उत्तराखंड की भूमि को देवभूमि के नाम से यूं ही नहीं जाना जाता है। यहां के कण-कण में,वादियों में,हिमखंडों में, नदियों में, झरनों और पेड़ पौधों में देवी-देवताओं का वास है,ऐसी आस्था और विश्वास को लेकर हर दिन कोई न कोई आस्थावान देवभूमि में आकर अपनी श्रद्धानुसार अपने ईष्ट से साक्षात्कार करते रहते हैं। देवभूमि की अलौकिकता, चारधामों की नैसर्गिक पवीत्रता तो देश विदेश के लोगों को श्रद्धा के साथ मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
हम आज अपने दर्शकों को रूबरू करा रहे हैं चमोली जिले के उत्तरी कड़ाकोट पट्टी में चोपता, रैंस,कूश और भंगोटा गांवों के सुदूर सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं के बीच स्थित सुप्रसिद्ध लव-कुश महादेव मंदिर से। यहां की मान्यताओं के अनुसार लव-कुश महादेव मंदिर रामायण काल से जुड़ा हुआ है। जहां लव-कुश का जन्म हुआ था। मंदिर के समीप बाल्मीकि आश्रम,सीता कुण्ड,लक्ष्मण जी का मंदिर और जिस स्थान तक लक्ष्मण जी सीता जी को छोड़ने आये थे बताया जाता है कि वहां पर लक्ष्मण जी के पदचिन्ह मौजूद हैं।और इस मंदिर क्षेत्र में वर्षभर श्रद्धालु पूजा अर्चना करने आते हैं।
इसी लव-कुश महादेव मंदिर में चैन्नई के व्यवसायी उत्तमचंद्र जैन ने यहां पहुंचकर हनुमानजी का विशाल मंदिर बनवाया है।और आज हनुमानजी की पंचमुखी मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने के लिए भेजी है। जिसे सड़क मार्ग से ग्रामीणों ने पूरे विधि विधान,जयकारों और गाजे-बाजों के साथ सैकड़ों शिव भक्तों की उपस्थिति में लव-कुश शिवालय मंदिर में पहुंचाया है।पर्वतीय ऊबड़-खाबड़ रास्तों से चढ़ते हुए मूर्ति को ले जाने में समस्त क्षेत्र के लोगों में काफी उत्साह देखा गया बजरंगबली और शिव शंकर के जयकारों के साथ मूर्ति मंदिर प्रांगण तक पहुंचाई गई।मंदिर समिति के अध्यक्ष सुजान सिंह मेहरा ने बताया कि मूर्ति पहुंचाने में कई शिव भक्तों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।