अयोध्या: मुख्य पुजारी बने तो 100 रुपये मिलता था पारिश्रमिक, प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38500 हो गया था 

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चार्य सत्येंद्र दास एक मार्च 1992 को रामलला के मुख्य पुजारी नियुक्त हुए थे। अशोक सिंहल की सहमति के बाद उनके मुख्य पुजारी बनने का मार्ग प्रशस्त हुआ था। जब वे मुख्य पुजारी बनाए गए तो उनका पारश्रिमिक मात्र 100 रुपये प्रतिमाह था। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38500 रुपये हो गया था। राममंदिर ट्रस्ट ने रामलला के प्रति उनकी निष्ठा को देखते हुए उन्हें आजीवन वेतन देने का ऐलान कर रखा था।

आचार्य सत्येंद्र दास से पहले रामलला के पुजारी लालदास थे। उस समय रिसीवर की जिम्मेदारी रिटायर जज पर हुआ करती थी। जेपी सिंह बतौर रिसीवर नियुक्त थे। फरवरी 1992 में उनकी मौत हो गई तो राम जन्मभूमि की व्यवस्था का जिम्मा जिला प्रशासन को दिया गया तब पुजारी लालदास को हटाने की बात हुई। उस समय तत्कालीन भाजपा सांसद विनय कटियार, विहिप के नेताओं और कई संत जो विहिप नेताओं के संपर्क में थे सबने पुजारी सत्येंद्र दास के नाम का निर्णय किया।

तत्कालीन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल की भी सहमति मिल गई। जिला प्रशासन को सबने अवगत कराया और इस तरह एक मार्च 1992 को उनकी नियुक्ति हो गई। उन्हें अधिकार दिया गया कि वह अपने 4 सहायक पुजारी भी रख सकते हैं तब उन्होंने 4 सहायक पुजारियों को रखा।

मुख्य पुजारी चूंकि सहायता प्राप्त स्कूल में पढ़ाते थे, ऐसे में मंदिर में बतौर पुजारी सिर्फ 100 रुपए पारिश्रमिक मिलता था। जब 30 जून 2007 को वे अध्यापक के पद से रिटायर हो गए तो 13 हजार रुपये तनख्वाह मिलने लगी। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका वेतन बढ़कर 38500 रुपये हो गया। 

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बचपन में ही जता दी थी सन्यासी बनने की इच्छा

सत्येंद्र दास संत कबीरनगर के रहने वाले थे। वे बचपन से ही अयोध्या में रहते थे इसलिए उन्हें अपने आसपास धार्मिक माहौल मिला था। अभिरामदास जिन्होंने 1949 में रामजन्म भूमि के गर्भगृह में मूर्तियां रखी थी,उनसे काफी प्रभावित हुए। अभिरामदास जी का सत्येंद्र दास के पिता से संपर्क अच्छा था। सत्येंद्र दास पर धर्म व अध्यात्म का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने पिता के समक्ष संन्यासी बनने की इच्छा जताई। पिताजी ने भी कोई विरोध नहीं किया बल्कि उन्हें बहुत खुशी हुई। इसके बाद सत्येंद्र दास जी प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए चले गए।

1976 में की अध्यापक की नौकरी
सत्येंद्र दास ने 1975 में संस्कृत विद्यालय से आचार्य में उत्तीर्ण किया और 1976 में उन्हें संस्कृत महाविद्यालय के व्याकरण विभाग में सहायक अध्यापक की नौकरी मिल गई लेकिन अपने काम के साथ वे राम जन्मभूमि में भी आते-जाते थे और पूजा-पाठ से जुड़े कार्यों में अपना योगदान देते रहे। इसी तरह एक समय ऐसा आया कि 1992 में उन्हें राम जन्मभूमि का मुख्य पुजारी बना दिया गया।


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