आज आजादी के 73 वर्ष बीत जाने के बाद भी पहाड़वासियों को बीमार लोगों, गर्भवती महिलाओं को अस्पताल उपचार के लिए अपने कंधों पर डंडी कंडी के सहारे ले जाना पड़ रहा है। पहाड़ की अलग राजधानी मिल जाने के बाद भी पहाड़वासियों को आज भी तमाम दुश्वारियों से जूझना पड़ रहा है।
बताते चलें कि गैरसैंण प्रखंड का तेवाखर्क ग्रामवासी पिछले 2 सालों से लगातार सड़क के लिए आंदोलन कर रहे हैं लेकिन अभी तक उस आंदोलन का कोई भी नतीजा नहीं निकला है।हर बार ग्रामवासियों को आश्वासन दिला के बात को टाल दिया जाता है।
और यह आज की तस्वीर है जिसमें तेवाखर्क गांव के ग्रामीणों को बीमार व्यक्ति को अपने कंधों के सहारे ही गांव से अस्पताल और अस्पताल से गांव तक पहुंचाना पड़ रहा है।
सरकार की बेरुखी ग्रामीणों पर भारी पड रही है।
चाहें वो बीमार व्यक्ति को अस्पताल तक पहुंचना हो या गर्भवती महिला को,इसी तरीके से डंडी कंडी के सहारे ही उन्हें ले जाना पड़ता है। तेवाखर्क के ग्रामीणों का कहना है कि सरकार किसी प्रकार से हमारी सुध नहीं ले रही है।
जबकि ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से मात्र 18 किलोमीटर की दूरी पर बसा है ग्राम सेरा तेवाखर्क गांव का इलाका।
2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा गाँव को सड़क मार्ग से जोडने की घोषणा की गई थी जो कि अभी तक सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गई है।सरकार व जनप्रतिनिधियों की कोरी घोषणाओं से अत्यधिक नाराज है ग्रामीण।
चमोली में ऐसे कई दुर्गम इलाके हैं जहाँ विकास के नाम पर लोग आज तक उत्तराखण्ड में चल रही सरकारों की जुम्लेबाजी ।