कभी लोग अंतर्देशीय पत्र भेजकर अपने सगे संबंधियों की कुशल क्षेम पूछते थे। तकनीकी युग के साथ यह पत्र धीरे-धीरे विलुप्त हो गया। समय के साथ-साथ नई पीढ़ी गढ़वाली भाषा भी भूलती जा रही है। विकास की भागदौड़ में गांव के गांव पलायन कर गए हैं। ऐसे में टिहरी जिले के भिगुन गांव निवासी बिष्णु प्रसाद सेमवाल आज भी गढ़वाली भाषा, पलायन और अंतर्देशीय पत्र को जीवंत करने में जुटे हुए हैं। वह अपने बेटे की शादी के निमंत्रण पत्र से वह नई पीढ़ी को गढ़वाली भाषा और पलायन के दर्द से रूबरू करवा रहे हैं। 3 से 5 अक्तूबर को विष्णु प्रसाद सेमवाल के पुत्र एकलव्य की शादी है। उनके बेटे की शादी गुमानीवाला से होनी है। बेटे की शादी में मेहमानों को आमंत्रित करने के लिए उन्होंने एक अच्छा तरीका निकाला है। उन्होंने मेहमानों को बुलाने के लिए अंतर्देशीय पत्र पर ब्यो कु न्यूतु निमंत्रण छापा है। निमंत्रण पत्र में उन्होंने गढ़वाली भाषा का इस्तेमाल किया है।
पत्र के प्रथम पृष्ठ पर उन्होंने पलायन और गढ़वाली भाषा को बचाने के लिए ड्वाखरा पुंगड़ा बचावा बीज बढ़ावा, गढ़वाली भाषा सी जुड़ा, अपणी संस्कृति की ओर मुड़ा, मीरु गौं, मीरु तीर्थ, अतिथि स्वागत म्यारा मुल्के की रीत स्लोगन छापा हुआ है। इसके अलावा दूसरे पृष्ठ पर शुरू से लेकर अंत तक गढ़वाली भाषा का प्रयोग किया है। जो लोगों के लिए आकर्षण और शिक्षाप्रद बना हुआ है। बिष्णु प्रसाद सेमवाल ने बताया कि वह गढ़वाली भाषा और गढ़वाली संस्कृति को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं। वह गांव में पहाड़ी उत्पादों से विभिन्न प्रकार के खाद्य वस्तुएं निर्मित करते हैं। गढ़वाली भाषा और पलायन को रोकने के लिए आकाशवाणी और दूरदर्शन पर उनके कई कार्यक्रम प्रसारित हुए हैं। कहा आज भी वह अपनी गढ़वाली भाषा और गढ़वाली की मिट्टी से ही जुड़े हैं। उनका प्रयास है कि वह लोगों का जुड़ाव भी इससे कम नहीं होने देंगे।
Wedding Card: ब्यो कु न्यूतु निमंत्रण – गढ़वाली भाषा में छापा अंतर्देशीय पत्र पर बेटे की शादी का निमंत्रण.
