
शुक्रवार, 6 जून 2025 को ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि है। इस एकादशी को निर्जला और भीमसेनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा-आराधना के लिए समर्पित होता है। एकादशी पर पूरे दिन व्रत रखते हुए विष्णु जी का नाम और उनके मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है
- निर्जला एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी पत्र अर्पित करें और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का 108 बार जाप करें।
- इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु को श्रीफल (नारियल) अर्पित करें और फिर इसे किसी जरूरतमंद को दान करें।
- इस दिन विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना विशेष रूप से फलदायी माना जाता है।
- निर्जला एकादशी पर अन्न, जल, वस्त्र और छाता का दान करें। यह उपाय स्वास्थ्य समस्याओं को भी कम करता है।
- पारण के समय केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
- प्याज-लहसुन जैसे तामसिक खाद्य पदार्थों का परहेज करें।
- पूजा के दौरान शुद्धता और नियमों का विशेष ध्यान रखें।
निर्जला एकादशी पर जलदान का महत्व
निर्जला एकादशी के दिन जल का विशेष महत्व होता है। इस दिन मिट्टी या तांबे के पात्र में जल भरकर दान देना अत्यंत पुण्यदायी माना गया है। इसे जीवनदाता और पापनाशक कहा गया है। जलदान से प्यासे प्राणियों की सेवा होती है और व्यक्ति के जीवन में शांति और सुख की वृद्धि होती है।
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
एकादशी स्वयं विष्णुप्रिया है इसलिए इस दिन निर्जल व्रत, जप-तप, दान-पुण्य करने से प्राणी श्री हरि का सानिध्य प्राप्त कर जीवन-मरण के बंधन से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करता है। निर्जला एकादशी के इस महान व्रत को ‘देवव्रत’ भी कहा जाता है क्योंकि सभी देवता, दानव, नाग, यक्ष, गन्धर्व, किन्नर, नवग्रह आदि अपनी रक्षा और जगत के पालनहार श्री हरि की कृपा प्राप्त करने के लिए एकादशी का व्रत करते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार एकादशी में ब्रह्महत्या सहित समस्त पापों का शमन करने की शक्ति होती है,इस दिन मन,कर्म,वचन द्वारा किसी भी प्रकार का पाप कर्म करने से बचने का प्रयास करना चाहिए,साथ ही तामसिक आहार के सेवन से भी दूर रहना चाहिए।