्षा होती है।
ऋषि पाराशर का मत है २-३दिन पूर्व बारिश का पूर्वानुमान कीसान के लिए कोई लाभकारी नहीं होता।पूरे वर्ष के लिए बारिश की मात्रा ज्ञात करने के लिए जक विधि विकसित की इसके तहत उन्होंने वर्णन किया है कि पूस महिने के ३०दिन ६०घंटे के १२भागों में विभक्त कर प्रत्येक दिन के सुबह शाम के १-१घंटे में वियु की गति व दिशा के आधार पर पूरे वर्ष के लिए वर्षा की मात्रा व किन किन तिथियों में वर्षा होगी उसका विश्लेषण किया जा सकता है।
साथियों आपको जानकर अपार हर्ष होगा १९६६में काशी के राजा स्वर्गीय डाक्टर विभूति नरायण सिंह के निर्देश पर एक प्रयोग किया गया था जिसमें ऋषि पाराशर की इस विधि को एकदम सटीक पाया गया था।
अब हम बात ऋषि पाराशर के ग्रंथ की कृषि खण्ड की करते हैं ऋषि पाराशर ने कृषि भूमि को तीन भागों मे विभाजित किया जिनमें अनूप कृषि भूमि,जंगल कृषि भूमि और विकट भूमि
इनमें से पहली से दूसरी से तीसरी भूमि को कृषि के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है कृषि खण्ड में उन्होंने बताया किस महिने में बीजों का संग्रह करना चाहिए बीजों की रक्षा कैसे करना चाहिए बीजों का रोपण किस विधि से होना चाहिए।
दुर्भाग्य से महाभारत के महायुद्ध में हजारों लाखों ऋषि महिर्षि योद्धा मारे गए परिणाम स्वरूप गुरूकुल शिक्षा पद्धति और शिक्षा परंपरा की वैदिक संस्थाएं लुप्त हो गईं देश की अधिकांश जनता पाखंड अंधविश्वाश ढोंग आडम्बर जातिवाद आलसी भाग्यवादी पुरूस्वार्थ विहीन हो गई ९०फीसदी से अधिक ज्ञान परंपरा व ग्रंथ लुप्त हो गए उनका खामियाजा हम और आप क्या पूरी दुनियां उठाएगी।आज जलवायु परिवर्तन के कारण अमेरिका आस्ट्रेलिया की भूमि बंजर होती जा रही है।यह भारत के ऋषि महिर्षियों का प्रबल प्रताप ज्ञान ही था कृषि के क्षेत्र में लाखों करोंणो वर्ष के पश्चात भी भारत भूमि बंजर नहीं हो पाई ऋषि पाराशर का मत था प्रकृति का बलात दोहन हमें नहीं करना चाहिए पर्यावरण की सुरक्षा करते हुए ही प्रकृति का उपयोग हमें करना चाहिए।
कालपी (जालौन) : मोसम व कृषि विज्ञान के पहले वैज्ञानिक थे ऋषि पारशर

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