आगामी एक अप्रैल 2025 से नया वित्तीय वर्ष शुरू हो रहा है। इसके साथ ही तमाम क्षेत्रों में कई नए नियम लागू होंगे। इन नियमों का सीधा असर आम आदमी की जेब पर नजर आएगा। नए वित्तीय वर्ष से मौसमी बुखार और एलर्जी जैसी कई बीमारियों की दवा के रेट में इजाफा हो सकता है।
हाल ही में कई आम बीमारियों में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी को सरकार ने मंजूरी दे दी है। जिन दवाओं की कीमतें अगले महीने से बढ़ने जा रही हैं। इनमें से कई का इस्तेमाल डायबिटीज, बुखार और एलर्जी जैसी आम बीमारियों में किया जाता है। जबकि कुछ दवाओं का इस्तेमाल पेन किलर की रूप में होता है। इन दवाओं के बढ़ती कीमतों के पीछे कच्चे माल की बढ़ती लागत बताया जा रहा है।
कंपनियां इसी वजह से लगातार कीमतों में बढ़ोतरी की मांग कर रही थीं। हालांकि इन दवाओं की दामों में इजाफा सीमित ही होगा। दरअसल, सरकार ने जरूरी दवाओं की लिस्ट यानी नेशनल लिस्ट ऑफ एसेंशियल मेडिसिन में शामिल दवाओं के दाम में 1.74 प्रतिशत तक बढ़ोतरी को मंजूरी दे दी है। इनमें पेरासिटामोल, एज़िथ्रोमाइसिन, एंटी-एलर्जी, एंटी-एनीमिया, और विटामिन और मिनरल्स की दवाएं शामिल हैं।
केंद्र सरकार ने जिन दवाओं की कीमतें बढ़ाने की मंजूरी दी है। उनकी रेट में बढ़ोतरी होलसेल प्राइस इंडेक्स के आधार पर तय की गई है। इस बार होलसेल प्राइस इंडेक्स में 1.74 प्रतिशत की बढ़त आई है। दवाओं के भाव अब इसी हिसाब से दाम बढ़ाए जा रहे हैं। फार्मा कंपनियों का कहना है कि,हम लंबे वक्त से कीमतें बढ़ाने की मांग कर रही थे। कच्चे माल की कीमत, यानी दवा बनाने वाले कंपोनेंट्स के दाम पिछले कुछ समय से बढ़ रहे थे, जिसकी वजह से लागत भी बढ़ गई है।
नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी से जुड़े लोगों का कहना है कि, दवाओं की कीमतों में यह बढ़ोतरी मुद्रास्फीति आधारित मूल्य संशोधन के कारण की जा रही है। हर साल सरकार आवश्यक दवाओं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए एक संशोधन करती है। इस बार थोक मूल्य सूचकांक में वृद्धि के चलते दवा कंपनियों को कीमतें बढ़ाने की अनुमति दी गई है।