भारत 2025 में इंटरनेट शटडाउन करने वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर बना हुआ है। इंटरनेट सोसाइटी पल्स के डेटा के मुताबिक, त्रिपुरा, असम, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, लद्दाख और राजस्थान जैसे राज्यों में समय-समय पर मोबाइल और ब्रॉडबैंड इंटरनेट को बंद किया गया। कहीं वजह स्थानीय विरोध प्रदर्शन थे, तो कहीं धार्मिक त्योहारों के दौरान भड़काऊ भाषण और तनाव रोकने का तर्क दिया गया। अकेले राजस्थान और असम के कई जिलों में दिसंबर 2025 तक इंटरनेट पाबंदियां जारी रहीं।
भारत इंटरनेट बंद करने में सबसे आगे
साल 2025 में सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाले देशों की सूची में भारत सबसे टॉप पर रहा। इस साल देश में कुल 421 बार इंटरनेट को बंद किया गया। इस दौरान देश में कुल 90,496 घंटे तक इंटरनेट बंद रहा। साल 2025 में लद्दाख से लेकर त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश से लेकर ओडिशा तक, स्थानीय प्रशासन ने विरोध प्रदर्शनों और तनावपूर्ण स्थितियों को नियंत्रित करने के लिए इंटरनेट को बंद करने का सहारा लिया।
लद्दाख में सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद विरोध के चलते इंटरनेट बंद किया गया, तो वहीं उत्तर प्रदेश के बरेली और असम के बक्सा जिले में स्थानीय संघर्षों के कारण हफ्तों तक डेटा सेवाएं बाधित रहीं। भारत में इंटरनेट को बंद करना अब एक सावधानी बरतने वाला कदम बन गया है, जो किसी भी अशांति की स्थिति में सबसे पहले लागू किया जाता है।
इन देशों में भी कई बार बंद हुआ इंटरेनट
भारत के बाद सबसे ज्यादा बार इंटरनेट बंद करने वाले देशों की सूची में इराक (160 बार), सीरियन अरब रिपब्लिक (73 बार), सूडान (37 बार), पाकिस्तान (18 बार), अल्जीरिया (17 बार), ईरान (16 बार), यमन (14 बार), इथोपिया (11 बार) और वेनेजुएला (10 बार) जैसे देश शामिल हैं।
इंटरनेट शटडाउन से अर्थव्यवस्था को नुकसान
इंटरनेट शटडाउन का असर सिर्फ सोशल मीडिया या मैसेजिंग तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह किसी भी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ पर वार करता है। इंटरनेट सोसाइटी पल्स के मुताबिक, 2025 में अब तक वैश्विक जीडीपी (GDP) को लगभग 7.4 करोड़ डॉलर (करीब 625 करोड़ रुपये) का सीधा नुकसान पहुंचा है। जब इंटरनेट बंद होता है, तो ई-कॉमर्स, ऑनलाइन बैंकिंग, और लॉजिस्टिक्स जैसी सेवाएं पूरी तरह ठप हो जाती हैं। छोटे व्यापारी जो पूरी तरह डिजिटल पेमेंट पर निर्भर हैं, उन्हें सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है। यह न केवल वर्तमान के व्यापार को प्रभावित करता है, बल्कि विदेशी निवेशकों के मन में भी उस देश की स्थिरता को लेकर डर पैदा करता है, जिससे भविष्य का विकास भी बाधित होता है।







