देश में पेट्रोल-डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। कर्नाटक समेत देश के सात राज्यों में पेट्रोल 100 रुपये के पार पहुंच गया है तो अब डीजल भी इसी राह पर चल रहा है। राजस्थान में तो यह 100 रुपये के पार पहुंच चुका है। केंद्र का कहना है कि कच्चे तेल के दाम बढ़ने से देश में ईंधन के दाम बढ़ रहे हैं। रहा सवाल करों में कमी कर जनता को राहत देने का, तो उसके लिए फिलहाल न तो केंद्र सरकार और न राज्य सरकारें तैयार हैं।
महंगे ईंधन से व कोरोना के चलते काम-धंधे ठप होने से बेहाल जनता का आक्रोश भी अब छलकने लगा है। सोशल मीडिया में तंज किया जा रहा है कि हर तीन माह में चुनाव होते रहें, तो देश में नहीं बढ़ेंगे ईंधन के दाम। यह बात इसलिए कही गई है कि पांच राज्यों के चुनाव के दौरान भी मार्च-अप्रैल में दाम नहीं बढ़े थे।
पेट्रोल की तो यह चार मई के बाद से इसमें 5.80 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी हो चुकी है। पांच राज्यों के नतीजे दो मई को आए थे और दो दिन बाद दाम बढ़ने लगे थे। जबकि चुनाव के दो माहों में कच्चा तेल महंगा होने पर भी दाम नहीं बढ़ाए गए थे।
डीजल इन्हीं 24 दिनों में 6.20 रुपये महंगा हुआ
डीजल के दाम में भी चुनाव नतीजों के बाद इन्हीं 24 दिनों में 6.20 रुपये प्रति लीटर की वृद्धि हो चुकी है। पेट्रोल के दाम देश के सात राज्यों में 100 रुपये पार पहुंच गए हैं तो डीजल भी इसी रफ्तार से चढ़ रहा है।
टीपीपी फॉर्मूले से तय होते हैं दाम
पंपों पर ग्राहकों को बेचे जाने वाले तेल की कीमत ट्रेड पैरिटी प्राइसिंग (टीपीपी) फॉर्मूले से तय होती है। इसका 80:20 का अनुपात रहता है। यानी देश में बेचे जाने वाले पेट्रोल-डीजल के मूल्य का 80 प्रतिशत हिस्सा विश्व बाजार में वर्तमान में बेचे जा रहे ईंधन के दामों से जुड़ा होता है। शेष 20 फीसदी हिस्सा अनुमानित मूल्य के अनुसार जोड़ा जाता है। जानकारों का कहना है कि भारत में कच्चे तेल के शोधन और मार्केटिंग की लागत का पंपों पर ईंधन के असल दामों से कोई लेना-देना नहीं है।