बिहार का महाकांड: रेल मंत्री पर जब फेंका गया बम, 14 घंटे में पहुंचाया गया अस्पताल, आज भी कई सवाल हैं अनसुलझे 

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बिहार ने आजादी के बाद से ही झड़पों, दंगों और नरसंहार का बुरा दौर देखा है। इनसे इतर बिहार के मिथिला क्षेत्र का एक मामला ऐसा भी है, जहां आज से 50 साल पहले एक केंद्रीय मंत्री की हत्या हो गई थी। जब इस मामले के आरोपियों को सजा हुई तो मंत्री के परिवार ने ही इसे न्याय नहीं माना। परिवार का मानना था कि हत्या की साजिश जितनी दिख रही है, उससे ज्यादा गहरी थी। इस साल होने वाले चुनाव से पहले यह हत्याकांड फिर से चर्चा में हैं। भाजपा की ओर से इस मामले की फिर से जांच की मांग की जा रही है।

बिहार के महाकांड’ सीरीज की 11वीं कड़ी में आज इसी हत्याकांड की बात। आखिर कौन थे ललित नारायण मिश्र?  उनकी राजनीतिक छवि कैसी थी?  उनकी हत्या कैसे हुई? अब इसे फिर खोले जाने की मांग क्यों की जा रही है? इस मामले में पुलिस और फिर बाद में न्यायालयों में क्या-क्या हुआ?

 

कौन थे ललित नारायण मिश्र?
लंबे समय तक केंद्र की राजनीति करने के बावजूद बिहार में ललित नारायण मिश्र का सिक्का चलता था। उनके प्रभाव को इसी से समझा जा सकता है कि बिहार में इंदिरा गांधी के दौर में तीन मुख्यमंत्री बने- केदार पांडेय, अब्दुल गफूर और जगन्नाथ मिश्र (एलएन मिश्र के भाई)। जहां केदार पांडेय के मुख्यमंत्री पद से हटने की वजह एलएन मिश्र गुट के प्रभाव को माना गया तो अब्दुल गफूर के बिहार के सीएम बनने के पीछे भी एलएन मिश्र गुट को वजह बताया गया। इतना ही नहीं जब जगन्नाथ मिश्र अप्रैल 1975 में पहली बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे (जनवरी 1975 में एलएन मिश्र की हत्या की घटना के बाद) तो भी उनकी ताजपोशी की वजह उनके बड़े भाई की विरासत और प्रभाव को ही माना गया।

50 साल पुराना हत्या का मामला क्या है?
तारीख थी 2 जनवरी और साल 1975। ललित नारायण मिश्र दिल्ली से समस्तीपुर पहुंचे थे। यहां उन्हें समस्तीपुर से मुजफ्फरपुर जाने वाली रेलवे की बड़ी लाइन का उद्घाटन करना था। उद्घाटन के दौरान समस्तीपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर-तीन पर ही एक कार्यक्रम भी आयोजित हुआ, जहां कई बड़े नेता मौजूद थे। ललित नारायण मिश्र का इस दौरान मंच पर भाषण हुआ।भाषण पूरा करने के बाद जब एलएन मिश्र मंच से उतरने लगे, तभी वहां इकट्ठा हुई भीड़ में से किसी ने मिश्र की तरफ हैंड ग्रेनेड फेंक दिया। हैंड ग्रेनेड सीधे एलएन मिश्र के पास फटा और वे बुरी तरह जख्मी हो गए, लेकिन इसके बावजूद उनकी सांसें चल रही थीं। इस हमले में मंच पर मौजूद एमएलसी सूर्य नारायण झा और रेलवे के क्लर्क राम किशोर प्रसाद की मौत हो गई। घटना में करीब दर्जन भर लोग बुरी तरह घायल हुए। ललित नारायण मिश्र, उनके भाई जगन्नाथ मिश्र और कुछ और लोगों को इलाज के लिए पटना ले जाया गया। हालांकि, ट्रेन जब तक पटना के करीब दानापुर स्टेशन पर पहुंची और एलएन मिश्र को अस्पताल पहुंचाया गया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। अगले दिन यानी 3 जून 1975 को एलएन मिश्र की हत्या की खबर पूरे देश में रेडियो के माध्यम से पहुंची।

