
बिहार ने आजादी के बाद से ही झड़पों, दंगों और नरसंहार का बुरा दौर देखा है। इनसे इतर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक मामला ऐसा भी है, जहां आज से 50 साल पहले एक केंद्रीय मंत्री की हत्या हो गई थी। जब इस मामले के आरोपियों को सजा हुई तो मंत्री के परिवार ने ही इसे न्याय नहीं माना। परिवार का मानना था कि हत्या की साजिश जितनी दिख रही है, उससे ज्यादा गहरी थी। इस साल होने वाले चुनाव से पहले यह हत्याकांड फिर से चर्चा में हैं। भाजपा की ओर से इस मामले की फिर से जांच की मांग की जा रही है।
बिहार के महाकांड’ सीरीज की 11वीं कड़ी में आज इसी हत्याकांड की बात। आखिर कौन थे ललित नारायण मिश्र? उनकी राजनीतिक छवि कैसी थी? उनकी हत्या कैसे हुई? अब इसे फिर खोले जाने की मांग क्यों की जा रही है? इस मामले में पुलिस और फिर बाद में न्यायालयों में क्या-क्या हुआ?
खुद एलएन मिश्र के बेटे विजय मिश्र ने 2014 में एक इंटरव्यू में बताया था कि ट्रेन में उनके पिता की हालत ज्यादा नहीं बिगड़ी थी। यहां तक कि दानापुर पहुंचने के बाद जब उन्हें एक्सरे के लिए ले जाया जा रहा था तो उन्होंने कहा था, “हम ठीक हैं, हमको कुछ नहीं हुआ है। जगन्नाथ को देखो, बहुत खून निकला है।”
विजय मिश्र ने दावा किया था कि उन्हें 100 प्रतिशत विश्वास है कि दोषी करार दिए गए आनंदमार्गी निर्दोष हैं। सीबीआई ने गलत तरह से जांच की। उन्होंने कहा कि आनंदमार्गियों के पास मेरे पिता को मारने की कोई वजह ही नहीं थी। विजय का कहना था कि उनके पिता को मारने की कोई गहरी साजिश थी, जिनके नाम का खुलासा नहीं हुआ है।