उत्तराखंड का लोकपर्व फूल देई : आजकल की युवा पीढ़ी हमारे पारंपरिक त्योहारों को भूलते हुए, अब सिर्फ सोशल मीडिया पर दिखती है झलकियां, क्या है लोकपर्व फूल देई और क्यों मनाया जाता है ।।

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नमस्कार दोस्तों आज हम अपने चैनल “न्यू भारत” की तरफ से आपको बता रहे है उत्तराखंड के लोकपर्व त्यौहार फूल देई को क्यों मनाया जाता है। उत्तराखंड में फूल देई त्यौहार बसंत ऋतु के आगमन में मनाया जाता है।

फूल देई त्यौहार हमारी प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करता है, फूल देई त्यौहार सर्दियों के मौसम जब जाने लगते है और गर्मियों के दिन आने लगते है। 

ये इन दोनों के बीच में यानि चैत के महीने की संक्रांति को, जब पहाड़ो से हिम पिघलने लगता है, और उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं और प्योली, बुरांश, आड़ू, खुमानी, पुलम और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल खिलने लगते है। तब नए साल का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला ये त्योहार उत्तराखंड में मनाया जाता है।फूल देई त्यौहार से उत्तराखंड का हिन्दू नववर्ष भी शुरू हो जाता है, और यह त्यौहार वैसे छोटी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है। फूल देई छम्मा देई वाले दिन देली द्वार भर भकार गीत गाते हुए बच्चें तमाम इलाकों में फूल देई का पर्व उल्लास से मनाते है, बच्चें फूल और चावल से घरों की देहरी का पूजन करते है।
फूल देई वाले दिन बच्चों द्वारा देहरी पूजन पर लोग बच्चों को गुड़, चावल, मिठाई और पैसे इत्यादि देते है, जिससे बच्चें भी काफी खुश हो जाते है। और फूल देई वाले दिन लोग इस गीत को गाते है-

फूलदेई, छम्मा देई.. जतुकै देला, उतुकै सही.. दैणी द्वार, भर भकार

फुलदेई, छम्मा देई,

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दैंणी द्वार, भर भकार,

यो देली सौं बारंबार नमस्कार…

इसका अर्थ इस प्रकार है👇
(ये देहली ( चौखट ) फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो। सबकी रक्षा करे और घरों में अन्न के भंडार कभी खाली न होने दे।)

फूलदेई त्यौहार की मान्यताएं-

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, फूलदेई त्यौहार को मनाने के पीछे एक रोचक कहानी भी है। ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव शीतकाल में अपनी तपस्या में लीन थे। ऋतु परिवर्तन के कई वर्ष बीत गए परन्तु, भगवान शिव जी की तपस्या नहीं टूटी ऐसे में मां पार्वती भी नहीं बल्कि नंदी-शिवगण और संसार के कई वर्ष शिव के तंद्रालीन होने से वे मौसमी हो गए आखिरकार, शिव की तंद्रा तोड़ने के लिए पार्वती ने युक्ति निकाली और शिव भक्तों को पीतांबरी वस्त्र पहनाकर उन्हें अबोध बच्चों का स्वरूप दे दिया। 

फिर सभी देव क्यारियों में ऐसे पुष्प चुनकर लाए, जिनकी खुशबू पूरे कैलाश में महक उठी सबसे पहले शिव के तंद्रालीन मुद्रा को अर्पित किए गए, जिसे फूलदेई कहा गया शिव की तंद्रा टूटी लेकिन, सामने बच्चों के वेश में शिवगणों को देखकर उनका क्रोध शांत हो गया गौरतलब है कि पहाड़ की संस्कृति के अनुसार, इस दिन हिंदू नववर्ष की शुरूआत भी मानी जाती है। इस वक्त उत्तराखंड के पहाड़ों में अनेक प्रकार के सुंदर और रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। और पूरे पहाड़ का आंचल रंग-बिरंगे फूलों से सजा होता है।


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