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इस पूरे मामले में दो रिपोर्ट्स सामने आईं। एक रिपोर्ट बिहार अपराध जांच विभाग (सीआईडी) के डीआईजी शशि भूषण सहाय ने मुख्यमंत्री को सौंपी थी। वहीं अगले साल यानी 1979 के फरवरी महीने में एक जांच रिपोर्ट जस्टिस (रि.) वीएम तारकुंडे ने भी मुख्यमंत्री को दी। दोनों ही रिपोर्ट्स में एलएन मिश्र की हत्या में गहरी साजिश की बात कही गई। हालांकि, इसमें पूरा खुलासा आज तक नहीं हो पाया। 1979 में सीबीआई के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को बिहार से दिल्ली ट्रांसफर कर दिया। भारत के इतिहास में यह पहला मामला बना, जिसे सबूतों के साथ छेड़छाड़ के शक में राज्य से बाहर शिफ्ट किया गया।
हत्याकांड की दोबारा जांच की मांग क्यों होती है?
खुद मिश्र के परिवार की मानें तो इस मामले में जिन्हें दोषी करार दिया गया, वे लोग निर्दोष हैं और असली अपराधी कानून की गिरफ्त से दूर हैं। दरअसल, एलएन मिश्र का परिवार हत्या के मामले की जांच फिर से सीबीआई से कराने की मांग करता रहा है। इसे लेकर एलएन मिश्र के पोते वैभव मिश्र ने हाईकोर्ट में याचिका भी दी। वैभव का कहना है कि आनंदमार्गियों का इस हत्या से कोई लेना-देना नहीं था और सीबीआई शुरुआत से ही जांच को लेकर अस्पष्ट रही। उन्होंने एक मौके पर तो यहां तक कहा कि सीबीआई ने पहले जिन चार आनंदमार्गियों को पकड़ा था उनमें से दो- अरुण कुमार ठाकुर और अरुण कुमार मिश्र के खिलाफ बाद में हत्या के आरोप हटा दिए गए थे।वैभव मिश्र से पहले ललित नारायण मिश्र के बेटे विजय मिश्र भी सीबीआई की जांच और अदालत के फैसले से असहमति जता चुके हैं। इसके अलावा मिश्र परिवार के अन्य सदस्य भी मामले के तार और गहरे होने की बात कहते रहे हैं।

सीबीआई-कोर्ट से सहमत क्यों नहीं एलएन मिश्र का परिवार?
निचली अदालत के फैसले और सीबीआई की चार्जशीट की जो कॉपी मौजूद है, उसके मुताबिक जांच के केंद्र में थे- आनंद मार्ग प्रचारक संघ और इसके संस्थापक प्रभात रंजन सरकार, जो कि बिहार में पूर्वी रेलवे के एक वर्कशॉप में कर्मचारी थे। 9 जनवरी 1955 में पीआर सरकार ने आनंद मार्ग संप्रदाय की स्थापना की और खुद को आनंद मूर्ति की नई पहचान दी। पीआर सरकार को उनके अनुयायी शिव और कृष्ण का अवतार मानते थे।29 दिसंबर 1971 को पीआर सरकार को पटना से गिरफ्तार कर लिया गया। आरोप था कि उन्होंने आनंद प्रचारक संघ को छोड़कर गए लोगों को मारने की साजिश रची। उनके संगठन के कुछ और लोगों पर भी हत्या और साजिश रचने के आरोप लगे। पटना सेशन कोर्ट में सुनवाई हुई। यहां से पीआर सरकार को जमानत नहीं मिली। जब उन्हें जेल भेजा गया तो जेल के अंदर से उन्होंने अपने साथ बदसलूकी किए जाने का झूठा प्रोपेगैंडा भी फैलाया।

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एलएन मिश्र की हत्या से कैसे जुड़ गया आनंदमार्गियों का नाम?
इस बीच 1973 में पीआर सरकार के एक अनुयायी दिव्यानंद ने पटना में और एक दिनेश्वरानंद ने दिल्ली में आत्महत्या कर ली। बताया जाता है कि पीआर सरकार ने जेल से ही संदेश भिजवाया था कि उसके समर्थक तब तक चुप न बैठें, जब तक उनके दुश्मन खत्म नहीं हो जाते। पीआर सरकार को रिहा करवाने के लिए कई प्रदर्शन और घेराव भी हुए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।बताया जाता है कि जब आनंदमार्गियों को अपने संस्थापक को छुड़ाने में सफलता नहीं मिली तो जुलाई 1973 में एक क्रांतिकारी दल का गठन हुआ। इस दल में विनयानंद, विशेष्वरानंद और विनयानंद शामिल हुए। इस दल का मकसद हिंसा के जरिए सरकार पर आनंद मूर्ति की रिहाई का दबाव डालना था। इन लोगों ने अपनी पहचान छिपाने के लिए अपने भगवा साफे उतारे, बाल और दाढ़ी भी हटवा ली। विनयानंद और विशेष्वरानंद ने तो अपने नाम बदलकर विजय और जगदीश रख लिए। बाद में इस गुट में संतोषानंद, सुदेवानंद, अर्तेषानंद और आचार्य राम कुमार सिंह भी शामिल हो गए।

इस गुट की एक बैठक कुछ समय बाद भागलपुर के त्रिमोहन गांव में हुई। इसमें फैसला हुआ कि पीआर सरकार के खिलाफ गवाही देने वाले माधवानंद को मार दिया जाएगा। उसे टारगेट नंबर-1 बनाया गया। इस गुट ने दूसरा टारगेट ललित नारायण मिश्र को बनाया और तीसरा टारगेट बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर को बनाया गया, जो कि एलएन मिश्र के करीबी कहे जाते थे। इस गुट का मकसद था कि इन बड़े नेताओं की हत्या कर वह सरकार को पीआर सरकार की रिहाई के लिए मजबूर कर लेंगे। इन लोगों ने तीनों की हत्या के लिए हथियार जुटाए। इसके अलावा बमों की भी व्यवस्था कर ली गई।

