
राजधानी देहरादून से महज 25 किमी दूर स्थित बड़कोट गांव की आवाज अब पीएमओ दफ्तर पहुंची है। सड़क और बिजली-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए जूझ रहे ग्रामीणों ने पीएमओ दफ्तर का दरवाजा खटखटाया है। सुविधाओं के अभाव पलायन के चलते गांव में केवल तीन परिवार रहे हैं। ग्रामीणों को उम्मीद है कि पीएमओ दफ्तर से उनकी समस्या के समाधान का रास्ता मिलेगा।
राजधानी से महज 25 किलोमीटर दूर पर स्थित गांव बड़कोट के लोग आज भी बिजली-पानी, सड़क, स्वास्थ्य, परिवहन, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए जूझ रहे हैं। थानों न्याय पंचायत के नाहीकला ग्रामसभा के इन लोगों को यह दर्द बहुत पुराना है। यहां न तो बिजली है और न सड़क। पैदल मार्ग भी काफी संकरे हैं। कई परिवार स्वास्थ्य कारणों से पलायन कर गए हैं।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की यह विधानसभा भी रही। जबकि इस क्षेत्र के कई सांसद केंद्र सरकार में शिक्षा मंत्री रहे। बावजूद इसके कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता महिपाल सिंह लंबे समय से ग्रामीणों की आवाज उठा रहे हैं, लेकिन आज तक कोई समाधान नहीं निकला है। आरटीआई कार्यकर्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता अजय कुमार ने बड़कोट की समस्या पीएमओ दफ्तर पहुंचाई है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि जल्द ही कोई समाधान निकलेगा।
स्कूल की दूरी बच्चों की मजबूरी
गांव में रह रहे तीन परिवारों में भी कुछ के बच्चे छोटे हैं। जिन लोगों के बच्चे बड़े हैं उन्होंने पढ़ाई के लिए रिश्तेदारों के साथ भेज दिया है। गांव के जयराज सिंह (50) को बेटियों को स्कूल भेजने के लिए आधे रास्ते तक खुद छोड़ने जाना पड़ता था। बरसात के दौरान बच्चे लगभग दो तीन महीने स्कूल ही नहीं जा पाते। एक लड़की की शादी हो गई। इसलिए अब उन्होंने मजबूरी में एक बेटी को पढ़ने के लिए थानों अपनी बहन के पास भेज दिया है।
लोग अंधेरे में रहने को मजबूर
गांव में परिवारों को सोलर लाइट दी गई हैं, लेकिन उससे बहुत ज्यादा फायदा नहीं है। रात का कोई बैकअप नहीं। बरसात के दौरान दो-तीन महीने तक यहां सोलर लाइट का भी कोई फायदा नहीं। ऐसे यहां लोग अंधेरे में ही रहने को मजबूर हैं।