
उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार में लखवाड़-ब्यासी परियोजना में पूर्ण रूप से विस्थापित होने जा रहे लोहारी गांव वालों को रेशम विभाग की जमीन बतौर विस्थापन आवंटन का फैसला लिया गया था। त्रिवेंद्र सरकार में इसे स्थगित किया गया और बुधवार को हुई धामी सरकार की कैबिनेट बैठक में इस फैसले को वापस ले लिया गया। दरअसल, तीन जनवरी 2017 को विकासनगर के लोहारी गांव के परिवारों को हरीश रावत सरकार ने राजकीय रेशम फार्म जीवनगढ़ और रेशम फार्म अम्बाड़ी की जमीन बतौर विस्थापन आवंटित करने का फैसला कैबिनेट बैठक में लिया था। इसके बाद 13 जून 2017 को हुई त्रिवेंद्र सरकार की कैबिनेट बैठक में इस आवंटन पर फैसला स्थगित करने का निर्णय लिया गया था।
रेशम विभाग की जीवनगढ़ में 11 हेक्टेयर और अम्बाड़ी में करीब साढ़े तीन हेक्टेयर भूमि है। धामी कैबिनेट ने माना कि राजकीय रेशम फार्म जीवनगढ़ विभागीय गतिविधियों के संचालन के लिए अति महत्वपूर्ण उद्यान है। जिसमें विभाग द्वारा आवश्यक अवस्थापना सुविधाएं जैसे विभागीय तीन भवन, चाकी कीटनालन भवन, फार्म की सिंचाई के लिए नलकूप, नर्सरी एवं बुनाई केंद्र स्थापित किए गए हैं, जो बहुत उपयोगी है। इस जमीन में लगभग 38 हजार पेड़ शहतूत, दो लाख पेड़ों की नर्सरी, दो ट्यूबवेल, तीन चाकी केंद्र तथा एक बुनाई सेंटर है।
अम्बाड़ी फार्म स्थित रेशम फार्म में लगभग आठ हजार शहतूत पेड़, तीन लाख पेड़ों की नर्सरी, एक ट्यूबवेल, एक चाकी केंद्र तथा एक बुनाई केंद्र है। कैबिनेट ने माना कि यह दोनों ही फार्म रेशम विकास के क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखते हैं। लिहाजा, इस जमीन को किसी और को देना उचित नहीं है। सरकार ने यह भी माना कि इन दोनों ही रेशम फार्म से आसपास के 14 गांवों के 235 अनुसूचित जाति, जनजाति तथा निर्बल गरीब वर्ग के परिवारों की महिला एवं पुरुषों का जीविकोपार्जन मिलता है। लिहाजा, मंत्रिमंडल ने इस भूमि आवंटन का फैसला वापस ले लिया है। सरकार के शासकीय प्रवक्ता सुबोध उनियाल ने कहा कि विस्थापितों को नियमानुसार मुआवजा दिया जाएगा।