प्रधानमंत्री के रहते अगर अखिलेश यादव अयोध्या के राम मंदिर पहुंच जाते हैं तो क्या होगा?

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प्रधानमंत्री मोदी के रहते अगर अखिलेश यादव अयोध्या के राम मंदिर पहुंच जाते हैं तो क्या होगा 9 जनवरी के ही लखनऊ में बीजेपी का बड़ा कार्यक्रम है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस दिन चुनावी सभा को संबोधित करेंगे. उसी दिन अखिलेश यादव अयोध्या में रहेंगे.
प्रधानमंत्री के रहते अगर अखिलेश यादव अयोध्या के राम मंदिर पहुंच जाते हैं तो क्या होगा?
प्रधानमंत्री मोदी और अखिलेश यादव
यूपी चुनाव का सबसे बड़ा दिन कौन सा है? आपके मन में तरह तरह के जवाब आ रहे होंगे. कुछ लोगों की राय होगी कि जिस दिन चुनाव का एलान हो. कई लोग ये सोच रहे होंगे कि जिस दिन नतीजे आएंगे उससे बड़ा दिन भला क्या हो सकता है? लेकिन अभी तो यही लग रहा है कि 9 जनवरी की तारीख यूपी चुनाव में सबसे बड़ा लड़ैया साबित होगा. उस दिन पीएम नरेन्द्र मोदी और अखिलेश यादव में सीधा मुकाबला है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष उस दिन अयोध्या में रहेंगे. अगर अखिलेश यादव उस दिन रामलला का दर्शन करने पहुंच गए तो फिर उससे बड़ी खबर क्या हो सकती है. बीजेपी के सभी बड़े नेता इन दिनों उन्हें राम द्रोही साबित करने में जुटे हैं. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव, उनका परिवार और उनकी पार्टी को भगवान राम के नाम से चिढ़ है. एक तरह से उन्हें हिंदू विरोधी साबित कर देने का अभियान चल रहा है. ऐसे में अगर अखिलेश यादव अयोध्या के राम मंदिर में पूजा और दर्शन के लिए पहुंच जाते हैं तो फिर मीडिया का सारा फोकस उन पर चला जाएगा. उस दिन अखिलेश यादव अयोध्या के सभी पांच विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव प्रचार करेंगे.
9 जनवरी के ही लखनऊ में बीजेपी का बड़ा कार्यक्रम है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उस दिन चुनावी सभा को संबोधित करेंगे. इसे कार्यकर्ता समागम का नाम दिया गया है. पार्टी के सूत्रों का कहना है कि ये समागम एक तरह से यूपी चुनाव के लिए बीजेपी की तरफ़ से चुनाव प्रचार का शंखनाद होगा. क्योंकि अभी तक तो पीएम मोदी सरकारी कार्यक्रमों के बहाने यूपी का दौरा करते रहे हैं. लखनऊ की रैली के लिए कम से दस लाख की भीड़ जुटाने का टार्गेट रखा गया है. डिफ़ेंस एक्सपो मैदान में होने वाली रैली के लिए अभी से बीजेपी के कार्यकर्ता जुट गए हैं. हर बूथ से कम से कम पांच लोगों को रैली में लाने का लक्ष्य है. यूपी में करीब 1 लाख 64 हज़ार बूथ हैं. इससे पहले बीजेपी 6 जन विश्वास यात्रा के बहाने यूपी का चुनावी मूड नाप चुकी है. इस यात्रा में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, सीएम योगी आदित्यनाथ और यूपी के चुनाव प्रभारी धर्मेन्द्र प्रधान समेत सभी छोटे बड़े नेता शामिल हुए. पार्टी के थिंक टैंक का मानना है कि यात्रा से लोगों का विश्वास बीजेपी में लौटा है. पीएम मोदी की रैली जन विश्वास यात्रा के समापन के तौर पर रखी गई है.
अखिलेश यादव हरदोई की रैली में जिन्ना का नाम दो बार लेकर विवादों में रह चुके हैं. पर उसके बाद से वे सॉफ़्ट हिंदुत्व की राह पर हैं. रायबरेली जाते समय उन्होंने हनुमान मंदिर जाकर पूजा की थी. उसके बाद पत्रकारों से बात करते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि अगर यूपी में उनकी सरकार होती तो अयोध्या में मंदिर साल भर में बन गया होता. इसके बाद उन्होंने लखनऊ में ही भगवान परशुराम के मंदिर जाकर दर्शन पूजन किया. बीजेपी लगातार उन्हें हिंदुत्व के पिच पर घेरने की तैयारी में है. उन्हें और उनकी पार्टी को राम भक्तों पर गोली चलाने वाला कहा जा रहा है. अखिलेश पर चुनावी हिंदू होने के आरोप मढ़े जा रहे हैं. तो दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी अखिलेश के खिलाफ खुल कर मुस्लिम कार्ड खेल रहे हैं. कुल मिला कर यूपी में माहौल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने की है. ऐसे में अखिलैश यादव की सबसे बड़ी चुनौती इन दोनों रास्तों से बच कर साइकिल को यूपी की सत्ता तक पहुंचाने की है. लगातार तीन चुनाव हार चुके अखिलेश के लिए ये राह बहुत कठिन है. लेकिन उनके सामने बंगाल और दिल्ली का चुनावी मॉडल भी है.
अखिलेश यादव ने इस बार यूपी चुनाव के लिए प्रचार की टू विंडो वाली पॉलिटिक्स की रणनीति बनाई है. इसका मतलब ये है कि जिस दिन बीजेपी का कोई बड़ा प्रोग्राम होता है अखिलेश भी अपने लिए कोई कार्यक्रम बना लेते हैं. इस तरह से चुनाव प्रचार में मीडिया में उन्हें और उनकी पार्टी को भी जगह मिल जाती है. इस टू विंडो वाले चुनाव प्रचार के लिहाज़ से 9 जनवरी का दिन ऐतिहासिक हो सकता है.

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