सुकमा जिले से मानवता को झकझोर देने वाली तस्वीर सामने आई है। एक ग्रामीण की मौत के बाद सरकारी अस्पताल से उसके शव को घर ले जाने के लिए एम्बुलेंस तक नसीब नहीं हुई। मजबूरन परिजनों ने शव को खाट पर रखा और करीब छह किलोमीटर पैदल चलकर घर पहुंचे। इस दृश्य को जिसने भी देखा, उसकी आंखें नम हो गईं और सरकारी व्यवस्था पर गुस्सा फूट पड़ा।
मामला जगरगुंडा थाना क्षेत्र के चिमलीपेंटा गांव का है। यहां रहने वाले 40 वर्षीय बारसे रामेश्वर लंबे समय से बीमार चल रहे थे। गुरुवार को उनका जगरगुंडा स्वास्थ्य केंद्र में इलाज हुआ था। हालत में सुधार न होने पर शुक्रवार को दोबारा अस्पताल लाने की सलाह देकर शाम को उन्हें घर भेज दिया गया।
शुक्रवार सुबह रामेश्वर की तबीयत अचानक और बिगड़ गई। परिजनों ने एम्बुलेंस के लिए संपर्क किया, लेकिन किसी भी चालक ने मदद नहीं की। मजबूरी में परिजन उन्हें मोटरसाइकिल से जगरगुंडा स्वास्थ्य केंद्र ले जा रहे थे, तभी रास्ते में ही रामेश्वर ने दम तोड़ दिया।
मौत के बाद परिजनों ने शव को घर ले जाने के लिए अस्पताल से एम्बुलेंस की मांग की, लेकिन यह कहकर मना कर दिया गया कि एक चालक बीमार है और दूसरा छुट्टी पर है। हैरानी की बात यह रही कि अस्पताल परिसर में एम्बुलेंस खड़ी थी, फिर भी मदद नहीं मिली। आखिरकार परिजनों ने शव को चारपाई पर लादकर छह किलोमीटर तक पैदल सफर किया।
चिमलीपेंटा के सरपंच इरपा कृष्टा ने बताया कि रामेश्वर को हाथ पैरों में सूजन और तेज पेट दर्द की शिकायत थी। करीब एक महीने से उनका इलाज चल रहा था, लेकिन समय पर सुविधा नहीं मिलने से जान चली गई। उन्होंने पूरे मामले को स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर लापरवाही बताया।
वहीं, कलेक्टर देवेश ध्रुव ने कहा है कि मामले की जानकारी लेकर जांच कराई जाएगी। अब सवाल यह है कि जांच के भरोसे छोड़ दी गई इस संवेदनहीनता पर कब कार्रवाई होगी और गरीबों को बुनियादी स्वास्थ्य सुविधा कब नसीब होगी।









