धर्मशास्त्रानुसार दीपावली का पर्व प्रदोष काल एवं महानिशिथ काल व्यापनी अमावस्या में मनाया जाता है, जिसमें प्रदोष काल का महत्व गृहस्थों और व्यापारियों के लिए तथा महानिशिथ काल का उपयोग आगमशास्त्र (तांत्रिक) विधि से पूजन हेतु उपयुक्त होता है।
प्रदोष काल
चौघड़िया मुहूर्त
चर चौघड़िया घं.05 मि.36 से घं.07 मि.10 तक, तत्पश्चात् लाभ चौघड़िया की वेला घं.10 मि.19 से घं.11 मि.53 तक रहेगी। तथा शुभ,अमृत, चर चौघड़िया की संयुक्त वेला रात्रि घं.01 मि.28 से घं.06 मि.11 तक रहेगी।
अमावस्या और महानिशीथ काल का संयोग
इसके बाद रात्रि घं.01 मि.18 से घं.03 मि.32 तक स्थिर लग्न सिंह रहेगी। इस समयावधि में अमावस्या और सिंह लग्न का पूर्ण संयोग रहेगा तथा इसमें भी शुभ चौघड़िया की वेला घं.01 मि.28 से घं.03 मि.02 तक रहेगी। इस प्रकार 20 अक्तूबर 2025 सोमवार को अमावस्या रात्रि पर्यन्त रहेगी। उसमें उपरोक्त शुभ योगों का समावेश भी रहेगा।
अब 21 अक्तूबर 2025 मंगलवार की स्थिति का विश्लेषण देखिए। इस वर्ष 21 अक्तूबर 2025 दिन मंगलवार को सूर्योदय से शाम घं.05 मि.54 तक अमावस्या तिथि रहेगी, तत्पश्चात् कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा प्रारम्भ हो जाएगी।
21 अक्तूबर 2025 मंगलवार को अमावस्या के दिन धर्मशास्त्रोक्त प्रदोष काल घं.05 मि.36 से लेकर घं.08 मि.07 तक रहेगा। इसमें स्थिर लग्न वृष का समावेश घं.06 मि.55 से लेकर घं.08 मि.52 तक रहेगा। काल (अशुभ) चौघड़िया घं.05 मि.26 से घं.07 मि.00 तक, तत्पश्चात् लाभ चौघड़िया की वेला घं.07 मि.00 से घं.08 मि.34 तक रहेगी।
अब यहां ध्यान देने योग्य विशेष तथ्य है कि, मंगलवार को अमावस्या तिथि सूर्यास्त के बाद कुल 24 मिनट रहेगी, उसके बाद शुक्ल प्रतिपदा लगेगी, उसमें भी स्थिर लग्न वृष घं.06 मि.55 से लगेगी, और इसके पूर्व घं.05 मि.54 पर अमावस्या समाप्त हो जाएगी, जिसके कारण पूजन का समय कुल 24 मिनट का प्राप्त होगा, उसमें भी वृष लग्न नहीं मिलेगी और उसमें काल की चौघड़िया का अशुभ योग विद्यमान रहेगा।
21 अक्तूबर 2025 मंगलवार को महानिशीथ काल के एवं स्थिर लग्न सिंह के समय अमावस्या तिथि का अभाव रहेगा। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा तत्कालीन तिथि हो जाएगी।
दीपावली रात्रि का त्योहार है और इसका मुख्य पूजन रात्रि में अमावस्या के समय किया जाता है। अमावस्या की तिथि में प्रदोष काल का विशेष महत्व होता है।प्रदोष काल वह समय है जब सूर्यास्त के बाद लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक की अवधि होती है. शास्त्रों के अनुसार, जिस दिन अमावस्या प्रदोष काल और महानिशिथ काल में व्याप्त होती है, उसी दिन दीपावली का पर्व मनाना चाहिए।
20 अक्तूबर को अमावस्या की शुरुआत दोपहर में हो रही है, जो पूरी रात तक रहेगी, वहीं, 21 अक्तूबर को सूर्यास्त के बाद अमावस्या समाप्त हो जाएगी। प्रदोष और अर्धरात्रि व्यापनी मुख्य है,इसलिए दीपावली 20 अक्तूबर को मनाई जाएगी।
इसके साथ ही धनतेरस का पर्व 18 अक्तूबर को,नरक चतुर्दशी (छोटी दीपावली) 19 अक्तूबर, दीपावली का महापर्व 20 अक्तूबर, 21 अक्तूबर को स्नान दान की अमावस्या, 22 अक्तूबर को गोर्वधन पूजा और 23 अक्तूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जायेगा।
वैदिक विभूषण ज्योतिषाचार्य पं.मनोज कुमार द्विवेदी








