जलियांवाला बाग नरसंहार: आज जलियांवाला बाग दर्दनाक नरसंहार की 104वीं बरसी,इस हत्याकांड का कौन था दोषी?
गुलाम भारत की दास्तां इतिहास के पन्नों में लहू से लिखी हुई है। यह लहू स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों और बेकसूर भारतीयों का था, जिन्होंने अंग्रेजी की गुलामी की जंजीरों से आजाद होने का सपना देखा। कुछ ने आजादी की जंग लड़ी तो कुछ इस जंग में अंग्रेजी हुकूमत के पैरों तले कुचल दिए गए। अंग्रेजों के अत्याचार और भारतीयों के नरसंहार की दर्दनाक घटनाएं क्रोध से भर देने वाली हैं तो वहीं गर्व से सीना चौड़ा भी कर देती हैं। गुलाम भारत का एक दर्दनाक नरसंहार आज ही के दिन हुआ था। 13 अप्रैल को शहादत के दिन के तौर पर याद किया जाता है। इतिहास में आज ही के दिन जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ था। जलियांवाला बाग हत्याकांड में बेकसूर भारतीयों के खून की नदियां बहीं थीं। कुएं में भारतीयों की लाशें और बच्चों से लेकर बूढ़ों तक पर गोलियों की बरसात कर दी गई थी।
जलियांवाला बाग का इतिहास-
पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह है। 13 अप्रैल 1919 के दिन इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसाई थीं। उस कांड में कई परिवार खत्म हो गए। बच्चे, महिला, बूढ़े तक को अंग्रेजो ने नहीं छोड़ा। उन्हें बंद करके गोलियों से छलनी कर दिया।
नरसंहार की वजह?
दरअसल, उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था। हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। लेकिन कर्फ्यू के बीच हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे। कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे।
कौन था दोषी?
जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो वह बौखला गए। उनको लगा कि कहीं भारतीय 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की ताक में तो नहीं। ऐसी नौबत आने से पहले ही वह भारतीयों की आवाज कुचलना चाहते थे और उस दिन अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी। सभा में शामिल नेता जब भाषण दे रहे थे, तब ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर वहां पहुंच गए। कहा जाता है कि इस दौरान वहां 5 हजार लोग पहुंचे थे। वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बाग को घेर लिया। उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी।