
उत्तराखंड में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के कांचुलाखर्क और सौरखर्क में अति दुर्लभ जीवों में शामिल कस्तूरी मृग कुलांचे भरते नजर आए। वन प्रभाग के कैमरे में करीब छह कस्तूरी मृग कैद हुए हैं। इस संरक्षित वन क्षेत्र में कस्तूरी मृग की बढ़ती संख्या से वन विभाग के अधिकारी और कर्मचारी भी उत्साहित हैं।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग हिमालयी कस्तूरी मृग के संरक्षण पर विशेष जोर दे रहा है। वन्य जीवों की तस्करी को रोकने के लिए वन विभाग की टीमें संरक्षित वन क्षेत्र में लगातार लंबी दूरी की गश्त करने में लगी हैं।
बीते दिनों कांचुलाखर्क और सौरखर्क में वन विभाग की टीमों को कस्तूरी मृग चोपता के सेंचुरी एरिया में चट्टानों पर घूमते हुए दिखाई दिए, जिसे उन्होंने अपने कैमरे में कैद कर लिया।
केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ अमित कंवर ने बताया कि केदारनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य का गठन हिमालय कस्तूरी मृग के संरक्षण के लिए किया गया था।
कस्तूरी मृग अति दुर्लभ जीवों में शामिल है। हाल ही में कस्तूरी मृग की यहां मौजूदगी देखी गई है। करीब छह कस्तूरी मृग चट्टानी भाग में घूमते दिखे हैं, जो कि इनके संरक्षण को लेकर अच्छा संकेत है। वहीं, चोपता रेंज में भरल भी विचरण करते दिखे।
बता दें कि कस्तूरी मृग अपनी खासियत की वजह से लोकगाथाओं और साहित्य में स्थान पाता रहा है। कस्तूरी कुंडल बसे मृग ढूंढे बन माहिं, ऐसे घट-घट राम हैं, दुनिया देखे नाहिं कबीर दास का प्रसिद्ध दोहा है। कस्तूरी मृग छोटा और सुंदर पशु है।
लगभग 2500 मीटर की ऊंचाई वाले पहाड़ों पर पाया जाता है। नर मृग में उदर के समीप एक थैली होती है जिसमें एक ग्रंथि से निकल कर एक खास किस्म का पदार्थ इकट्ठा होता रहता है। पूरी थैली को कस्तूरी कहते हैं। इससे तेज सुगंध निकलती रहती है। इसके कई औषधीय उपयोग भी हैं।