बाराबंकी जिला जेल में बंदियों पर अफसर कितना मेहरबान है। इसका नमूना देखना है तो इस वर्ष के शुरुआती तीन महीने लीजिए। इन महीनों में जब नींबू की कीमतें आसमान पर थीं तब बंदियों को प्रतिदिन एक नींबू दिया गया। मतलब जेल में रोजाना औसतन 40 किलो का वितरण किया गया। इस तरह से तीन माह में करीब 36 क्विंटल नींबू सिर्फ बंदियों को पिला दिया गया।
जेल अफसर कहते हैं कि कोरोना काल के कारण डॉक्टरों की सलाह पर प्रतिदिन बंदियों को नींबू दिया गया। मगर बंदी इससे इंकार कर रहे हैं। क्योंकि जिन तीन महीनों में नींबू की खरीद दिखाई गई उस समय डेढ़ सौ से लेकर पौने तीन सौ रुपये किलो तक बाजार में भाव था। आम आदमी नींबू के स्वाद को तरस गया था। ऐसे में बंदियों पर यह मेहरबानी गड़बड़ी की ओर इशारा कर रही है। यदि इसकी जांच हुई तो जेल में बड़े नींबू घोटाले की पोल खुल सकती है।
जिला जेल की 20 बैरकों में औसतन प्रतिदिन करीब चौदह सौ बंदी/ कैदी रहते हैं। बीते जनवरी, फरवरी और मार्च में जब नींबू की कीमतें आसमान पर थीं तो उस दौर में प्रतिदिन एक बंदी को एक नींबू दिया गया। इस तरह करीब 40 किलो नींबू की एक दिन में खरीद की गई। इस पर औसतन दो सौ रुपये किलो के हिसाब से आठ हजार रुपये खर्च किए गए। जेल अफसर इस संबंध में अलग-अलग बयानबाजी कर रहे हैं।
जेल अधीक्षक हरिबक्श सिंह बताते हैं कि कोरोना के चलते प्रतिदिन बंदियों को भोजन के समय एक नींबू दिया जा रहा था। इसकी खरीद यहां सब्जी आपूर्ति करने वाले से की गई है। जबकि जेलर आलोक शुक्ला का कहना है कि डॉक्टर जब सलाह देते थे तब बंदियों को नींबू दिया गया। मजेदार बात यह है कि आजकल भीषण गर्मी में अप्रैल और मई मिलाकर करीब डेढ़ महीने से एक भी नींबू की खरीद नहीं हुई है। ऐसे में कौन सही है और कौन गलत, यह अपने आप में कहीं न कहीं गड़बड़ी की ओर इशारा है। क्योंकि जेल में बंदियों से मुलाकात को लेकर अन्य सुविधाएं मुहैया कराने तक के लिए वसूली की शिकायतें अक्सर होती रहती हैं।
नींबू तो दूर बिना पैसे के नहीं होती मुलाकात
जिला जेल में निरुद्ध बंदी जब पेशी पर आते हैं या जमानत पर रिहा होते हैं तो वह अंदर की हकीकत बयां करते हुए कहते हैं कि जेल में नींबू मिलना तो दूर बिना पैसा दिए कोई काम नहीं होता है। एक बंदी ने तो बताया कि महंगा नींबू कहां से दे देंगे। यहां पैसा देकर तो सारी सुविधाएं मिल सकती हैं पर सरकारी स्तर पर ठीक से खाना-पानी मिलना मुश्किल है।