सीबीआई ने एलएन मिश्र की हत्या पर क्या खुलासा किया?
सीबीआई के मुताबिक, पीआर सरकार के लोग लगातार अपने टारगेट की रेकी करते रहे। समस्तीपुर में 2 जनवरी 1975 के कार्यक्रम में जब उन्हें ललित नारायण मिश्र के पहुंचने की जानकारी मिली तो उनकी हत्या के लिए गुट के तीन लोग- रंजन द्विवेदी, संतोषानंद और सुदेवानंद एक जनवरी को ही बस में बैठकर समस्तीपुर स्टेशन पहुंच गए। इन लोगों ने हैंड ग्रेनेड अपने कपड़ों में छिपा लिया था। जब एलएन मिश्र समस्तीपुर रेलवे स्टेशन पर भाषण देने के बाद मंच से उतरे तो संतोषानंद ने हैंड ग्रेनेड उनकी ओर फेंक दिया।

एक चिट्ठी से ली गई केंद्रीय मंत्री की हत्या की जिम्मेदारी
3 जनवरी 1975 को न्यूज एजेंसी यूएनआई के दफ्तर में सशस्त्र क्रांतिकारी छात्र संघ के नाम से आए एक पत्र में समस्तीपुर स्टेशन पर धमाके और एलएन मिश्र की हत्या की जिम्मेदारी ली गई। यह पत्र कथित तौर पर संतोषानंद की हैंडराइटिंग में लिखा गया था। इसमें कहा गया कि सरकार के दमनकारी कदम सफल नहीं होंगे। सीबीआई के मुताबिक, जांच के दौरान आरोपी गोपालजी के पास से ऐसे कई दस्तावेज मिले, जिसमें आरोपियों के बीच हथियारों के लेन-देन और मिलीभगत से जुड़े खुलासे हुए।आनंदमार्गियों को सजा होने से संतुष्ट क्यों नहीं एलएन मिश्र का परिवार?
एलएन मिश्र के परिवार के उनकी हत्या के मामले में कई सवाल हैं। इनमें पहला सवाल हादसे के ठीक बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री को इलाज के लिए दानापुर के रेलवे अस्पताल ले जाने से जुड़ा है। दरअसल, जहां मिश्र पर हमला हुआ था, वहां से दरभंगा का मेडिकल कॉलेज महज 30 मिनट की दूरी पर ही था। इसके बावजूद गंभीर रूप से घायल हुए एलएन मिश्र को 150 किलोमीटर दूर दानापुर के रेलवे अस्पताल ले जाने का फैसला किया गया।

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इतना ही नहीं, जिस ट्रेन से तत्कालीन केंद्रीय मंत्री को दानापुर भेजा गया था, वह कई जगह खड़ी रही थी। आरोप है कि इसके चलते जो ट्रेन 6-7 घंटे में ही दानापुर पहुंच जाती, उसने और ज्यादा समय ले लिया। कूमी कपूर की किताब- द इमरजेंसी: अ पर्सनल हिस्ट्री में एलएन मिश्र को इलाज मिलने में देरी पर सवाल उठाया गया है। इसमें कहा गया है कि ललित नारायण मिश्र 2 जनवरी को शाम करीब 5.50 बजे घायल हुए। लेकिन उन्हें दानापुर ले जाने वाली ट्रेन 8.30 बजे तक समस्तीपुर से रवाना नहीं हुई। उन्हें घायल होने के बाद अगले छह घंटे तक कोई इलाज नहीं मिला। अगली सुबह 9.30 बजे दानापुर से उनकी मौत की खबर आ गई। कपूर ने यहां तक कहा है कि केंद्रीय मंत्री होने के बावजूद मिश्र के पास ढंग की सुरक्षा नहीं थी। तब एक अखबार ने इस तरह की चूक के लिए केंद्र सरकार पर सवाल उठाए थे।

खुद एलएन मिश्र के बेटे विजय मिश्र ने 2014 में एक इंटरव्यू में बताया था कि ट्रेन में उनके पिता की हालत ज्यादा नहीं बिगड़ी थी। यहां तक कि दानापुर पहुंचने के बाद जब उन्हें एक्सरे के लिए ले जाया जा रहा था तो उन्होंने कहा था, “हम ठीक हैं, हमको कुछ नहीं हुआ है। जगन्नाथ को देखो, बहुत खून निकला है।”

विजय मिश्र ने दावा किया था कि उन्हें 100 प्रतिशत विश्वास है कि दोषी करार दिए गए आनंदमार्गी निर्दोष हैं। सीबीआई ने गलत तरह से जांच की। उन्होंने कहा कि आनंदमार्गियों के पास मेरे पिता को मारने की कोई वजह ही नहीं थी। विजय का कहना था कि उनके पिता को मारने की कोई गहरी साजिश थी, जिनके नाम का खुलासा नहीं हुआ है।


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