वक्फ का अर्थ क्या है?
वक्फ एक अरबी शब्द है, जिसका मूल “वकुफा” से लिया गया है। “वकुफा” का अर्थ होता है ठहरना या रोकना, और इसी से बना “वक्फ”, जिसका मतलब है संरक्षित करना। इस्लाम में वक्फ उस संपत्ति या वस्तु को कहते हैं, जो जन-कल्याण के लिए समर्पित कर दी जाए। इसे एक तरह का दान भी कह सकते हैं, लेकिन इसमें एक महत्वपूर्ण शर्त होती है। एक बार वक्फ घोषित की गई संपत्ति को बेचा या बदला नहीं जा सकता, बल्कि इसे हमेशा जन-हित में ही इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
वक्फ के अंतर्गत कोई भी चल या अचल संपत्ति आ सकती है। आमतौर पर इसमें घर, खेत, जमीन, मस्जिद, मदरसे, दरगाहें, कब्रिस्तान जैसी संपत्तियां शामिल होती हैं।
इस्लाम में वक्फ की शुरूआत
वक्फ की परंपरा इस्लाम के पैगंबर मुहम्मद (570-632 ईस्वी) के समय से मानी जाती है, जिसका प्रमाण विभिन्न हदीस संग्रहों, जैसे कि सहीह बुखारी, सहीह मुस्लिम और अबू दाऊद में मिलता है। वक्फ का पहला उल्लेख पैगंबर मुहम्मद (सल्ल.) के समय मिलता है, जब खलीफा उमर (रजि.) ने खैबर में एक उपजाऊ जमीन प्राप्त की। वह इसे कैसे उपयोग करें, यह जानने के लिए उन्होंने पैगंबर मोहम्मद (स.अ.व.) से सलाह मांगी। पैगंबर ने फरमाया..
“इस संपत्ति को रोक लो, इसे किसी को मत दो, लेकिन इससे होने वाले लाभ को लोगों की भलाई में खर्च करो। इसे न बेचा जाए, न उपहार में दिया जाए और न ही इसे विरासत में छोड़ा जाए।”
यही वह पहला ऐतिहासिक उदाहरण था, जब किसी संपत्ति को जन-कल्याण के लिए वक्फ किया गया। इसके बाद इस्लामिक समाज में वक्फ की परंपरा शुरू हो गई, जहां लोग अपनी जमीनें, धन और अन्य संसाधन समाज की भलाई के लिए समर्पित करने लगे।
इसी तरह, हजरत उस्मान (रज़ि.) ने मदीना में “बीरे रौमा” नामक कुएं को वक्फ कर दिया था, जिससे सार्वजनिक हित में पानी की आपूर्ति होती थी। इन उदाहरणों के आधार पर इस्लामी शासन में वक्फ को एक स्थायी धार्मिक और परोपकारी संस्था के रूप में मान्यता दी गई, जिससे मस्जिदों, मदरसों, अस्पतालों और समाज सेवा से जुड़े अन्य कार्यों के लिए संपत्तियां समर्पित की जाने लगीं।